वैदिक गणित: गणित का वो तरीका जिसे पूरी तरह मिटा दिया गया और आपको पता भी नहीं चला

बच्चे गणित से दूर नहीं भागते, अगर उन्हें स्कूल में वैदिक गणित पढ़ाया जाता!

PC: Cuemath

PC: Cuemath

भारतीय विद्यार्थियों को जिस एक विषय से सबसे अधिक डर लगता है उसका नाम गणित है। गणित या मैथ एक ऐसा विषय है जिसकी कक्षाओं में हममें से कई लोगों ने बचपन में मार खाई होगी। हालांकि, बच्चों को सजा देने का चलन तो अब समाप्त हो चुका है लेकिन बच्चों में गणित का डर आज भी विद्यमान है।

ऐसे में क्या कोई तरीका है जिससे हम मैथ के इस डर को समाप्त कर सकते हैं। हाँ है! भारत के प्राचीन ग्रंथों में इसका समाधान है। हम बात कर रहे हैं वैदिक गणित की। इसकी विशेषता यह है कि वैदिक गणित, बड़े से बड़े जोड़, घटाना, गुणा, भाग को सरल समीकरण के रूप में बदल देता है।

गुजरात विद्यालय शिक्षा को पूरी तरह बदलने तथा एक नया कीर्तिमान स्थापित करने की तैयारी में है। सरकार ने अगले वर्ष से विद्यालय शिक्षा में वैदिक मैथमेटिक्स को एक विषय के रूप में सम्मिलित करने का निर्णय किया है। गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने इसकी घोषणा भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिवस पर की।

वैदिक गणित का उद्भव

वैदिक गणित एक प्राचीन भारतीय पद्धति है जो अंकगणितीय संक्रियाओं को 16 ‘सूत्रों’ में एकीकृत करके गणित को सरल बनाती है। अर्थात सूत्रों के माध्यम से गणितीय गणनाओं को सरल बनाया जाता है। इन 16 सूत्रों का संकलन जगद्गुरु स्वामी श्री भारती कृष्ण तीर्थजी महाराज द्वारा 1965 में छपी एक किताब में किया गया था। उन्होंने यह सूत्र अथर्ववेद के परिशिष्ट से संकलित किए थे। यह 16 सूत्र गणितीय गणना में कई चरणों को हटाकर सीधे परिणाम तक पहुंचा सकते हैं। यदि कोई सवाल सात चरण में पूरा होना है तो इन सूत्रों की सहायता से उसे दो-तीन चरण में ही पूरा किया जा सकता है।

और पढ़ें : सीएम खट्टर ने की घोषणा: अगले सत्र से स्कूलों में पढ़ाई जाएगी श्रीमद्भगवद्गीता

हम सभी ने अपने विद्यार्थी जीवन में गणित की लंबी-लंबी गणना करी है और उसे करने में अपना समय लगाया है। आज भी बच्चों को चार पांच अंकों का गुणा देने पर उसमें त्रुटि हो सकती है। बच्चों तो बच्चे, बड़े लोग भी गणित की गणनाओं को देखकर डर जाते हैं।

और पढ़ें : मैनेजमेंट के छात्रों के करियर को संवारने हेतु भगवद् गीता के मूल्यों की शिक्षा देगा IIM अहमदाबाद

वैदिक गणित की कार्यपद्धति

यदि आपको 93 और 97 को गुणा करने को कहा जाए तो आप क्या करेंगे। या तो आप कैलकुलेटर उठा लेंगे या फिर पेन कॉपी लेकर उसी परंपरागत तरीके से गुणा करना शुरू करेंगे जो हमने विद्यालय में सीखा है। पहले सात का गुणा 93 में से 9 का गुणा 93 में फिर एक अंक छोड़कर दोनों का जोड़ करना। लेकिन इसमें समय लगेगा।

हमारे पास दो अंक है, 93 और 97। दोनों दहाई के अंक हैं। 10² अर्थात 100 से दोनों छोटे हैं। 97, 100 से 3 अंक कम है और 93, 7 अंक कम है। 7 और 3 का गुना कर देंगे तो 21 आएगा। इसके बाद 93 में 3 घटा दें और 97 में 7, दोनों ही स्थिति में शेष बचा 90। 90 को पहले लिखें और 21 को उसके बाद, संख्या बनी 9021, यही 93 और 97 का गुणनफल है। इसी प्रकार 96 और 94 का गुना करें। 6 गुने 4, 24 हुआ और 96 में 6 तथा 94 में 4 घटाएंगे तो 90 हुआ। गुणनफल हुआ 9024।

105 और 108 का गुण करना है तो क्या करें। ये दोनों अंक 100 से बड़े हैं। 105, 5 अंक और 108, 8 अंक। 5 और 8 का गुणा कर दें तो 40 आएगा। इस बार 105 में 8 जोड़ दें और 108 में 5, दोनों का परिणाम 113 आएगा। 113 और 40 को साथ लिखेंगे तो गुणा का परिणाम 11340 मिल जाएगा। कैलकुलेटर ले कर मिला लीजिए।

और पढ़ें : परमाणु बम के जनक ओपेनहाइमर कैसे भगवद गीता से प्रभावित हुए ?

