Tripindi Shradh Varanasi
पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि महाभारत काल में सिखंडी ने पहली बार किन्नरों का पिंडदान किया था। पितृ पक्ष में अपने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए लगभग प्रत्येक व्यक्ति श्राद्ध, पिंडदान एंव पितर तर्पण करता है। किन्नर भी इस कार्य में पीछे नहीं रहते। ये चौथा मौका है, जब देशभर के विभिन्न प्रांतों से जुटे किन्नरों ने किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर की मौजूदगी में न केवल किन्नरों ने कोरोना काल में मृतकों के लिए भी त्रिपिंडी श्राद्ध (tripindi shradh) किया बल्कि कोरोना से मरने वाले लोगों की आत्मा को शांति के लिए भी श्राद्ध किया।
वहीं दिल्ली में निर्मम हत्या की शिकार हुई किन्नर एकता जोशी के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया। किन्नर भी साधारण लोगों की ही तरह विधि वत मृत्यु को प्राप्त हो चुके किन्नरों का श्राद्ध करते हैं, ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके। मगर ये त्रिपिंडी श्राद्ध (tripindi shradh) क्या है?, इसके बारे में शायद हो कोई जानता होगा। तो चलिए हम आपको बताते हैं त्रिपिंडी श्राद्ध से जुड़ी कुछ खास बातें-
What is Tripindi Shradh in Hindi?
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में सनातन धर्म से संबंध रखने वाले लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान की परंपरा निभाते हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह पिंड दान करने के बाद ही पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार मानव को अपने जीवन में 16 संस्कार व कर्मों से गुज़रना पड़ता है, मगर किन्नरों की बात करें तो वह समाज पिंडदान से वंचित रह जाता है।
मगर इस साल ऐसा नहीं हुआ, वाराणासी में इस बार सार्वजनिक रूप से 16 सितंबर को किन्नरों का पिंडदान किया गया। मगर शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने कभी ये सोचा होगा कि किन्नर जिन्हें उनकी मृत्यु के बाद उनके ही समाज में अस्वीकार कर दिया हो, उन्हें कैसे मुक्ति दिलवाई जा सकती है।
अगर आप भी इस बारे में सोच रहें हैं और इसका उत्तर जानना चाहते हैं तो इसका जवाब धर्म की नगरी काशी के तीर्थ पिशाचमोचन पर हर दूसरे साल तब मिलता है जब किन्नर अखाड़े की अगुवाई में किन्नरों का त्रिपिंडी श्राद्ध (tripindi shradh) किया जाता है। बताया जाता है इसमें शामिल होने के लिए देश भर से किन्नर समाज के लोग जुटते हैं।
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वाराणसी के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध
पितृ पक्ष में एक बार फिर वाराणसी के पिशाचमोचन तीर्थ पर ऐसा ही देखने को मिला है। वाराणसी के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध का स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में जिक्र है। काशी के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
त्रिपिंडी श्राद्ध और पिशाचमोचन तीर्थ के महत्व के बारे में बताते हुए पिशाचमोचन मंदिर के मंहत मुन्नालाल पांडेय ने बताया कि पूरे विश्व में चाहे जैसा भी प्रेत योनी में गई आत्मा हो उसे त्रिपिंडी श्राद्ध से मुक्ति मिल जाती है।अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों की आत्मा को त्रिपिंडी श्राद्ध के माध्यम से ही शांत किया जा सकता है।
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Tripindi Shradh Meaning in Hindi
त्रिपिंडी का अर्थ होता है। तीन तरह के देवता ब्रह्मा,विष्णु,महेश। वहीं तीन तरह के प्रेत भी होते हैं। जिस तरह के प्रेत होते है उसे उसी लोक में tripindi shradh के माध्यम से भेजा जाता है। उन्होने बताया कि किन्नर अखाड़े की ओर से शुरु कराए गए त्रिपिंडी श्राद्ध के बाद से ही अन्य किन्नर भी उनके पिशाचमोचन तीर्थ पर आकर श्र3द्ध करा कर चले जाते हैं।
जानकारी के अनुसार खाड़े के लोगों ने बताया कि 2015 में जब से किन्नर अखाड़े की स्थापना हुई है तभी से काशी के पिशाचमोचन तीर्थ पर हर दूसरे साल आकर पिंडदान करते हैं। शास्त्रों की तो मानें पिशाचकुंड और बद्रीकुंड पूरे देश में दो कुंड स्थित हैं, जहां सामूहिक पिंडदान किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि हर आत्मा को हक है कि उसको परमधाम पहुंचाया जाए, इसलिए उनकी गद्दी पर बैठने के बाद से ही सामूहिक रूप से किन्नर समाज के मृत लोगों के लिए tripindi shradh हर दूसरे साल कराया जाने लगा।
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