पश्चिम बंगाल में हिंदुत्व को बचाने की लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है! प्रदेश के कूचबिहार से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसे जानने के बाद यह विश्वास पुनः दृढ़ हुआ है कि हिंदू जनमानस अपने अधिकारों के लिए सजग और एकजुट है। कूचबिहार में हर वर्ष लगने वाले राश मेला में पश्चिम बंगाल के हिंदुओं ने बांग्लादेशी व्यापारियों की दुकानों का बहिष्कार किया है। दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेश में हुए हिंदू विरोधी दंगे के विरोध में पश्चिम बंगाल में हिंदुओं ने इस बेहतरीन कार्य को अंजाम दिया है।
पश्चिम बंगाल में राश मेला बड़े पैमाने पर आयोजित होने वाला ऐसा मेला है, जिसमें पूरे पश्चिम बंगाल से व्यापारी अपना सामान बेचने आते हैं। यह मेला इतने बड़े स्तर पर आयोजित होता है कि इसमें केवल पश्चिम बंगाल ही नहीं, बल्कि बांग्लादेश से भी व्यापारी आते हैं। पिछले कई वर्षों में बांग्लादेशी व्यापारियों ने राश मेला में खूब लाभ कमाया है। लेकिन इस वर्ष बंगाली हिंदुओं ने बांग्लादेशी मुसलमानों को खाली हाथ वापस भेज दिया है।
जानें क्या है पूरा मामला?
बांग्लादेशी मुसलमान राश मेला में मुख्य रूप से मलमल की साड़ियां, हिल्सा मछली और गुड़ का स्टॉल लगाते हैं। हर वर्ष जामदानी और तांत की सुंदर साड़ियां इन दुकानों पर हाथों-हाथ बिकती थी। बांग्लादेशी मलमल की साड़ियों की प. बंगाल ही नहीं पूरे भारत में मांग है, किंतु विशेष रूप से बंगाली महिलाओं में यह काफी लोकप्रिय है। इस वर्ष मेले में भीड़ भी अच्छी खासी जुटी थी। यहां तक कि स्थानीय समाचार पत्रों में कोविड-19 गाइडलाइन के उल्लंघन की खबरें तक छप रही हैं, जो बताता है कि राश मेला में इस वर्ष भीड़ कुछ ज्यादा ही थी। इसके बाद भी बांग्लादेशी मुसलमानों की दुकानों पर भीड़ ना के बराबर देखी गई।
स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल के हिंदू बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान पंडालों में हुए तोड़फोड़ और मूर्तियों को क्षतिग्रस्त करने की घटनाओं को भूले नहीं है। उन्हें याद है कि दंगाई कट्टरपंथी मुसलमानों ने किस प्रकार हिंदुओं के घरों में आग लगाई, कई परिवारों की महिलाओं के साथ बलात्कार किए। क्रूरता का स्तर मानवता को शर्मसार करने वाला था, हाजीगंज में एक ही परिवार के तीन महिलाओं के साथ बलात्कार की खबर सामने आई थी। एक ही परिवार में मां, पुत्री और 10 वर्षीय भतीजी के साथ कट्टरपंथी मुसलमानों ने बलात्कार की घटना को अंजाम दिया था। हालांकि, बांग्लादेश पुलिस ने इस आरोप को खारिज कर दिया, लेकिन यह भी सत्य है कि ऐसी खबरें, कई देशों द्वारा अपनी छवि बचाने के लिए दबाई भी जाती हैं।
आज भी अपनी जड़ों से कटा नहीं है प. बंगाल का ग्रामीण क्षेत्र
गौरतलब है कि बंगाली संस्कारों में दुर्गा पूजा को पुत्री की घर वापसी के रूप में मनाया जाता है। बंगाली हिंदू मानते हैं कि जगतजननी दुर्गा मां, मां नहीं बेटी हैं। दुर्गा पूजा को लेकर बंगालियों में वही खुशी होती है, जो एक बेटी के ससुराल से मायके आने पर उसके परिवार को मिलती है। आप कल्पना करें कि जब आपकी विवाहित पुत्री आपके घर आई हो और उस समय दंगाइयों की एक भीड़ घर में घुसकर, पूरे घर को बर्बाद कर दे, बलात्कार और हत्या जैसी घटनाओं को अंजाम दे, तो स्थिति क्या होगी। उस वक्त अपमान की जो भावना आपमें होगी, वही भावना बांग्लादेश के और प. बंगाल के हिंदुओं में बैठी है। निश्चित रूप से पश्चिमी उदारवाद के प्रभाव में आकर शहरों में रहने वाला बंगाली अभिजात्य वर्ग, भद्रलोक, अपने संस्कार भूल गया है, लेकिन ग्रामीण प. बंगाल आज भी अपनी जड़ों से कटा नहीं है!