भारत ने रूस के साथ ‛2+2 मिनिस्ट्रीयल टॉक’ का सफल आयोजन किया है। इस अवसर पर भारत ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाया और चीन का नाम लिए बिना ही भारत के रक्षा मंत्री ने स्पष्ट रूप से रूस के समक्ष यह बात रखी कि भारत अपने उत्तरी सीमा (जो कि तिब्बत बॉर्डर है) पर आक्रामक नीति और मिलिटराइजेशन का सामना कर रहा है। भारत ने अपने बयान से अमेरिका तथा अन्य क्वाड देशों के साथ बढ़ रही अपनी रणनीतिक साझेदारी के संदर्भ में अपनी स्थिति स्पष्ट की है। इसके अतिरिक्त इस दौरे की दूसरी विशेष घटना कई डिफेंस डील पर हस्ताक्षर तथा तकनीकी साझेदारी के समझौते पर पुनः हस्ताक्षर रहा।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण था भारत और रूस के बीच हुआ RELOS ‛Reciprocal Exchange of Logistics’ समझौता। यह एक द्विपक्षीय समझौता है, जिसके बाद अब भारत और रूस एक दूसरे के मिलिट्रीबेस, एयरबेस, बंदरगाहों आदि का प्रयोग कर सकते हैं। भारत ने इसके पूर्व अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, फ्रांस और सिंगापुर के साथ इस प्रकार का एग्रीमेंट कर रखा है। इस समझौते के बाद भारतीय और रूसी जल सेना, थल सेना और वायुसेना एक दूसरे के मिलिट्रीबेस से रिफ्यूलिंग, मेडिकल असिस्टेंस, भोजन, स्पेयर पार्ट्स आदि प्राप्त कर सकेंगी।
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रूस और अमेरिका दोनों के साथ भारत के बेहतर संबंध
यह समझौता भारत के लिए एक कूटनीतिक विजय है, क्योंकि भारत संसार की एकमात्र ऐसी शक्ति है जिसने अमेरिका और रूस दोनों के साथ इस प्रकार का लॉजिस्टिक समझौता किया है। इसे भारतीय विदेश नीति की सफलता मानी जाएगी, क्योंकि एक ही समय पर भारत, अमेरिका और रूस जैसे दो पारंपरिक शत्रुओं के साथ सांस ले रहा है और दोनों देशों के साथ घनिष्ठ सैन्य संबंध बनाए हुए है।
देखा जाए तो भारत को रूस के मिलिट्रीबेस की जितनी आवश्यकता है, उतनी रूस को भारतीय मिलिट्री बेस की आवश्यकता नहीं है। रूस की अर्थव्यवस्था अधिकांश चीन व यूरोप को होने वाले निर्यात पर निर्भर करती है। ऐसे में रूस के लिए हिंद महासागर में स्थित भारतीय मिलिट्रीबेस उतने उपयोगी नहीं है, जितने भारत के लिए आर्कटिक, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया एवं अफ्रीका में स्थित रूसी मिलिट्रीबेस महत्वपूर्ण हैं।
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प्रशांत महासागर क्षेत्र में बढ़ेगा भारत का प्रभाव
चीन और भारत मध्य एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए संघर्षरत हैं। भारत ने मध्य एशिया के देशों के साथ आर्थिक सहयोग तथा आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त संघर्ष को मुद्दा बनाया है, वहीं चीन अपनी सैन्य दादागिरी और आर्थिक शक्ति का प्रयोग कर रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र में चीनी दबदबे को कम करने के लिए भारत और रूस उनके मिलिट्रीबेस का प्रयोग कर सकते हैं।
इसके अलावा भारत इस समय पश्चिम एशिया में इजराइल और UAE के साथ मिलकर कार्य कर रहा है। तुर्की, भारत विरोधी गुट में शामिल है। भारत पश्चिम एशिया में स्थित रूसी मिलिट्रीबेस का प्रयोग करके तुर्की पर दबाव बना सकता है। साथ ही प्रशांत महासागर में स्थित रूसी बेस भारत को प्रशांत क्षेत्र में एवं सुडान का बेस हिन्द महासागर क्षेत्र और अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाने का मौका देगा।
वहीं, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया आदि प्रशांत महासागर के देशों से भारत का सहयोग बढ़ा है। इस क्षेत्र में अमेरिका भी भारत के साथ है। ऐसे में रूस ही चीन का एकमात्र सहयोगी था, लेकिन भारत ने उसे कम से कम निष्पक्ष स्थिति में रख दिया है। इस समझौते के बाद अब भारत पूरे हिन्द-प्रशांत महासागर क्षेत्र में नौसैनिक गश्त कर सकता है तथा इस क्षेत्र और अफ्रीका के पूर्वी हिस्से में अपने प्रभाव का विस्तार कर सकता है।
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रूस को नहीं है पसंद चीन की दादागिरी
रूस के लिए भारत की प्रासंगिकता यह है कि भारत लोकतांत्रिक देशों के बीच एकमात्र ऐसा देश है, जो रूस के पक्ष में खड़ा रहता है। यूक्रेन के मामले पर रूस पश्चिमी देशों के रवैये के विरुद्ध भारत का सहयोग चाहता है। यह सत्य भी है कि बाइडन प्रशासन ने रूस पर अनावश्यक दबाव बनाना शुरू कर दिया है। अमेरिका में सक्रिय चीन समर्थक लॉबी रूस और अमेरिका के बीच आपसी समझौते के लिए सकारात्मक माहौल नहीं तैयार होने देना चाहती। साथ ही अमेरिका ने जिस तरह से अफगानिस्तान से सेना की वापसी कराई है, उससे पूरे मध्य एशिया की सुरक्षा दांव पर लग चुकी है। रूस का मध्य एशिया पर पारंपरिक रूप से अच्छा प्रभाव रहा है। ऐसे में रूस के लिए भी यह चिंता का विषय है। साथ ही इस क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव और दादागिरी रूस को स्वीकार नहीं है। ऐसे में भारत और रूस के पास मध्य एशिया में सहयोग के लिए पर्याप्त अवसर मौजूद हैं।