आज से 15 वर्षों के बाद, हमारी और आपकी जिंदगी में ग्रीन हाइड्रोजन का बहुत बड़ा स्थान होगा। यह हम नहीं कह रहे हैं, यह तो नियति का वो सच है, जिसे टाला नहीं जा सकता है। भारत समेत दुनिया के तमाम देश इस पर काम करना आरंभ कर चुके हैं। ग्रीन हाइड्रोजन एक रासायनिक पदार्थ है, जो ऊर्जा के स्रोत से लेकर तमाम अन्य तरीकों से इस्तेमाल होता है। ग्रीन हाइड्रोजन एक ऐसी प्रक्रिया द्वारा निर्मित होता है, जो किसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करता है। ग्रीन हाइड्रोजन को ईंधन बनाने के लिए विश्व स्तर पर प्रयास जारी है, जो देशों को अपने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता हैं।
अक्षय ऊर्जा से चलने वाली बिजली का उपयोग करके इलेक्ट्रोलाइज़र में पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करके ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है। भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की है। यह अनुमान है कि भारत में रिफाइनरियों, उर्वरकों और सिटी गैस ग्रिड जैसे अनुप्रयोगों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन की मांग साल 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के अनुरूप बढ़कर 2 मिलियन टन प्रति वर्ष हो जाएगी। इसके लिए 60 अरब डॉलर से ऊपर के निवेश की जरूरत होगी। मौजूदा समय में इस क्षेत्र से बड़ी खबर सामने आ रही है। खबर का मूल सार इतना ही है कि भारत विश्व का हाइड्रोजन शक्ति बनने जा रहा है, क्योंकि दो बड़े उद्योग घराने इस क्षेत्र में सम्भावनाओं का मुद्रीकरण करने के लिए एक साथ आ गए हैं।
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ग्रीन हाइड्रोजन सेगमेंट में उपलब्ध हैं कई अवसर
निर्माण क्षेत्र की प्रमुख कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (L&T) और प्रमुख अक्षय ऊर्जा कंपनी रिन्यू पावर (ReNew Power) ने बीते गुरुवार को भारत में 60 अरब डॉलर के उभरते ग्रीन हाइड्रोजन बाजार का लाभ उठाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। कंपनियां दो साल में भारत और पड़ोसी देशों में सेगमेंट से 2 अरब डॉलर की व्यापार क्षमता को लक्षित कर रही हैं।
L&T के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एस एन सुब्रह्मण्यन ने कहा, “यह साझेदारी ईपीसी (इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण) परियोजनाओं को डिजाइन करने, निष्पादित करने और वितरित करने में L&T के ट्रैक रिकॉर्ड और उपयोगिता-स्तरीय नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को विकसित करने में रिन्यू की विशेषज्ञता को एक साथ लाती है।”
गुरुग्राम स्थित रिन्यू के चेयरमैन और सीईओ सुमंत सिन्हा ने कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन सेगमेंट में कई अवसर उपलब्ध हैं। सिन्हा ने कहा, “आने वाले प्रत्येक अवसर के लिए, हम अनिवार्य रूप से एक विशिष्ट इकाई को एक साथ रखेंगे जो आगे बढ़कर उस विशेष परियोजना के लिए भुगतान करेगी।” उन्होंने कहा कि कंपनियां अपने सभी संसाधनों को जमा करेंगी और बोली लगाएंगी।
अभी शुरुआती दौर में है हाइड्रोजन इंडस्ट्री
आंकड़ो की मानें तो 500-मेगावाट हाइड्रोजन संयंत्र स्थापित करने की अनुमानित लागत लगभग एक अरब डॉलर होगी, जिसमें से 70% आमतौर पर अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने में और 30% इलेक्ट्रोलाइज़र में जाता है। L&T के पूर्णकालिक निदेशक और वरिष्ठ कार्यकारी उपाध्यक्ष (ऊर्जा) सुब्रमण्यन सरमा ने कहा कि कंपनियां पहले से ही भारतीय बाजार में ग्रीन हाइड्रोजन के अवसर तलाश रही हैं। उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि शायद दो से तीन वर्षों के समय में हमारे पास $2 बिलियन का व्यवसाय निर्माण जैसा कुछ होना चाहिए, लेकिन यह बाजार के काम करने के तरीके के आधार पर बहुत तेज़ी से बढ़ सकता है।”
वहीं, एक सलाहकार कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हम इस तरह की और साझेदारी देखेंगे, क्योंकि बाजार बहुत बड़ा है और सभी कंपनियां शुद्ध शून्य महत्वाकांक्षाओं की घोषणा कर चुकी हैं और ग्रीन हाइड्रोजन उन्हें अपने लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेगी।”
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दूसरी ओर भारत सरकार भी मिशन हाइड्रोजन पर कार्य कर रही है। पृथ्वी पर पानी सबसे बड़े संसाधन के रूप में उपस्थित है। जल (H2O) में हाइड्रोजन के दो परमाणु होते हैं। बिजली की सहायता से हाइड्रोजन को ऑक्सीजन से अलग करना संभव है और इस प्रक्रिया में प्राप्त हाइड्रोजन का प्रयोग ईंधन के रूप में हो सकता है। हालांकि, अभी हाइड्रोजन इंडस्ट्री अपने शुरुआती दौर में है किंतु 2018 से ऑस्ट्रेलिया में हुई एक रिसर्च में हाइड्रोजन का प्रयोग करके कार, स्टील प्लांट, पानी के जहाज आदि चलाने पर शोधकार्य हो रहा है। भविष्य में इस क्षेत्र में अनंत संभावनाएं हैं और हर तरीके से यह फायदेमंद भी है। भारत की कई बड़ी कंपनियां हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ चुकी हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत 10 साल बाद के ‘ग्रीन हाइड्रोजन मार्केट’ का महाशक्ति बनने को तैयार है।