एक अज्ञात देश में रामलीला का मंचन चल रहा है। उनके रामलीला के शुरुआती दृश्य में एक मजदूर अपनी पत्नी के साथ एक द्वीप पर आया है। काम से घर लौटने के बाद वह अपनी पत्नी को बताता है कि फ़िजी की यात्रा करने वाले भारतीयों को कैसे अंग्रेजों ने धोखा दिया है? वह अपनी पत्नी को कार्यस्थल पर उनके दुर्व्यवहार, शोषण, शारीरिक दंड और क्रूरता के बारे में बताता है। अंग्रेजों के धोखे से वह टूट चुका है और सबसे बड़ी बात तो यह कि मिट्टी और अपनों से दूर वह परदेश में ब्रिटिश यातनाओं को भुगत रहा है। वह असहाय, हताश और निराश है।
फिर, उसकी पत्नी उसे कुछ बताती है, जिससे उसके आंखों में चमक लौट आती है। वह उससे कहती है कि उन्हें राम और सीता के जीवन से सीखना चाहिए जिन्हें निर्वासन के कारण विस्थापन का सामना करना पड़ा और फिर भी वें झुके नहीं। जैसे जहां राम – वहीं अयोध्या, वैसे ही जहां सनातन – वहीं आयवर्त। वह अपने पति को बताती है कि विस्थापन के दर्द के माध्यम से रामायण उन्हें कष्ट सहने और उससे ऊपर उठने की सीख देती है और ढंढास देती है कि सनातन की सुगंध लिए हम इस परदेश में ही अपने देश को जिंदा कर देंगे। इस रामायण का मंचन कहीं और नहीं बल्कि एक द्वीप देश फ़िजी में हो रहा है।
फ़िजी की अनसुनी कहानी जहां हिंदू धर्म ने…
फ़िजी मेलानेशिया में स्थित एक द्वीप देश है, जो दक्षिण प्रशांत महासागर में ओशिनिया का हिस्सा है। यह न्यूजीलैंड के लगभग 1,100 समुद्री मील उत्तर पूर्व में स्थित है। फ़िजी में 330 द्वीपों का एक द्वीपसमूह है, जिनमें से लगभग 110 द्वीपों पर स्थायी रूप से आबादी बसी हुई हैं। बता दें कि ब्रिटिश शोषण के मध्य सनातन संस्कृति का कवच लिए हिंदुओं ने इस परदेश में भारत को ना सिर्फ जिंदा रखा बल्कि इसके इतिहास को गौरवशाली और सम्पन्न कर दिया।
1874 में फ़िजी ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य का हिस्सा बन गया। कुछ साल बाद 1879 में, ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों के स्वामित्व वाले फ़िजी के गन्ने के बागानों में काम करने के लिए गिरमिटिया मजदूरों के रूप में भारतीयों को फ़िजी ले आई। 1919 तक लगभग 60,000 भारतीयों को नौकरी और काम के अनुबंधों के साथ फ़िजी में लाया गया। गोरों की शर्त ये थी कि 5 साल के अनुबंध की समाप्ती के बाद वो चाहें तो लौट सकते है या यहीं स्वतंत्र रूप बस सकते है।
हिंदुओं ने हार नहीं मानी
इन अनुबंधों को “ग्रिमिट” कहा जाता था, जो अंग्रेजी शब्द Agreement से लिया गया था पर पुनः अंग्रेजों ने धोखा दिया। इन भारतीय मजदूरों को बंधुआ मजदूरों में परिवर्तित कर दिया गया और ये लोग अंग्रेजों के साथ-साथ वहां के स्थानीय निवासियों द्वारा भी प्रताड़ित होने लगे। पर, राम के जीवन को आदर्श और आधार मनाने वाले हिंदुओं ने हार नहीं मानी। राम ही उनके संबल बने और राम ही उनके आधार और वो नित नए आयाम छूने लगे।
आंकड़ों के अनुसार, जब फ़िजी ने ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की तब हिंदुओं की आबादी कुल लगभग पचास प्रतिशत थी। कानून ने मूल फ़िजीवासियों को विशेष अधिकार प्रदान किए और हिंदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया। उदाहरण के लिए, हिंदुओं को संपत्ति के अधिकारों से वंचित कर दिया गया। वो कैसे? आइए आपको फ़िजी के धार्मिक इतिहास के बारे में बताते हैं।
कैसा था फ़िजी के हिंदुओं का जीवन?
