हमारी खरीदारी की आदत और तरीका केवल हमारे जीवन को प्रभावित नहीं करता, बल्कि इसका प्रभाव पूरे समाज और पर्यावरण पर भी पड़ता है। व्यापारिक कंपनियों के साथ-साथ सरकार के निर्णय भी हमारी खरीदारी के तरीके से प्रभावित होते हैं। जैसे भारतीयों की सस्ता खरीदने की आदत के कारण भारत सरकार ने डीजल इंधन के प्रयोग को बढ़ावा दिया! भले ही डीजल वाहनों से होने वाले प्रदूषण पेट्रोल वाहनों की अपेक्षा बहुत अधिक था। कहने का तात्पर्य यह है कि हम जो खरीदना चाहते हैं व्यापारी हमें वही उपलब्ध कराते हैं, बिना यह सोचे कि पर्यावरण को इससे क्या नुकसान होगा! मेकअप प्रोडक्ट भी इसी का उदाहरण है।
जब लोग मेकअप प्रोडक्ट खरीदते हैं, तो उसकी गुणवत्ता, उस में प्रयुक्त पदार्थों, रंग आदि बहुत सी बातें का ध्यान देते हैं। लेकिन क्या हम यह सोचते हैं कि इस प्रोडक्ट को बनाने के लिए किसी प्रकार की क्रूरता तो नहीं हुई। इस बारे में लोगों की जागरूकता कम है और सवाल उठने पर अधिकांश ब्यूटी प्रोडक्ट ब्रांड उपभोक्ताओं को मूर्ख बना देते हैं। हम बात कर रहे हैं, क्रूरता मुक्त मेकअप प्रोडक्ट की, इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि आखिर यह होते क्या हैं?
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चूहे, खरगोश और गिनी पिग पर होती है सबसे ज्यादा टेस्टिंग
क्रूरता मुक्त प्रोडक्ट वह प्रोडक्ट है, जिसके विकास में पशुओं पर किसी प्रकार का टेस्ट नहीं किया गया हो। रिपोर्ट बताती है कि जो जानवर लैबटेस्ट के लिए सबसे अधिक प्रयोग होते हैं, उनमें चूहे (Rat), मूषक (Mice), खरगोश और गिनी पिग शामिल है। इन पर होने वाले टेस्ट यह जानने के लिए किए जाते हैं कि क्या ब्यूटी प्रोडक्ट के प्रयोग से त्वचा अथवा आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कई बार ऐसा होता है कि इस टेस्ट के दौरान इन जानवरों को बुरी तरह चोट आती है अथवा इनकी आंखें खराब हो जाती है एवं कई मामलों में इनकी मृत्यु भी हो जाती है।
इन जानवरों पर होने वाले टेस्ट के तरीके अलग-अलग हैं। Cruelty-Free International की रिपोर्ट के अनुसार गिनी पिग पर टेस्ट के पूर्व उसके बाल छील दिए जाते हैं, उसके बाद उसकी त्वचा पर कॉस्मेटिक प्रोडक्ट का प्रयोग करके यह देखा जाता है कि इसका त्वचा पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है। चूहों को कॉस्मेटिक प्रोडक्ट जबरदस्ती खिलाए जाते हैं, कई बार उन्हें नाक के माध्यम से कॉस्मेटिक प्रोडक्ट दिए जाते हैं, गर्भवती चुहिया को भी इसी प्रकार का प्रोडक्ट दिया जाता है। जिसका उद्देश्य यह पता करना होता है कि यदि कोई व्यक्ति गलती से ब्यूटी प्रोडक्ट खा ले अथवा यह उसके नाक में चला जाए, तो क्या यह उसके लिए खतरा हो सकता है।
गर्भवती महिलाओं पर प्रभाव जानने के लिए ही गर्भवती चुहिया का प्रयोग किया जाता है। गर्भवती चुहिया को कई दिनों तक निगरानी में रखा जाता है, जिससे उसके बच्चों के जन्म के बाद, बच्चों पर ब्यूटी प्रोडक्ट के प्रभाव की जानकारी प्राप्त की जा सके। खरगोश को इस प्रकार के टेस्ट 28 से 90 दिनों तक झेलने होते हैं। चूहों के अलावा मूषक पर भी ऐसे टेस्ट किए जाते हैं। गर्भवती मादा मूषक और खरगोश पर भी इसी प्रकार के टेस्ट किए जाते हैं।
