हिमालय की तलहटी में बसा जम्मू-कश्मीर अपने सांस्कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों के लिए मशहूर है। धारा-370 को हटाने के बाद से केंद्र की मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए लगातार काम कर रही है। सरकार इस प्रदेश के लिए कई लाभकारी योजनाओं को हरी झंड़ी दिखा चुकी है। राज्य में उद्योग धंधे को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार की ओर से लगातार काम किया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर के तीन हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट में 20,000 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है, लेकिन ये मात्र 3200 मेगावाट बिजली पैदा करते हैं। राज्य में इस सेक्टर में भ्रष्टाचार चरम पर है। ऐसे में केंद्र सरकार ने ज्वाइंट वेंचर के तहत इस क्षेत्र का पुनरुद्धार करने का फैसला किया, जिसके बाद इस सेक्टर के कर्मचारी सरकार के विरोध में उतर गए और प्रदेश में ब्लैकआउट जैसी समस्या पैदा हो गई है।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर में बिजली विभाग के 20,000 कर्मचारी हड़ताल पर बैठ गए हैं, जिनमें लाइनमैन से लेकर इंजीनियर तक शामिल हैं। हड़ताल करने वाले कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार समय पर वेतन का भुगतान नहीं कर रही है और बिजली क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा देना चाह रही है। कर्मचारियों के हड़ताल के कारण हालात इतने बिगड़ गए कि जम्मू-कश्मीर के 40 फीसदी हिस्से में ब्लैक आउट जैसी समस्या पैदा हो चुकी है। कई महत्वपूर्ण पावर स्टेशन से बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सेना का प्रयोग करना पड़ रहा है।
बिजली का निर्यातक बन सकता है जम्मू-कश्मीर
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में पावर सप्लाई में होने वाला टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस अर्थात् तकनीकी और वाणिज्यिक कारणों से होने वाली क्षति, पूरे भारत में सबसे अधिक है। जम्मू-कश्मीर में उत्पादित कुल बिजली का 60.5 फीसदी भाग टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस की भेंट चढ़ जाता है। इस राज्य में चिनाब, झेलम और रावी नदी पर कार्य कर रहे तीन हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट में 20,000 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है, किंतु जम्मू-कश्मीर में विभिन्न माध्यमों से मात्र 3200 मेगावाट बिजली ही पैदा हो पा रही है। यदि जम्मू कश्मीर अपनी पूरी क्षमता से बिजली पैदा करता है, तो वह बिजली आयातक राज्य के बजाय बिजली निर्यातक राज्य बन सकता है।
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Jammu and Kashmir reported the highest amount of losses in power distribution this year. 60.5% loss listed under ‘Technical and Commercial losses’, a pseudonym for wide-scale corruption. Entire villages & many town areas skip paying electricity bills, bribes take care of them.
— Shubhangi Sharma (@ItsShubhangi) December 22, 2021
इन समस्याओं के कारण सरकार को बिजली क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता महसूस हुई। सर्वप्रथम वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर क्षेत्र को दो डिवीजन में बांटकर जम्मू और कश्मीर के लिए अलग-अलग डिवीजन बना दिए गए। पहले पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए एक डिवीजन था और सभी कर्मचारियों के वेतन का सैलेरी बिल सीधे सरकार के राजकोष को भेजा जाता था। किंतु अब वेतन भुगतान का कार्य CAPO के अधीन कर दिया गया है, जो हर डिवीजन से प्राप्त होने वाले सर्विस बिल की जांच करता है और तब वेतन का भुगतान करता है। यदि किसी एक डिवीजन के सर्विस बिल में कमी पाई जाती है, तो वेतन भुगतान में समय लगता है। किंतु जम्मू-कश्मीर में काम कर रहे बिजली विभाग के कर्मचारियों की शिकायत है कि उन्हें पहले की तरह बिना CAPO जांच के सीधे राजकोष से वेतन का भुगतान हो।
Statement on electricity situation in Jammu Kashmir. pic.twitter.com/W14iTtrjtL
— Office of LG J&K (@OfficeOfLGJandK) December 20, 2021
ज्वाइंट वेंचर के तहत कार्य करना चाहती है सरकार
जम्मू-कश्मीर बिजली विभाग में भ्रष्टाचार इस हद तक है कि कई गांव और जिले में बिजली बिल जमा ही नहीं होते और न ही इसकी कोई जांच होती है। अगर कभी जांच हुई भी तो भ्रष्टाचार के कारण मामला दब जाता है। इन्हीं कारणों से केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर पावर कॉरपोरेशन से पावर डिस्ट्रीब्यूशन का काम लेकर पावर ग्रिड कॉरपोरेशन के अधीन करने का निर्णय किया है। सरकार निजी क्षेत्र के साथ 50 फीसदी से अधिक का स्वामित्व रखते हुए ज्वाइंट वेंचर के तहत कार्य करना चाहती है। सरकार का उद्देश्य निजी कंपनियों के माध्यम से बिजली उत्पादन को बढ़ाना तथा टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस के नाम पर होने वाली बिजली की बर्बादी को रोकना है, किंतु जम्मू-कश्मीर के बिजली विभाग के कर्मचारी इन सुधारों को कतई स्वीकार नहीं करना चाहते हैं।
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जम्मू-कश्मीर में लागू हो रहा बिजली सुधार राज्य के विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक है। कृषि कानून के मुद्दे पर देशहित को देखते हुए केंद्र सरकार हाल ही में इस मामले पर पीछे हट गई, जिसके बाद अब जम्मू-कश्मीर के विकास विरोधी तत्वों को भी ऐसा लग रहा है कि वे अपनी मनमानी कर लेंगे और सरकार को बैकफुट पर धकेल देंगे। दूसरी ओर केंद्र सरकार को भी इस प्रकार के विरोध को बलपूर्वक दबा देना चाहिए, क्योंकि राज्य के हित में हो रहे काम में यदि कोई अडंगा लगाए फिर कार्रवाई तो जरुरी है! केंद्र सरकार को यह समझना चाहिए कि यह विरोध जम्मू-कश्मीर में हो रहा है, जहां पहले ही देश विरोधी तत्व बहुत सक्रिय हैं। केंद्र सरकार सुस्त दिखेगी, तो यह विरोध धीरे-धीरे धारा-370 को पुनः लागू करने की मांग तक जा सकता है!