कोरोना के बाद से विश्व का Geo Politics कुछ अधिक उथल-पुथल रहा है। दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया के हालात युद्ध जैसे रहें हैं। एक तरफ चीन, दक्षिण चीन सागर के अन्य देशों पर गुंडा गर्दी दिखा रहा था, तो वहीं जापान भी जवाबी कार्रवाई के लिए तैयारी कर रहा था। हालांकि, कई मोर्चों पर चीन को हार का मुंह देखने के बाद भी श्रीलंका में एक रणनीतिक एयरपोर्ट में इन्वेस्टमेंट को लेकर भारत और जापान के विरुद्ध जीत मिली थी। उसी के बाद भारत की ओर से त्वरित कार्रवाई की गई और भारत ने श्रीलंका को कड़े और स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि अब ऐसा नहीं चलेगा। इसी का परिणाम हैं कि अब चीन को श्रीलंका के तीन द्वीपों में हाइब्रिड ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के फैसले को सस्पेंड करना पड़ा।
दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन ने एक “तीसरे पक्ष” से “सुरक्षा चिंता” को ध्यान में रखते हुए, आखिरकार श्रीलंका के तीन द्वीपों में हाइब्रिड ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की एक परियोजना को निलंबित कर दिया है। श्रीलंका से यह खबर तब आई है जब भारत ऐसे चीनी परियोजनाओं के स्थान पर चिंता जताता रहा था।
श्रीलंका ने चीन के प्रोजेक्ट को किया निलंबित
रिपोर्ट के अनुसार, चीनी फर्म सिनो सोलर हाइब्रिड टेक्नोलॉजी को जनवरी में जाफना के तट पर नागदीप, डेल्फ़्ट और अनलथिवु द्वीपों में एक हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा प्रणाली को शुरू करने का ठेका दिया गया था। ये तीनों द्वीप तमिलनाडु राज्य के बहुत करीब स्थित हैं। ऐसे में, भारत द्वारा की जा रही चिंता आवश्यक थी, जिसके बाद यह सकारात्मक खबर सामने आई है। बुधवार को एक ट्वीट में, चीनी दूतावास ने भारत का नाम लिए बिना पुष्टि की कि, “चीन को तीसरे पक्ष से ‘सुरक्षा चिंता‘ के कारण श्रीलंका के 3 उत्तरी द्वीपों के ध्वज में हाइब्रिड ऊर्जा प्रणाली का निर्माण करने के लिए निलंबित किया जा रहा है।“
🇨🇳Sino Soar Hybrid Technology, being suspended to build Hybrid Energy system in 3 northern islands 🇱🇰 due to 'security concern' from a third party, has inked a contract with Maldivian gov't on 29 Nov to establish solar power plants at 12 islands in 🇲🇻.https://t.co/ZhnETZYN6P
— Chinese Embassy in Sri Lanka (@ChinaEmbSL) December 1, 2021
आपको बता दें कि यह हाइब्रिड ऊर्जा प्रणाली ‘सपोर्टिंग इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई रिलायबिलिटी इम्प्रूवमेंट प्रोजेक्ट’ का एक हिस्सा थी, जिसे सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (CEB) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है और यह एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा वित्त पोषित है। ट्वीट में यह भी कहा गया है कि देश को इसके बजाय मालदीव में 12 द्वीपों पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का अनुबंध मिला है। इस पर 29 नवंबर को हस्ताक्षर किए गए थे। हालांकि, मालदीव में भी चीन की उपस्थिति भारत के लिए चिंता का सबब ही है और इसे भी रोकने के लिए भारत को कदम उठाने चाहिए।
PM मोदी ने श्रीलंकाई वित्त मंत्री से नहीं की मुलाकात