स्वदेशी फ़िजी की धार्मिक मान्यताओं को जादू या जीववाद के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। जटिल अनुष्ठान, जादू-टोना, तांत्रिक पूजा, पुनर्जीवन में विश्वास, प्राकृतिक वस्तुओं की पूजा, मिथकों और किंवदंतियों में विश्वास, ये सभी धार्मिक विश्वासों का हिस्सा थे। यूरोपीय लोगों के आने से पहले इसी तरह की मान्यताएं स्वदेशी लोगों के जीवन के हर पहलू को नियंत्रित करती थीं। फ़िजी में हिंदू धर्म दूसरा प्रमुख धर्म है और इस देश की आबादी का 27.9 प्रतिशत हिस्सा हिंदू है।
वर्ष 1879 और 1920 के बीच फ़िजी के चीनी बागानों में काम करने के लिए ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा भारत से लाए गए गिरमिटिया हिंदू श्रमिकों द्वारा फ़िजी में हिंदू धर्म की शुरुआत की गई। इनमें से कई श्रमिक और उनके परिवार फ़िजी में बस गए और जल्द ही उनका धर्म फ़िजी के समाज का एक अभिन्न अंग बन गया। धीरे-धीरे सनातन संस्कृति ने इस देश की विरासत को समृद्ध और गौरवशाली बनाया।
देश में कई बड़े और प्रभावशाली हिंदू मंदिर निर्मित किए गए। इन मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध इस्कॉन का कृष्ण मंदिर है, जो भारत के बाहर “इस्कॉन का सबसे बड़ा मंदिर” है। फ़िजी के हिंदुओं का जीवन पूरी तरह से शांतिपूर्ण नहीं रहा है क्योंकि समुदाय ने सांप्रदायिक अशांति और तख्तापलट की कई घटनाओं के दौरान उत्पीड़न का सामना किया। हालांकि, फ़िजी का हिंदू समुदाय अभी भी फल-फूल रहा है और उसने कई मंदिरों, स्कूलों और अन्य संस्थानों का निर्माण किया है, जो फ़िजी में उनकी धार्मिक, शैक्षिक और अन्य ज़रूरतों के भार को वहन करते हैं।
उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा था क्योंकि…
1990 के दशक के उत्तरार्ध के दौरान, फ़िजी में हिंदुओं के खिलाफ कट्टरपंथी दंगों की एक श्रृंखला भड़की। वर्ष 2000 के वसंत में प्रधानमंत्री महेंद्र चौधरी के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई फ़िजी सरकार को जॉर्ज स्पाइट के नेतृत्व वाले एक समूह ने बंधक बना लिया । उन्होंने विशेष रूप से मूल फ़िजीवासियों के लिए एक अलग राज्य की मांग की, जहां हिंदूओं के कोई अधिकार ना हों। हिंदू स्वामित्व वाली दुकानों, हिंदू स्कूलों और मंदिरों को तोड़ा गया और उन्हें लूट लिया गया। पर, फ़िजी के हिंदू घबराए नहीं। उदाहरण के लिए, 1910 में नाडी (फ़िजी का एक नगर) में शिव हिंदू मंदिर बनाया गया। हालांकि, यह मंदिर 2008 में हिंदुओं के खिलाफ एक आगजनी हमले और सांप्रदायिक हिंसा में नष्ट हो गया था।
और पढ़ें:- महादजी शिंदे : पानीपत के राख से निकले वो शूरवीर जिन्होंने महाराष्ट्र का भाग्य बदल दिया
जब हिंदू समुदाय को मिली राजनीतिक शक्ति
परंतु, नाडी में श्री शिव सुब्रमण्यम हिंदू मंदिर आज भी फ़िजी का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है। उदाहरण के लिए, स्वामी विवेकानंद के भक्त जी. कुप्पुस्वामी नायडू, जिन्हें बाद में साधु स्वामी के नाम से जाना गया, ने फ़िजी के विभिन्न द्वीपों का दौरा किया और विशेष रूप से दक्षिण भारत के विभिन्न हिंदू समुदायों से मुलाकात कर मंदिरों की शृंखला स्थापित की।
आज हिंदू फ़िजी के एक सम्पन्न और समृद्ध समुदाय में से है। सतत संघर्षरत और अनवरत युद्धरत रहते हुए हिन्दुओं ने सनातन ध्वज को कभी झुकने नहीं दिया। होली, दिवाली वहां के प्रमुख त्योहारों में से है। इतना ही नहीं, करीब 5000 हिंदुओं ने द्वितीय विश्व युद्ध में फ़िजी की रक्षा भी की और सबसे बड़ी बात धर्म के आधार पर वर्षों से धार्मिक प्रताड़णा झेलने वाले हिंदू समुदाय ने राजनीतिक शक्ति पाते ही सुनिश्चित किया कि फ़िजी में अब सभी को धार्मिक स्वतन्त्रता मिलेगी। धन्य है, ऐसा वीर समाज!