इन देशों ने लगा दिया है प्रतिबंध
यूनाइटेड किंगडम विश्व का पहली देश था, जिसने वर्ष 1988 में जानवरों पर होने वाले टेस्ट पर प्रतिबंध लगा दिया था। इजरायल ने भी वर्ष 2007 में इस प्रकार के टेस्ट पर प्रतिबंध लगा दिया था। भारत में वर्ष 2014 में इस प्रकार के टेस्ट पर प्रतिबंध लग गया था और ऑस्ट्रेलिया ने वर्ष 2019 में इस पर प्रतिबंध लगाया है। अब तक 40 देशों ने इस प्रकार के प्रतिबंध लगाए हैं। इनमें यूरोपीय यूनियन के देशों के अतिरिक्त ब्राज़ील, कोलंबिया, स्वीटजरलैंड, द० कोरिया, ताइवान आदि देश शामिल हैं। चीन ने इसी वर्ष 1 मई को इस पर आंशिक प्रतिबंध घोषित किया है। चीन में कुछ ब्यूटी प्रोडक्ट को छोड़कर अधिकांश पर जानवरों पर टेस्टिंग के संदर्भ में प्रतिबंध लागू है।
हालांकि, जानवरों पर टेस्टिंग को प्रतिबंधित करने के बाद भी ब्यूटी प्रोडक्ट के निर्माण में होने वाली क्रूरता को समाप्त नहीं किया जा सका है। यह टेस्ट प्रोडक्ट बनने के बाद किए जाते हैं, किंतु प्रोडक्ट बनने की प्रक्रिया के दौरान जानवरों पर जो अत्याचार हो रहे हैं वह जस के तस बने हुए हैं। कई कंपनियां सरकारी प्रतिबंध के कारण अब अपने अंतिम प्रोडक्ट का जानवरों पर प्रयोग नहीं कर पाती, किंतु प्रोडक्ट के निर्माण में प्रयुक्त अवयव का जानवरों पर अलग-अलग प्रयोग होता रहता है।
अवयव स्तर पर ही होते हैं अधिकांश परीक्षण
लीपिंग बनी प्रोग्राम के अनुसार, एक मेकअप किट पर बने लीपिंग बनी का क्रूरता-मुक्त प्रतीक केवल यह दर्शाता है कि अंतिम उत्पाद का जानवरों पर परीक्षण नहीं किया गया है। किंतु दुर्भाग्य है कि अधिकांश परीक्षण अंतिम उत्पाद के बजाय अवयव स्तर पर ही होते हैं। जिन कंपनियों को लिपिंग बनी प्रोग्राम के तहत 100% क्रूरता मुक्ति का सर्टिफिकेट मिलता है, केवल वही कंपनियां ऐसी है जो अवयव निर्माण के स्तर पर भी पशु परीक्षण का प्रयोग नहीं कर रही है। अधिकांश लोग ब्यूटी प्रोडक्ट खरीदते समय इन बातों पर ध्यान नहीं देते, लेकिन थोड़ी अधिक जानकारी जुटाकर हम मासूम जानवरों पर होने वाले अत्याचार को रोक सकते हैं।
बहुत से बड़े मेकअप ब्रांड चीनी बाजार में व्यापार करने के लिए अब भी इस प्रकार के टेस्ट कर रहे हैं। चीन में जो नियम हैं, उसके अनुसार आवश्यक होने की स्थिति में जानवरों पर टेस्टिंग की अनुमति है। यह आवश्यक स्थिति चीन की सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। चीन के नियमानुसार सभी विदेशी कंपनियों को चीनी बाजार में मेकअप प्रोडक्ट बेचने से पहले लैब में पशु परीक्षण करना आवश्यक है। Maybelline, MAC, NARS, L’Oréal आदि कई बड़ी कंपनियां इस प्रकार की टेस्टिंग में शामिल है। यदि हमें जानवरों पर होने वाले अत्याचारों को रोकना है, तो सबसे अच्छा ही होगा कि हम ऐसे ब्यूटी प्रोडक्ट का बहिष्कार करें, जो पशु परीक्षण करते हैं। साथ ही लैब में बने ब्यूटी प्रोडक्ट के स्थान पर आयुर्वेदिक विधि से बने उत्पाद का प्रयोग किया जाना चाहिए।