बता दें कि भारत की नरेंद्र मोदी सरकार भारतीय परियोजनाओं को धीमा करने से श्रीलंका की राजपक्षे प्रशासन से नाराज है। पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा था कि चीनी परियोजनाओं में तेजी से प्रगति हो रही है और भारतीय परियोजनाएं लटकी की लटकी रह जा रहीं हैं। कुछ दिनों पहले, श्रीलंका के वित्त मंत्री बी राजपक्षे भारत आए थे। बसिल राजपक्षे की नई दिल्ली यात्रा का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि भारत श्रीलंका को मदद के लिए हाथ बढ़ाए, और यही कारण है कि उनका पीएम मोदी से मिलने का कार्यक्रम भी था। हालांकि, राजपक्षे को ‘शेड्यूलिंग मुद्दों’ के कारण पीएम मोदी के साथ मुलाक़ात से वंचित कर दिया गया था।
इसके बजाय, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और बसिल राजपक्षे के बीच एक बैठक हुई। इस बैठक के दौरान श्रीलंका का चीन प्रति खतरनाक झुकाव और इसको लेकर भारत की आशंकाओं के बारे में एक स्पष्ट संदेश भेजा गया। कहा जाता है कि डोभाल ने श्रीलंका की लापरवाह विदेश नीति के कारण यह मुद्दा उठाया था।
पिछले हफ्ते, श्रीलंका ने देश में चल रहे गंभीर विदेशी मुद्रा संकट के कारण कच्चे तेल की आपूर्ति की अनुपलब्धता के बाद 50 दिनों के लिए अपनी एकमात्र तेल रिफाइनरी को अस्थायी रूप से बंद कर दिया था। इसी कारण से श्रीलंका की हालत खराब हो रही है और उसे अब भारत की याद आई है। इस मामले पर श्रीलंका के विदेश मंत्री पेइरिस ने कहा कि “राजपक्षे भारतीय कर्ज नहीं मांगेंगे बल्कि भारतीय निवेश बढ़ाने के लिए कहेंगे।” अगर श्रीलंका को भारत द्वारा निवेश बढ़ाना है, तो चीनी निर्भरता कम करना होगा, यह उसे भी पता है।
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श्रीलंका की बेशर्मी अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी
इसी पर भारत सरकार ने चिंता जताते हुए विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला को पिछले महीने श्रीलंका भेजा था। 2 अक्टूबर को शुरू हुई चार दिवसीय यात्रा के दौरान, श्रृंगला ने भारत द्वारा चलाए जा रहे हर बुनियादी ढांचा परियोजना का जायजा लिया था और उनके देरी के कारणों का आकलन किया था। उस दौरान भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे से मुलाकात की थी तथा सभी स्तरों पर समग्र द्विपक्षीय साझेदारी को आगे बढ़ाने के तौर-तरीकों पर चर्चा की थी। इससे यह स्पष्ट है कि इस यात्रा के दौरान विदेश सचिव ने श्रीलंका प्रशासन को भारत की चिंताओं के बारे में अवश्य ही अवगत करवाया होगा।
पिछले कुछ समय में देखा जाए तो भारत के लिए श्रीलंका का रुख फ्लिप फ्लॉप वाला रहा है यानी कभी पक्ष में तो कभी विपक्ष में दिखाई दिया है। इसी का नतीजा है कि भारत ने श्रीलंका का साथ न देकर उसे दंड दिया है। इसी वर्ष मार्च में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के खिलाफ आए एक प्रस्ताव पर वोटिंग न कर श्रीलंका को एक कड़ा संदेश दिया था। अब श्रीलंका से चीनी हाइब्रिड ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के फैसले को सस्पेंड करना दिखाता है कि भारत का संदेश सिर्फ श्रीलंका तक ही नहीं बल्कि चीन तक पहुंचा है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं है कि भारत द्वारा श्रीलंका को झटके देने के बाद यह खबर आई है और यह भारत के लिए सकारात्मक समाचार है। बसिल राजपक्षे से मुलाकात न करके पीएम मोदी ने साफ कर दिया है कि श्रीलंका का ऐसा दुष्ट व्यवहार और चीन के सामने कोलंबो की बेशर्मी अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।