“मोदी सरकार ने टेरेसा संस्था के बैंक खाते किए फ्रीज”, ऐसा ममता बनर्जी कह रही हैं

क्या सच में टेरेसा संस्था के बैंक अकाउंट को किया गया बंद या ये ममता बनर्जी का कोई प्रपंच हैं?

टेरेसा संस्थान

मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी के सभी बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिए गए हैं। टेरेसा संस्थान के बैंक अकाउंट से किसी प्रकार का आर्थिक लेनदेन नहीं हो सकेगा। इस समाचार पर प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह समाचार सत्य नहीं है। यह ममता बनर्जी के प्रोपेगेंडा का हिस्सा है, जिसे क्रिसमस पर आगे बढ़ाया गया। ममता बनर्जी ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से यह झूठी खबर फैलाई।

 

इस अफवाह के फैलने के बाद वामपंथी पत्रकारों से लेकर कांग्रेसी नेताओं तक सभी सरकार पर टूट पड़े। तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने सरकार पर आरोप लगाया कि मदर टेरेसा के संस्थान पर जानबूझकर हमला हुआ है और अब जबकि ममता बनर्जी ने विरोध कर दिया है तो सरकार डर गई है और पूरे मामले को दबा रही है। उन्होंने लिखा कि ‛25 दिसंबर को मदर टेरेसा के मिशनरीज ऑफ चैरिटी पर एक प्रहार करने के बाद, अब गृह मंत्रालय वह कर रहा है जो वह सबसे अच्छा करता है: स्पिनडॉक्टरिंग और एक कवर अप।….भारत में एक विपक्ष है जो अच्छी लड़ाई लड़ेगा।  और मेरे पास एक ऐसा नेता है जो हमेशा उत्पीड़ितों के लिए खड़ा रहेगा @MamataOfficial’

 

इसके बाद शशि थरूर सहित कई कांग्रेसी समर्थक लोग भी इस मामले में कूद पड़े। हालांकि, वास्तविकता इससे कोसों दूर थी। सरकार ने टेरेसा संस्थान के बैंक खातों को फ्रीज नहीं किया था बल्कि स्वयं संस्थान ने ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से अनुरोध किया था कि उसके बैंक खातों को फ्रीज किया जाए। टेरेसा के संस्थान को विदेशों से फंडिंग मिलती है। इसके लिए इस संस्था को देश की अन्य NGO की तरह FCRA रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है। मिशनरीज ऑफ चैरिटी ने अपना रजिस्ट्रेशन रिन्यू नहीं करवाया है। यह रजिस्ट्रेशन 31 अक्टूबर तक ही वैध था जिसे पहले ही बढ़ाकर 31 दिसंबर तक किया जा चुका है।

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किंतु 25 दिसंबर को हुई समीक्षा में NGO द्वारा FCRA की सभी गाइडलाइन को पूरा नहीं किया गया था जिस कारण इसका रिन्यूअल रोक दिया गया। सरकार की ओर से बयान में कहा गया है कि ‛पात्रता शर्तों को पूरा नहीं करने के लिए 25 दिसंबर को नवीनीकरण से इनकार कर दिया गया था और “नवीकरण के इस इनकार की समीक्षा के लिए मिशनरीज ऑफ चैरिटी (एमओसी) से कोई अनुरोध / संशोधन आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है।’

पूरा मामला यह था कि मिशनरीज ऑफ चैरिटी ने FCRA की गाइडलाइन को पूरा नहीं किया था, जिस कारण समय पर उनका लाइसेंस रिन्यू नहीं हो सका, उन्होंने रिन्यूअल के लिए दोबारा आवेदन भी नहीं किया और स्वयं ही रिन्यूअल ना मिलने की स्थिति में टेरेसा संस्थान ने बैंक खातों को फ्रीज करने का अनुरोध स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से किया। इस मामले में सरकार ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी के विरुद्ध कोई कार्यवाही की ही नहीं थी। केवल उनसे भारतीय कानून के अनुसार रिन्युवल करवाने की बात रखी थी, जो ट्रस्ट द्वारा पूरी नहीं हुई।

जब सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की तब भी केवल प्रोपेगेंडा के बल पर भारत ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी इस मामले को जोर-शोर से उठाया गया। अल जजीरा से लेकर बीबीसी तक, कई प्रसिद्ध समाचार पत्रों में मोदी सरकार की आलोचना होने लगी। कल्पना कीजिए कि यदि सरकार ने वास्तव में मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा किए जाने वाले कन्वर्जन के विरुद्ध कोई कार्रवाई की होती तो कितना विलाप  हुआ होता।

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टेरेसा को उनके कथित सेवा कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। गुलाम मानसिकता से ग्रस्त भारतीय मदर टेरेसा को मिले नोबेल पुरस्कार पर अपनी पीठ थपथपाने लगे थे। 1979 में जब उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला उसके अगले साल 1980 में भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया दिया।

हालांकि, मदर टेरेसा का कार्य पूरी तरह से हिंदुओं के कन्वर्जन पर ही टिका था। उनके द्वारा चलाए जाने वाले हॉस्पिटल में अप्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा लोगों का इलाज किया जाता था। उनकी सेवाओं की इस आधार पर बहुत आलोचना हुई कि उनके अस्पताल लोगों को बचाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें ईसाई बनाकर मारने के लिए है। हालात इतने खराब थे कि कई बार मरीजों को एक साथ ही शौचालय में शौच करना पड़ता था। उनके परिजनों को उनसे मिलने की छूट नहीं थी। टेरेसा बीमारी और गरीबी को गिफ्ट ऑफ गॉड कहती थी क्योंकि बीमार और गरीब व्यक्तियों को वह सेंट पीटर का टिकट देती थी।

 

मदर टेरेसा के साथ कार्य कर चुके लोगों ने भी इस बात की आलोचना की है कि उन्होंने गरीबों की सेवा सिर्फ कन्वर्जन के उद्देश्य से की। इसी कारण बीमार व्यक्तियों का ठीक प्रकार से इलाज नहीं कियाजा सकता था जिससे वह और पीड़ित महसूस करें एवं उन्हें बरगलाना आसान हो जाए। टेरेसा पर कार्य कर चुके बहुत से पत्रकार जिनमें भारतीय और विदेशी पत्रकार शामिल है, उन्हें Hell’s Angle कहते हैं।

 

टेरेसा ने तलाक से लेकर गर्भपात तक, कई मुद्दों पर दकियानूसी बातें की थी। उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपी गई इमरजेंसी का समर्थन किया था। कांग्रेस से अच्छे संबंध के कारण उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। मदर टेरेसा की संस्थान के विरुद्ध सरकार कोई कार्रवाई करें या ना करें, हिंदुओं को टेरेसा के इतिहास का पुनर्मूल्यांकन अवश्य करना चाहिए।

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