किसान आंदोलन का स्वांग रचने के बाद अपने आप को ‘किसान’ कहने वाले, अब ‘नेता’ बनने की घोषणा करने लगे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) की पंजाब इकाई आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए एक नया राजनीतिक संगठन बनाने जा रही है। इस संबंध में एक घोषणा शनिवार 25 दिसंबर को की जाएगी। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अपने आप को किसान के हितकर के रूप में प्रचारित करने वाले इन ‘नेताओं’ को न तो महाराष्ट्र जैसे राज्य के वास्तविक किसानों की आत्महत्या की चिंता है और न ही उनके दुखों की।
अब ‘किसान’ चले हैं ‘नेता’ बनने
दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि पंजाब में स्थित 32 में से करीब 25 किसानों के इस राजनीतिक मोर्चे का हिस्सा बनने की संभावना है। इन संगठनों के नेताओं ने इस मुद्दे पर बीते गुरुवार और शुक्रवार को मैराथन बैठकें की थी। यानी अब ये ‘किसान’ किसानी छोड़ नेताई पर उतर रहे हैं। रिपोर्ट्स ने सूत्रों का हवाला देते हुए बताया है कि किसान संगठन जो पहले से ही राजनीतिक दलों से जुड़े हैं, हो सकता है कि पंजाब SKM द्वारा बनाई जाने वाली पार्टी का हिस्सा न हों। पंजाब SKM अगले साल की शुरुआत में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपने नए मंच की घोषणा करने के लिए कल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा।
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किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने अपने राजनीतिक संगठन संयुक्त संघर्ष पार्टी की घोषणा करते हुए कहा कि “पार्टी पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेगी।” SKM की 5 सदस्यीय कोर कमेटी का हिस्सा रहे गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि “संयुक्त संघर्ष पार्टी पंजाब विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी।” बता दें कि तीनों कृषि कानूनों की वापसी और लंबित मांगों पर सरकार का प्रस्ताव मिलने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने 9 दिसंबर को आंदोलन स्थगित करने का ऐलान किया था।
महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या पर चुप्पी क्यों?
वहीं, 11 दिसंबर से किसानों की घर वापसी शुरू हुई थी। 15 दिसंबर तक देशभर में जारी किसान आंदोलन पूरी तरह खत्म हो गया था। हालांकि, देश के अन्य हिस्सों में किसान अलग-अलग समस्याओं से जूझ रहे हैं लेकिन इन ‘नेताओं’ को उनकी सुध नहीं लेनी है। महाराष्ट्र में किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या में वृद्धि के बावजूद इन ‘नेताओं’ के लिए इनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा सबसे ऊपर है। महाराष्ट्र के राहत और पुनर्वास मंत्री विजय वडेट्टीवार ने स्वयं शुक्रवार को राज्य विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया कि “जून और अक्टूबर 2021 के बीच महाराष्ट्र में कुल 1,078 किसानों ने आत्महत्या की है।” महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार का सत्ता पर काबिज होने के बाद से इस वर्ष के जनवरी तक महाराष्ट्र में 2270 किसानों ने आत्महत्या की है।
NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में 4,006 किसानों की आत्महत्याओं के साथ महाराष्ट्र एक बार फिर लिस्ट में सबसे आगे था। यह चिंता का विषय है कि महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार किसान आंदोलन को समर्थन देने में सबसे आगे रही थी। जब बात वास्तविक किसानों को समस्या को हल करने का आता है तो NCRB के आंकड़े राज्य सरकार की पोल खोल देते हैं। वहीं, अब नेता बनने जा रहे किसान नेताओं ने ना तो इस राज्य के किसानों द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्या पर ध्यान दिया और न ही उनकी समस्याओं पर।
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आंदोलन बहाना है, असल में पार्टी बनाना है!
ये नेता सार्वजनिक रूप से इस घोषणा के साथ सामने आए थे कि वे किसानों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। उनके विवाद का मुख्य कारण कृषि कानून था। सबसे पहले उन्होंने कृषि कानूनों के कुछ प्रावधानों के पीछे अपनी दलीलें रखीं। अपने तर्कों के साथ उन्होंने कानूनों के प्रावधानों में कुछ सुधारों का सुझाव दिया। इतना बवाल करने के बाद इन किसानों की असली मंशा तब सामने आई जब मोदी सरकार ने सच में उनकी बात सुन ली।
सरकार इन कानूनों के विवादास्पद प्रावधानों को या तो हटाने या सुधारने के लिए तैयार थी। लेकिन, ये नेता नहीं माने और नई मांग रखने लगे। नई मांग में इन्होंने नए कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने की मांग रखी थी। अंत में, मोदी सरकार ने कानूनों को निरस्त करने का फैसला किया।
ऐसे में, कहा जा सकता है कि अब इन कथित किसान नेताओं की प्रासंगिकता खतरे में पड़ गई है। यही कारण है कि अब उन्होंने राजनीतिक दल बनाने का फैसला किया है।