US vs India: एक प्लास्टिक चबाता है तो दूसरा बायोजेट फ्यूल इनोवेशन में विश्वास करता है

अमेरिका सिर्फ विनाश करता है और भारत सृजन में विश्वास करता है!

PM Modi & Biden

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विभिन्न टेस्ट के बाद भारतीय मिलिट्री के प्रयोग के लिए बायोफ्यूल को आधिकारिक अनुमति मिल गई है। इस आधिकारिक अनुमति के बाद अब भारतीय वायु सेना अपने सभी विमानों के लिए स्वदेशी तकनीक से बनाए गए बायोफ्यूल का प्रयोग कर सकेगी। बायोफ्यूल का टेस्ट भारत के लिए एक बड़ी सफलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तो यह टेस्ट अत्यंत कठिन था, वहीं दूसरी ओर इस परीक्षण की परिणति भारत की आत्मनिर्भरता के रूप में होगी। यह परीक्षण भारतीय सैन्य सेवाओं को विश्व की एकमात्र ऐसी सेवा बना सकता है, जो सशक्त भी है और इकोफ्रेंडली भी है।

जहां एक ओर अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक उपभोक्ता है और अमेरिकी सेना पर विश्व में सबसे बड़े स्तर पर प्रदूषण फैलाने का आरोप लगता है, वही भारत ने परित्याज्य पदार्थों की मदद से बनने वाले बायो इंजन का प्रयोग कर एक आदर्श स्थापित किया है। अमेरिका की बात करें, तो US रक्षा विभाग ने यूरेनियम, तेल, जेट ईंधन, कीटनाशक, एजेंट ऑरेंज और लेड जैसे डिफोलिएंट्स के रूप में दुनिया भर में अपनी जहरीली विरासत छोड़ी है।

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प्लास्टिक कचरे का 17 फीसदी उत्पादन करता है अमेरिका

अमेरिका ने पूरे विश्व में फैले अपने मिलिट्रीबेस के कारण जल भूमि और वायु तीनों को प्रदूषित किया है। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी सरकार द्वारा 1200 प्रदूषित क्षेत्रों की देखरेख के लिए 4.5 बिलियन डॉलर सालाना खर्च होते हैं। इन प्रदूषित क्षेत्र, जिन्हें सुपर फंड साइट कहते हैं, इनमें से 900 सुपर फंड साइट अमेरिकी सेना के पुराने मिलिट्रीबेस हैं।

वहीं, दूसरी ओर अमेरिका की आबादी दुनिया की आबादी की लगभग 4 फीसदी है, लेकिन खबरों की मानें तो यह देश प्लास्टिक कचरे का 17% उत्पादन करता है। गौरतलब है कि प्लास्टिक कचरे ने पूरे ग्रह को प्रदूषित कर दिया है और समय दर समय स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है। ऐसे में अमेरिका को वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण संकट को दूर करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाने की आवश्यकता है।

अमेरिका के बाद चीन का उदाहरण लें, तो चीन का कार्बन उत्सर्जन पूरे विश्व में सबसे अधिक है। चीन अकेले ही दुनिया का 27% कार्बन उत्सर्जित करता है, जो अमेरिका, भारत और यूरोपियन यूनियन के संयुक्त कार्बन उत्सर्जन से भी अधिक है। क्योंकि अमेरिका की तरह चीन में मीडिया को सेना द्वारा किए जा रहे पर्यावरण प्रदूषण की रिपोर्टिंग की सुविधा प्राप्त नहीं है, इसलिए चीनी सेना द्वारा किए जा रहे कार्बन उत्सर्जन की कोई भी खबर निकल कर सामने नहीं आती। किंतु इतना निश्चय पूर्वक कहा जा सकता है कि चीन जिस तेजी से अपनी सेना के आधुनिकीकरण पर खर्च कर रहा है, चीनी सेना संभवत विश्व की प्रथम अथवा द्वितीय प्रदूषक संस्था होगी।

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कई बड़े आविष्कारों पर कार्य कर रहा है भारत

अगर इन देशों की तुलना भारत से करें तो देश ने सदैव एक जिम्मेदार विश्वशक्ति की तरह व्यवहार किया है। भारत नागरिक परिवहन के क्षेत्र में बायोइथेनॉल और हाइड्रोजन फ्यूल जैसे आविष्कारों पर कार्य कर रहा है। किंतु हमारे वैज्ञानिक यहीं तक नहीं रुके, उन्होंने इन तकनीकों का प्रयोग सैन्य आवश्यकताओं के लिए भी करना शुरू कर दिया है। यदि भारतीय सेनाओं को पूरी तरह से बायो एनर्जी पर निर्भर कर दिया जाएगा, तो भारत बिना तेल की आपूर्ति के भी लंबे समय तक सैन्य संघर्ष चलाने की स्थिति में होगा। इससे भारत की सामरिक शक्ति बढ़ेगी, साथ ही पेट्रोलियम के आयात पर खर्च होने वाले पैसे भी बचेंगे। भारतीय वैज्ञानिकों की यह उपलब्धि आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्य के लिए एक बड़ा कदम है।

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