Fibonacci Series, Pythagoras Theorem, Wireless तकनीक, इन सब में समान क्या है? इसका उत्तर है कि इन सभी की उत्पत्ति भारत में हुई और भारतीयों ने इस पर भी शोध किया किन्तु इन्हें अपना बनाकर पाश्चात्य संस्कृति ने इन सभी पर ना केवल अपना दावा ठोंका अपितु भारतीयों को हीन सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। क्या वे वास्तव में उतने योग्य हैं, जितना दावा करते हैं? क्या न्यूटन का सिद्धांत वास्तव में उसका अपना सिद्धांत था? भारतीय शास्त्रों का पाश्चात्य जगत द्वारा दुरूपयोग एवं उसका श्रेय लूटकर अपने आप को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करना कतई उचित नहीं है।
कहीं झूठा तो नहीं था न्यूटन?
सोशल मीडिया को लोग काफी हानिकारक मानते हैं क्योंकि उनके अनुसार यह लोगों को भ्रमित करती है। यह गलत प्रवृत्तियों को बढ़ावा देती है परन्तु यही सोशल मीडिया एक प्रकार से सही को सही और गलत को गलत सिद्ध करने में भी सहायक होती है। इसी सोशल मीडिया के कारण बड़े से बड़े पूर्वाग्रह और फेक न्यूज़ को भी ध्वस्त करने में सहायता मिली है और अब इस बात पर भी प्रश्न चिन्ह लगने लगा है कि क्या ब्रिटिश वैज्ञानिक Isaac Newton ने अपना प्रसिद्द गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत कहीं सनातनी शास्त्रों से तो नहीं चुराया?
वो कैसे? यह सर्वविदित है कि न्यूटन के सिद्धांत की वास्तविक उत्पत्ति ऋषि आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त के सिद्धांतों के अनुसार होती है परन्तु यह भी सामने आ रहा है कि न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण और कैल्कुलस के सिद्धांत उसके खुद के नहीं है। सोशल मीडिया पर अब फिर से जी माधवन नायर के विचार वायरल हो रहे हैं, जहां उन्होंने बताया कि कैसे हमारे वेद पुराणों में ऋषियों ने हज़ारों वर्षों पूर्व ही गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को विधि विधान सहित समझाया था। हालांकि, स्वयं Scroll जैसे वामपंथी portal को भी अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकारना पड़ा कि बिना आर्यभट्ट जैसे विद्वानों के न्यूटन के लिए गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोज पाना लगभग असंभव था।
जब न्यूटन के सिद्धांतों को सोशल मीडिया पर…
परन्तु बात यहीं तक सीमित नहीं है। सोशल मीडिया पर साल 2007 में प्रकाशित मैनचेस्टर विश्वविद्यालय का एक महत्वपूर्ण शोध भी अब वायरल हो रहा है, जिसमें वे स्वयं स्वीकार रहे हैं कि न्यूटन के सिद्धांतों से कई वर्ष पूर्व केरल के गणितज्ञों ने कैल्कुलस की खोज कर ली थी। मेनचेस्टर की रिपोर्ट में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, “केरल गणित महाविद्यालय ने न केवल कैल्कुलस के वास्तविक सिद्धांत की उत्पत्ति की अपितु Pie [π] को लगभग 17 Decimal स्थानों तक सही भी गिना। न्यूटन के शोध पर शायद ही हम प्रश्न कर पाएं, परन्तु आचार्य माधव और आचार्य नीलकंठ के योगदानों को भुलाना लगभग असंभव है।”
अब यदि Calculus पर ये स्थिति है, तो सोचिये गुरुत्वाकर्षण पर क्या स्थिति रही होगी? परन्तु हमारे अधिकांश सिद्धांतों को ऐसे ही पाश्चात्य जगत के ‘वैज्ञानिकों’ ने तोड़मरोड़कर और अपने उत्पाद के रूप में सजाकर दुनिया के समक्ष पेश किया है। रेडियो की उत्पत्ति जिस वायरलेस तकनीक से हुई, उसकी खोज जगदीश चन्द्र बासु ने की परन्तु श्रेय गग्लिएल्मो मार्कोनी ने लूटा। ठीक इसी प्रकार बौधायन ने जिस सिद्धांत के माध्यम से ज्योमेट्री को सरल बनाने का प्रयास किया, उसे पाश्चात्य जगत ने Pythagoras Theorem का ठप्पा दे दिया लेकिन अब ऐसा और नहीं चलेगा। ऐसे में, जब न्यूटन के सिद्धांत की मौलिकता को सोशल मीडिया पर चुनौती दी जा रही है तो इसका स्पष्ट अर्थ है कि समाज नैतिक उन्नति की राह पर है। वहीं, इस प्रयास से भारत को खोया हुआ सम्मान वापिस मिल सकेगा।