इसी प्रकार अन्य कठिन गणितीय गणना के लिए भी वैदिक गणित के पास सूत्र जिसे अंग्रेजी में फार्मूला कहते हैं, मौजूद है। हमने उदाहरण के लिए केवल अंको के गुणा को लिया था लेकिन वैदिक गणित में जोड़ घटाने तथा भाग के लिए भी सूत्र मौजूद है। वैदिक गणित हर मामले में पश्चिमी गणित से श्रेष्ठ है। पश्चिमी गणित या जिसे आधुनिक मैथमेटिक कहा जाता है वह अत्याधिक भ्रामक और जटिल है, जबकि वैदिक मैथमेटिक्स सीधी सरल है।

वैदिक मैथमेटिक्स को मिलना चाहिए बढ़ावा

योग की तरह ही वैदिक गणित भी हमारे प्राचीन ज्ञान परंपरा का एक आभूषण है। यह हमारे सांस्कृतिक धरोहर है जिसकी रक्षा करना तथा दुनिया में इसके वैभव को फैलाना हमारी जिम्मेदारी है। हालांकि योग को भी तब तक बढ़ावा नहीं मिला था जब तक विदेशों में योग को योगा नाम से प्रचलित नहीं किया गया। हम भारतीयों की समस्या यही है कि हम अपनी परंपराओं को तब महान कहना शुरू करते हैं जब पश्चिम में उनकी वाहवाही होती है। संभवत वैदिक गणित के लिए भी उसी समय का इंतजार किया जा रहा है।

यही कारण है कि भारत में विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र गणितीय गणना में प्रतिदिन अपना सिर खपाते हैं लेकिन उन्हें वैदिक गणित के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती है। वैदिक गणित की जानकारी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के समय विद्यार्थियों को होती है लेकिन तब तक वह किशोरावस्था में पहुंच चुके होते हैं और अपने सीखे हुए तरीकों पर अधिक विश्वास करते हैं। वैदिक गणित के लिए जो प्रयास होगी रहे हैं वह भी केवल व्यक्तिगत कोचिंग सेंटर के स्तर तक सीमित है।

गणित हमारी शिक्षा का सबसे मूलभूत अवयव है। गणितीय गणना हमें हर कार्य में एक निश्चित पद्धति या एक तय पैटर्न खोजना सिखाती हैं। यदि हम अपने बच्चों को विद्यालय के स्तर से ही गणितीय घटनाओं की अच्छी जानकारी दें तो भारत में सक्षम विद्यार्थियों की एक बड़ी खेप तैयार की जा सकती है। हम कई श्रीनिवास रामानुजन पैदा कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात बच्चों के लिए बोझ बनती जा रही पढ़ाई को सरल किया जा सकता है।

भारत में अपनी गणितीय परंपराओं का इतिहास बहुत पुराना है। भारत में गणित की शिक्षा 3000 साल पुरानी है यह तो वामपंथी इतिहासकार भी मानते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र पूरी तरह से गणित पर ही आधारित था। भारत में गणित की शिक्षा का स्तर इतना ऊंचा था कि यहां आर्यभट्ट और वराह मिहिर जैसे विद्वान पैदा हुए। हालांकि, अंग्रेजों द्वारा स्थापित कथित आधुनिक शिक्षा व्यवस्था ने भारतीयों को दिनों दिन अक्षम ही बनाया है। किंतु इसे हमारी वैचारिक परतंत्रता ही मानना चाहिए कि हम आज भी उसी परंपरा से चिपके हुए हैं जो अंग्रेज हमारे लिए छोड़ गए हैं। आज आवश्यकता है कि गुजरात की तरह अन्य राज्य सरकारें भी आगे हैं तथा प्राचीन भारतीय परंपराओं और शिक्षाओं का प्रयोग आधुनिक शिक्षा में करें। सरकार को भी CBSE के माध्यम से वैदिक गणित पढ़ाने की व्यवस्था करनी चाहिए एवं उच्चतर शिक्षा में इससे संबंधित अंडर ग्रेजुएशन कोर्स चलाए जाने चाहिए। वैदिक गणित भारत की प्राचीन एवं समृद्धि ज्ञान परंपरा का एक भाग है, ऐसे कई और घटक हैं जिनकी खोज किया जाना अभी बाकी है।

Exit mobile version