19 दिसंबर को अफगानिस्तान के मुद्दे पर दो महत्वपूर्ण मंच पर चर्चा हो रही है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के मुद्दे पर चर्चा के लिए ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉरपोरेशन अर्थात् OIC का मंच चुना है और भारत ने तृतीय भारत मध्य एशिया डायलॉग में अफगानिस्तान के मुद्दे को उठाया है। पाकिस्तान का उद्देश्य अफगानिस्तान के आम लोगों की मदद करने के बजाए तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्वीकृति दिलाना है। वहीं, दूसरी ओर भारत तालिबान शासित अफ़गानिस्तान की उत्पीड़ित जनता के लिए चिंतित है। इन सबके बीच मध्य एशियाई देशों ने पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर दिया है।
मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों ने पाकिस्तान की अध्यक्षता वाली OIC की बैठक में न जाकर, भारत के साथ संवाद में हिस्सा लिया है। इनमें उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिजस्तान और ताजिकिस्तान शामिल हैं। मध्य एशियाई देशों की सक्रिय भागीदारी के बिना OIC की बैठक औचित्यहीन बन गई है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान की तरह मध्य एशियाई देशों का मत अफगानिस्तान के मामले पर महत्वपूर्ण है।
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तालिबान के साथ खड़े नही हैं अधिकांश मुस्लिम देश
सर्वविदित तथ्य है कि अफगानिस्तान में तुर्क, तजीक, उजबेक, कजाक आदि कई जनजातियां रहती हैं, लेकिन वहां सबसे बड़ी संख्या पश्तूनों की है। तालिबान पश्तूनों का संगठन है और तालिबान की सरकार में अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित नही हैं। मध्य एशियाई देशों का अफगानिस्तान की जनजातियों के साथ नस्लीय संबंध है। ऐसे में अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार का गठन मध्य एशियाई देशों की प्राथमिकता है, जिससे वहां रहने वाली अल्पसंख्यक जनजातियां सुरक्षित रह सके। साथ ही मध्य एशियाई देश भी नहीं चाहते कि उनके यहां भी अफगानिस्तान की तरह कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतें सिर उठाएं, क्योंकि इन देशों की लगभग पूरी आबादी ही इस्लाम को मानती है। मध्य एशियाई देश अपेक्षाकृत उदारवादी सोच रखते हैं, ऐसे में वे कभी भी तालिबान जैसे संगठन के समर्थन में नहीं आएंगे।
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हर मोर्चे पर नाकाम होगा पाकिस्तान
इससे इतर एक महत्वपूर्ण बिंदु रूस की सुरक्षा से भी जुड़ा है। मध्य एशिया क्षेत्र लंबे समय तक सोवियत रूस के आधिपत्य में रहा है तथा आज भी यहां रूस का प्रभाव सबसे अधिक है। ऐसे में तालिबान की कट्टरपंथी विचारधारा अगर मध्य एशिया में फैलती है, तो रूस में चेचन्या आदि क्षेत्रों में सक्रिय रहे मुस्लिम अलगाववादियों को फिर से बल मिलेगा। पाकिस्तान चाहे जितना प्रयास कर ले, लेकिन मध्य एशियाई देश कभी भी तालिबान को वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता प्राप्त नहीं होने देंगे, पश्चिमी देशों व रूस द्वारा तालिबान को स्वीकृति दिलवाने का सपना तो दूर की बात है। बताया तो यह भी जा रहा है कि मध्य एशियाई देश मुस्लिम जगत में भी तालिबान को स्वीकार्यता नहीं मिलने देंगे।
वहीं, दूसरी ओर मध्य एशियाई देशों द्वारा पाकिस्तान की अध्यक्षता वाली बैठक को छोड़कर भारत के सम्मेलन में शामिल होना यह भी दिखाता है कि अफगानिस्तान के प्रश्न पर मध्य एशियाई देशों की विदेश नीति भारत को विश्वास में लेकर ही आगे बढ़ेगी। इसके पूर्व भी मध्य एशियाई देशों के साथ ही रूस और ईरान ने अफगानिस्तान के मुद्दे पर हुए दिल्ली डायलॉग में शामिल होकर भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया था। इन दोनों बातों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अफगानिस्तान के प्रश्न पर भारत का दृष्टिकोण सभी क्षेत्रीय शक्तियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
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