मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी के सभी बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिए गए हैं। टेरेसा संस्थान के बैंक अकाउंट से किसी प्रकार का आर्थिक लेनदेन नहीं हो सकेगा। इस समाचार पर प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह समाचार सत्य नहीं है। यह ममता बनर्जी के प्रोपेगेंडा का हिस्सा है, जिसे क्रिसमस पर आगे बढ़ाया गया। ममता बनर्जी ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से यह झूठी खबर फैलाई।
Shocked to hear that on Christmas, Union Ministry FROZE ALL BANK ACCOUNTS of Mother Teresa’s Missionaries of Charity in India!
Their 22,000 patients & employees have been left without food & medicines.
While the law is paramount, humanitarian efforts must not be compromised.
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) December 27, 2021
इस अफवाह के फैलने के बाद वामपंथी पत्रकारों से लेकर कांग्रेसी नेताओं तक सभी सरकार पर टूट पड़े। तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने सरकार पर आरोप लगाया कि मदर टेरेसा के संस्थान पर जानबूझकर हमला हुआ है और अब जबकि ममता बनर्जी ने विरोध कर दिया है तो सरकार डर गई है और पूरे मामले को दबा रही है। उन्होंने लिखा कि ‛25 दिसंबर को मदर टेरेसा के मिशनरीज ऑफ चैरिटी पर एक प्रहार करने के बाद, अब गृह मंत्रालय वह कर रहा है जो वह सबसे अच्छा करता है: स्पिनडॉक्टरिंग और एक कवर अप।….भारत में एक विपक्ष है जो अच्छी लड़ाई लड़ेगा। और मेरे पास एक ऐसा नेता है जो हमेशा उत्पीड़ितों के लिए खड़ा रहेगा @MamataOfficial’
After a filthy hit job on Mother Teresa’s Missionaries of Charity on December 25,now MHA doing what it does best: SPIN DOCTORING & a COVER UP.
India has an Opposition that will fight the good fight. And I have a leader who will always stand up for the oppressed @MamataOfficial
— Derek O'Brien | ডেরেক ও'ব্রায়েন (@derekobrienmp) December 27, 2021
इसके बाद शशि थरूर सहित कई कांग्रेसी समर्थक लोग भी इस मामले में कूद पड़े। हालांकि, वास्तविकता इससे कोसों दूर थी। सरकार ने टेरेसा संस्थान के बैंक खातों को फ्रीज नहीं किया था बल्कि स्वयं संस्थान ने ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से अनुरोध किया था कि उसके बैंक खातों को फ्रीज किया जाए। टेरेसा के संस्थान को विदेशों से फंडिंग मिलती है। इसके लिए इस संस्था को देश की अन्य NGO की तरह FCRA रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है। मिशनरीज ऑफ चैरिटी ने अपना रजिस्ट्रेशन रिन्यू नहीं करवाया है। यह रजिस्ट्रेशन 31 अक्टूबर तक ही वैध था जिसे पहले ही बढ़ाकर 31 दिसंबर तक किया जा चुका है।
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किंतु 25 दिसंबर को हुई समीक्षा में NGO द्वारा FCRA की सभी गाइडलाइन को पूरा नहीं किया गया था जिस कारण इसका रिन्यूअल रोक दिया गया। सरकार की ओर से बयान में कहा गया है कि ‛पात्रता शर्तों को पूरा नहीं करने के लिए 25 दिसंबर को नवीनीकरण से इनकार कर दिया गया था और “नवीकरण के इस इनकार की समीक्षा के लिए मिशनरीज ऑफ चैरिटी (एमओसी) से कोई अनुरोध / संशोधन आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है।’
पूरा मामला यह था कि मिशनरीज ऑफ चैरिटी ने FCRA की गाइडलाइन को पूरा नहीं किया था, जिस कारण समय पर उनका लाइसेंस रिन्यू नहीं हो सका, उन्होंने रिन्यूअल के लिए दोबारा आवेदन भी नहीं किया और स्वयं ही रिन्यूअल ना मिलने की स्थिति में टेरेसा संस्थान ने बैंक खातों को फ्रीज करने का अनुरोध स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से किया। इस मामले में सरकार ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी के विरुद्ध कोई कार्यवाही की ही नहीं थी। केवल उनसे भारतीय कानून के अनुसार रिन्युवल करवाने की बात रखी थी, जो ट्रस्ट द्वारा पूरी नहीं हुई।
जब सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की तब भी केवल प्रोपेगेंडा के बल पर भारत ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी इस मामले को जोर-शोर से उठाया गया। अल जजीरा से लेकर बीबीसी तक, कई प्रसिद्ध समाचार पत्रों में मोदी सरकार की आलोचना होने लगी। कल्पना कीजिए कि यदि सरकार ने वास्तव में मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा किए जाने वाले कन्वर्जन के विरुद्ध कोई कार्रवाई की होती तो कितना विलाप हुआ होता।
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टेरेसा को उनके कथित सेवा कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। गुलाम मानसिकता से ग्रस्त भारतीय मदर टेरेसा को मिले नोबेल पुरस्कार पर अपनी पीठ थपथपाने लगे थे। 1979 में जब उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला उसके अगले साल 1980 में भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया दिया।
हालांकि, मदर टेरेसा का कार्य पूरी तरह से हिंदुओं के कन्वर्जन पर ही टिका था। उनके द्वारा चलाए जाने वाले हॉस्पिटल में अप्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा लोगों का इलाज किया जाता था। उनकी सेवाओं की इस आधार पर बहुत आलोचना हुई कि उनके अस्पताल लोगों को बचाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें ईसाई बनाकर मारने के लिए है। हालात इतने खराब थे कि कई बार मरीजों को एक साथ ही शौचालय में शौच करना पड़ता था। उनके परिजनों को उनसे मिलने की छूट नहीं थी। टेरेसा बीमारी और गरीबी को गिफ्ट ऑफ गॉड कहती थी क्योंकि बीमार और गरीब व्यक्तियों को वह सेंट पीटर का टिकट देती थी।
"World is greatly helped by the terrible suffering of the poor people." – Mother Teresa
"29,000 have died in our one house since we began in 1952. We give all of them a special ticket of St. Peter [Laughter]. It's so beautiful to see people die with so much joy." – Mother Teresa pic.twitter.com/wlHWBY4eO6
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) December 27, 2021
मदर टेरेसा के साथ कार्य कर चुके लोगों ने भी इस बात की आलोचना की है कि उन्होंने गरीबों की सेवा सिर्फ कन्वर्जन के उद्देश्य से की। इसी कारण बीमार व्यक्तियों का ठीक प्रकार से इलाज नहीं कियाजा सकता था जिससे वह और पीड़ित महसूस करें एवं उन्हें बरगलाना आसान हो जाए। टेरेसा पर कार्य कर चुके बहुत से पत्रकार जिनमें भारतीय और विदेशी पत्रकार शामिल है, उन्हें Hell’s Angle कहते हैं।
The poetic, charming and fierce Christopher Hitchens, talking about Mother Teresa. pic.twitter.com/l4gVM9JtQc
— Hardik Rajgor (@Hardism) December 27, 2021
टेरेसा ने तलाक से लेकर गर्भपात तक, कई मुद्दों पर दकियानूसी बातें की थी। उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपी गई इमरजेंसी का समर्थन किया था। कांग्रेस से अच्छे संबंध के कारण उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। मदर टेरेसा की संस्थान के विरुद्ध सरकार कोई कार्रवाई करें या ना करें, हिंदुओं को टेरेसा के इतिहास का पुनर्मूल्यांकन अवश्य करना चाहिए।