बृहदेश्वर मंदिर – विश्व में बहुत सी ऐतिहासिक महत्व की चीजें हैं। हर देश अपने अतीत का रक्षण करता है। मानव संस्कृति के लिहाज से ऐसी जगहें और इमारतें जिनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता है, UNESCO उनकी सूची बनाकर उन्हें विश्वधरोहर यानी वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल करता है। जिसके बाद संरक्षण, रखरखाव और वैश्विक प्रचार में UNESCO मददगार होता है।
वर्तमान में भारत में कुल 40 UNESCO विश्व विरासत स्थल हैं, जिनमें 7 प्राकृतिक, 32 सांस्कृतिक और 1 मिश्रित स्थल हैं। अभी वर्तमान में पूरे विश्व में 1154 UNESCO विश्व विरासत स्थल हैं, जिसमें 897 सांस्कृतिक, 218 प्राकृतिक और 39 मिश्रित स्थल हैं।
भारत में सर्वप्रथम एलोरा की गुफाएं (महाराष्ट्र) को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था। भारत का 39 वां विश्व धरोहर विरासत धरोहर स्थल कालेश्वर (रामप्पा) मंदिर तेलंगाना में स्थित है। भारत का 40 वां विश्व विरासत धरोहर स्थल हड़प्पा सभ्यता का शहर धोलावीरा है, जो गुजरात में स्थित है। महाराष्ट्र राज्य में सबसे ज्यादा UNESCO विश्व विरासत स्थल हैं जहां पर 5 UNESCO साइट हैं।
एक बार विश्व धरोहर साबित हो जाने पर, वो जगह पर्यटन का केंद्र बन जाती है। उदाहरण के लिए रामप्पा मंदिर को ले लीजिए। वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित हो जाने के बाद भीड़ वहां बढ़ने लगी।
हमारे देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है बृहदेश्वर मंदिर, बृहदेश्वर मंदिर दक्षिण भारत में स्थित प्राचीन वास्तुकला का एक सुंदर उदाहरण है। तंजावुर में 11 वीं शताब्दी का भव्य बृहदेश्वर मंदिर राज्य में चोल वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। यह अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और बीचोंबीच बनी विशालकाय गुंबद से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को UNESCO ने विश्व धरोहर घोषित किया है।
अब वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स बनने का फायदा है तो नुकसान भी है। नुकसान यह है कि अगर वो स्थल, पूजा का स्थल है तो पर्यटन केंद्र बनने की वजह से उसकी पवित्रता प्रभावित होती है।
कल्पना करिए कि आप एक मंदिर में है। वो UNESCO की विश्व विरासत धरोहर है। आप के अलावा मंदिर में सैकड़ो लोग है। आप पूजा कर रहे हैं और वह पिकनिक मना रहे हैं। आपको कैसा लगेगा?
बतौर एक धार्मिक व्यक्ति, आपकी श्रद्धा बाकियों से अलग होगी। उनके लिए वह एक दीवार है जहां वह ताजमहल की तरह राहुल लव पूजा लिख सकते हैं। संरक्षण और पूजा एक साथ बरकरार नहीं हो सकता है।
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हमारे एक पाठक ने बृहदेश्वर मंदिर का अपना अनुभव हमारे साथ साझा किया । उन्होने लिखा कि, “बृहदेश्वर मंदिर में दर्शन करने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं इसके लिए अति उत्सुक था लेकिन मंदिर के द्वार पर मुझे एक झटका लगा । मैंने देखा कि हिंदुओं के सबसे बड़े मंदिरों में से एक मंदिर में दूसरे धर्म के लोगों को भी प्रवेश की अनुमति थी। अब क्योंकि वहाँ उन लोगों को भी प्रवेश की अनुमति है, जो मूर्ति पूजक नहीं है, मंदिर का प्रांगण किसी पब्लिक पार्क की भांति लग रहा था जहां लोग अपने प्रेमियों के साथ हाथ पकड़ कर घूम रहे हैं। कुछ लोग वहाँ घास पर लोटते हुए और खेलते हुए दिखाई दिये। मुझे लगा था कि यहाँ मुसलमान क्यों आएंगे? वो तो मूर्ति पुजा नहीं करते लेकिन यह दृश्य देखकर मुझे अचंभा हुआ।”
हमने इस विषय पर थोड़ी जांच की तो हमें पता चला कि UNESCO के इस टैग की वजह से यह स्थिति है कि बृहदेश्वर मंदिर से 500 मीटर दूर आपको मुर्गा, मछली और बकरा खाने को मिल सकता है। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो बुर्के में महिलाएं अपने प्रेमी के साथ यहाँ घूमती रहती हैं।
यह सब वहां हो रहा है, जहां भगवान शिव का मंदिर है। आप इन चीजों पर रोक नहीं लगा सकते क्योंकि UNESCO ने उसको पर्यटन स्थल बना दिया है। पूर्व अधीक्षण पुरातत्वविद् टी सत्यमूर्ति कहते हैं, “तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर और कांचीपुरम में वैकुंटा पेरुमल मंदिर और कांची कैलासनाथ मंदिर, 1920 के दशक में ASI के संरक्षण में आए थे और पूजा और धार्मिक गतिविधियों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था।”
लेकिन ASI के सर्वेक्षणकर्ता यह भूल गए कि हर मंदिर के साथ यह पवित्रता बरकरार रखना सम्भव नहीं है। आज अपने पूर्ण स्वतंत्र ना होने की वजह से मंदिर की मरम्मत भी ढंग से नहीं हो पा रही है। मंदिर की पवित्रता भी प्रश्नों के घेरे में है। इसमें नुकसान सिर्फ हिंदुओ का है। इस मंदिर की अपनी एक महत्ता है। भगवान शिव की आराधना का केंद्र रह चुका यह मंदिर, सिर्फ एक टैग का खामियाजा भुगत रहा है।