गीता प्रेस ने 98 साल बाद की शानदार वापसी, बेची सनातनी पुस्तकों की करोड़ों प्रतियां

गीता प्रेस ने की रिकॉर्ड तोड़ वापसी!

गीता प्रेस

गीता प्रेस सनातन संस्कृति की अमूल्य धरोहरों को सहेजकर रखने वाला प्रिटिंग प्रेस। उपनिषदों से लेकर रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य तथा श्रीमद्भगवद्गीता जैसे कालजई उपदेशक ग्रन्थ को छापने वाला एकमात्र पब्लिकेशन। वर्ष 1921 के आसपास जयदयाल गोयंदका ने कोलकाता में गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की। इसी ट्रस्ट के तहत वह गीता का प्रकाशन कराते थे। प्रेस मालिक ने एक दिन कहा कि इतनी शुद्ध गीता प्रकाशित करवानी है तो अपनी प्रेस लगवा लीजिए। गोयंदका ने इस कार्य के लिए गोरखपुर को चुना। साल 1923 में उर्दू बाजार में दस रुपये महीने के किराए पर एक कमरा लेकर उन्होंने गीता का प्रकाशन शुरू किया। यहाँ से शुरू हुई गीता प्रेस की कहानी जिसने हिन्दू जनजागरण को वर्षों तक अकेले आगे बढाया, यहाँ तक कि उस बुरे दौर भी जब नेहरू-इंदिरा शासन में वामपंथी ईको सिस्टम ने पूरे भारत के साहित्य और अकादमिक जगत को अपने कब्जे में ले रखा था।

किंतु आज परिस्थितियां बदल रही हैं, गीता प्रेस ने पिछले 98 वर्षों में प्रतिवर्ष जितनी पुस्तकों का विक्रय किया था, पिछले 5 महीनों में प्रतिमा उतनी पुस्तकें बिकी हैं। हिंदू जनमानस में यह परिवर्तन कई कारणों से है और इसकी नींव में गीता प्रेस के प्रयास भी हैं। गीता प्रेस से जुड़े हनुमान प्रसाद पोद्दार के प्रयासों ने श्रीराम मंदिर आंदोलन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गीता प्रेस की फंडिंग श्रीराम मंदिर आंदोलन का एक महत्वपूर्ण घटक थी।

गीता प्रेस से गीता का 15 भाषाओं में प्रकाशन होता है। इनमें हिंदी, संस्कृत, बंगला, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़, असमिया, उड़िया, उर्दू, तेलगू, मलयालम, पंजाबी, अंग्रेजी, नेपाली भाषाएं शामिल हैं। गीता प्रेस प्रबंधक लालमणि तिवारी ने अमर उजाला से बातचीत में कहा कि “श्रीमद्भागवत गीता कोई साधारण पुस्तक नहीं है। यह भगवान की वाणी है। इसलिए सेठजी जयदयाल गोयंदका ने सोचा कि अधिक से अधिक लोगों तक गीता तभी पहुंचाई जा सकती है, जब वह सस्ती हो। आज भी गीता प्रेस उनकी इसी सोच पर काम करता है।”

गीता प्रेस ने जून महीने में 4 करोड़ 93 लाख की किताबें, जुलाई महीने में 6 करोड़ 64 लाख की किताबें, अगस्त महीने में 6 करोड़ 31 लाख की किताबें, सितंबर महीने में 7 करोड़ 60 लाख की किताबें, अक्टूबर महीने में 8 करोड़ 68 लाख की किताबें और नवंबर महीने में 7 करोड़ 15 लाख की किताबें बेचीl

यह परिवर्तन कई कारणों से है। आज देश में हिंदुत्व की लहर चल रही है। भाजपा को समर्थन दे अथवा ना दे किंतु प्रत्येक हिंदू अपनी संस्कृति के लिए जागरूक हो रहा है। कम शब्दों में कहें तो आज सनातन संस्कृति का पुनरुत्थान विमर्श के केंद्र में है।

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यह परिवर्तन पॉप कल्चर अर्थात सिनेमा से लेकर साहित्य तथा गीतो तक परिलक्षित हो रहा है। जो बॉलीवुड मुगलों की प्रशंसा में फिल्में बनाता था वह ताण्हाजी जैसी फिल्में बना रहा है। साहित्य जगत में अमीष जैसे लेखक नाम कब आ रहे हैं और भगवान श्रीराम, माता सीता के जीवन पर पुस्तकें लिखने का चलन बढ़ रहा है। महाभारत तो लेखन कार्यों में लोकप्रिय विषय बन गया है।

इसके अतिरिक्त हिन्दू श्री रामलला के मंदिर निर्माण की प्रक्रिया का प्रारंभ और भगवान विश्वनाथ के धाम का सुंदरीकरण दो महत्वपूर्ण घटनाएं थीं जिन्होंने हिंदुओं में पुनः उनकी अस्मिता को लेकर सजग भाव जगाया।

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आज युवाओं में गोवा घूमने के समान है या उससे अधिक तत्परता श्री केदारनाथ जाने की है, युवाओं में यह परिवर्तन धार्मिक है। आप सोशल मीडिया को देखें, शिवलिंग और शिवभक्ति के साथ फोटो से, वृंदावन में बनी रील से इंस्टाग्राम और फेसबुक भरे पड़े मिलेंगे। कुछ वर्षों पहले तक इस प्रकार की ऊर्जा नहीं देखने को मिलती थी।

कोरोना के प्रसार के बाद लगाए गए लॉकडाउन में दूरदर्शन ने प्रसिद्ध धारावाहिक रामायण और महाभारत का प्रसारण किया। रामायण विश्व में सबसे अधिक देखा जाने वाला टीवी सीरियल बन गया। प्रथम 4 एपिसोड को 170 मिलियन व्यू मिले थे। प्रतिदिन 3 से 5 करोड़ TV पर यह धारावाहिक देखा जा रहा था।16 अप्रैल को प्रसारित हुए लक्ष्मण मेघनाथ संग्राम के एपिसोड को 77 मिलियन अर्थात 7. 7 करोड़ व्यू मिले थे जिसने पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए।पूरे पश्चिमी जगत के सबसे लोकप्रिय TV सीरियल गेम ऑफ थ्रोन्स के अंतिम एपिसोड को भी केवल 19.3 मिलियन व्यू मिले थे जो रामायण से करीब 4 गुना कम है।

 

किंतु यह सब संभव नहीं होता यदि गीता प्रेस ने सनातन धर्म की अमूल्य धरोहरों की रक्षा नहीं की होती। अकेले एक पब्लिकेशन ने वामपंथी तूफान में धर्म की थाती को पकड़े रखा। कहा जा सकता है कि हिंदू संस्कृति के पुनरुत्थान कि आज जो लहर दिख रही है वह गीता प्रेस के प्रयासों के कारण ही है और अब हिन्दू गीता प्रेस से पुस्तकें खरीदकर, उसका ऋण चुका रहे हैं।

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