JNU के भोले छात्रों के हसीन सपने – बाबरी मस्जिद दोबारा बनानी चाहिए

'कसम बाबर की खाते हैं, मस्जिद वहीं बनायेंगे!'

जेएनयू बाबरी

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“कसम बाबर की खाते हैं, मस्जिद वहीं बनायेंगे!”

अजीब प्रतीत होता है न, परन्तु यही सत्य है. कुछ लोग अभी भी ऐसा सोचते हैं कि सरकार से लेकर प्रशासन तक, सब उनके क़दमों तले होगी और उनकी जयजयकार करते हुए उनके ‘हुक्म की तामील करेगी’, यानि उनके अनुसार काम करेगी. अभी हाल ही में सनातनियों का उपहास उड़ाने वाले डॉक्यूमेंट्री ‘राम के नाम’ को ज़बरदस्ती स्क्रीन कराने के बाद अब जेएनयू के छात्र संघ को लगता है कि वे बाबरी मस्जिद को पुनर्निर्मित करवा लेंगे और कोई कुछ नहीं कर पायेगा.

हम आपसे मज़ाक नहीं कर रहे हैं, यह शत प्रतिशत सत्य है. बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दिन यानी 6 दिसंबर को जेएनयू छात्रसंघ की ओर से बाबरी ढांचे के विध्वंस की बरसी के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में विवादित नारेबाजी के वीडियो क्लिप्स सामने आए हैं। वायरल हो रही वीडियो में मूल स्थल पर दोबारा से बाबरी मस्जिद बनाए जाने की मांग की गई है, जिसे लेकर विवाद छिड़ गया है। वहीं, दूसरी ओर जेएनयू छात्र संघ के उपाध्यक्ष साकेत मून ने इस नारेबाजी को सही करार दिया है।

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JNU छात्र संघ के उपाध्यक्ष का विवादित बयान

मीडिया से बातचीत में साकेत ने बताया, “यदि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बाबरी मस्जिद को गिराना गलत था, तो फिर पूरी जमीन पर मंदिर बनाने का फैसला क्यों दिया गया? यह फैसला गलत था और इंसाफ होना चाहिए। इसका इंसाफ यही होगा कि बाबरी मस्जिद को गिराने वालों को सजा मिले और उसका एकबार फिर से निर्माण कराया जाए. हमने हाशिमपुरा, दादरी और बाबरी के नारे लगाए थे। जिस तरह से हाशिमपुरा और दादरी अन्याय के प्रतीक हैं, उसी तरह से बाबरी ढांचे का विध्वंस भी अन्याय है और इसे तभी दूर किया जा सकता है, जब बाबरी मस्जिद का निर्माण किया जाए। हालांकि, उनके इस बयान से जेएनयू छात्र संघ ने ही दूरी बना ली है।”

दिल बहलाने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है, परन्तु ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. कुछ ही दिनों पूर्व JNU प्रशासन के सख्त निर्देश के बावजूद वामपंथी गुट ने भड़काऊ डॉक्यूमेंट्री ‘राम के नाम’ को स्क्रीन कराया, जिसमें सनातन धर्म का उपहास उड़ाया गया और बाबरी मस्जिद के विध्वंस को राष्ट्रीय शर्म का विषय करार देने का प्रयास किया गया था. जेएनयू प्रशासन के एक नोटिस के बाद भी स्क्रीनिंग हुई थी और छात्र संघ का कहना था कि प्रशासन यह तय नहीं कर सकता है कि छात्र किस चीज को देखें और किसे नहीं।

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उनके वामपंथी सहयोगी ही नहीं कर रहे हैं सपोर्ट

लेकिन साकेत मून और अन्य छात्रों के उस विवादित बयान का उनके खुद के वामपंथी सहयोगी ही समर्थन करने को तैयार नहीं है. छात्र संघ के महासचिव सतीश चंद्र यादव ने कहा, ‘जेएनयू छात्र संघ ने ऐसी मांग नहीं उठाई है। मून ने यह कहा है कि कोर्ट ने यह स्वीकार किया था कि बाबरी का विध्वंस गलत है। इसलिए उसे दोबारा बनाया जाना चाहिए।’

यही नहीं, मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जेएनयू में हमेशा ऐसी ही चीजें सिखाई जाती रही हैं। अब रही बात सुप्रीम कोर्ट के आड़ में अपनी कुत्सित मानसिकता को प्रकट करने की, तो ऐसे लोगों को बता दें कि उसी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि मुस्लिम समुदाय अपने मस्जिद को एक वैकल्पिक स्थान पर बना सकते है, तो आखिर वे किसे उल्लू बना रहे हैं? वास्तव में JNU के छात्र एक अलग ही लोक में रहते हैं, जहां यही सर्वशक्तिशाली है, पर शायद ये जानते नहीं कि ये 2021 है, 1991 नहीं.

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