13 वर्ष पूर्व, सन 2008 ये वो समय था, जब भारतीय क्रिकेट एक महत्वपूर्ण बदलाव से परिचित हो रहा था। टी20 विश्व कप में विजयी होकर आये महेंद्र सिंह धोनी ऑस्ट्रेलिया में एक अत्यंत युवा टीम के साथ खेल रहे थे, और अनेक चुनौतियों के बाद भी वे किसी भांति फाइनल में पहुँचने में सफल रहे। उन्होंने न केवल फाइनल जीता, अपितु सीरीज़ भी जीती। यह अपने आप में ऐतिहासिक था, क्योंकि वर्षों बाद भारत ने ऑस्ट्रेलिया में कोई वनडे चैम्पियनशिप जीती थी, पर इससे भी अधिक चर्चा हुई जूनियर वर्ल्ड कप की, जिसमें भारत ही विजेता था। यहीं से एक सितारे का उदय हुआ, जो आगे चलकर भारतीय क्रिकेट का एक प्रभावशाली नाम सिद्ध हुआ।
वनडे की कप्तानी से हटाये जाने को लेकर चल रहे विवाद के बीच कल विराट कोहली ने अपना पक्ष रखने का प्रयास किया। विराट के अनुसार, BCCI अध्यक्ष सौरव गांगुली ने झूठ बोला कि उन्हें टी-20 की कप्तानी छोड़ने से रोका गया था। विराट ने यह आरोप लगाया कि वनडे कप्तानी से हटाए जाने की सूचना उन्हें साउथ अफ्रीका के लिए टेस्ट टीम घोषित करने से 90 मिनट पहले ही दी गई।
हम ये भी जानते हैं कि विराट कोहली जिस प्रकार से सहानुभूति बटोरने का ओछा प्रयास कर रहे हैं, ताकि वे एक सम्मानित क्रिकेटर और वर्तमान BCCI अध्यक्ष को नीचा दिखा सके, वो भी अक्षम्य है। परन्तु ये सब एक दिन की कथा नहीं है। ये व्यक्तित्व चन्द दिनों में उत्पन्न नहीं हुआ है, इसके पीछे की अंतर्कथा बहुत गहरी और रोचक है, जिसके लिए आपको 2009 की ओर जाना होगा, जब विराट कोहली अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में एक वर्ष पूरा कर चुके थे।
राष्ट्रीय क्रिकेट में एक चमकते सितारे बन चुके विराट कोहली तब अंडर 19 विश्व कप के चैम्पियन कप्तान के रूप में विश्वप्रसिद्ध थे, और अपनी आक्रामकता के लिए काफी चर्चित थे। उन्होंने ICC चैम्पियंस ट्रॉफी 2009 में अपनी छाप छोड़ते हुए वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध नाबाद 79 रन बनाये थे।
परन्तु विराट कोहली का असली उदय हुआ 2011 विश्व कप में, जहाँ उन्होंने आक्रामकता और धमाकेदार परफोर्मेंस का बेजोड़ मिश्रण देते हुए ताबड़तोड़ रन बनाए। बांग्लादेश के विरुद्ध प्रारंभिक मैच में जहाँ वीरेन्द्र सहवाग ने 175 रन नाबाद बनाये, तो वहीँ कोहली ने अपने पहले ही वर्ल्ड कप मैच में शतक भी ठोका। इतना ही नहीं, फाइनल में जब भारत संकट में पड़ते हुए दिखाई दिया, तो विराट कोहली ने गौतम गंभीर के साथ 35 रन की महत्वपूर्ण साझेदारी भी की। इन्होने विश्व कप विजय के पश्चात सचिन तेंदुलकर को न केवल कन्धों पर उठाया, अपितु ये भी घोषणा की कि अब सचिन को अपना दायित्व ‘युवा पीढ़ी को सौंपना चाहिए।’ लेकिन आज विराट क्या है?
इसी भांति विराट कोहली ने ICC चैम्पियंस ट्रॉफी 2013 की ऐतिहासिक विजय में वही भूमिका निभाई, जो 1983 के विश्व कप में मोहिंदर अमरनाथ ने निभाई थी। तो फिर ऐसा क्या हुआ, कि जो व्यक्ति कभी आक्रामकता और उत्कृष्ट परफॉरमेंस का एक अनुपम उदाहरण था, वो आज भारतीय क्रिकेट और देश के अधिकांश क्रिकेट प्रेमियों के लिए हास्य का विषय बना हुआ है? ऐसा क्या है कि आज विराट कोहली से कोई सहानुभूति नहीं रखना चाहता?
कारण स्पष्ट है – सफलता को कभी अपने सर पर मत चढ़ने दो। विराट कोहली की आक्रामकता और उनके मुखर स्वभाव के कारण वे टीम के कप्तान बनने की होड़ में सबसे आगे थे, और हुआ भी यही। जब लोगों को लगने लगा कि कप्तान के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी के सन्यास लेने का समय आ चुका है, तो 2016 में विराट कोहली के लिए मार्ग साफ़ हो गया। यहीं से विराट कोहली का व्यक्तिगत उदय भी प्रारंभ हुआ, और चारित्रिक पतन भी। इसके संकेत 2017 के चैम्पियंस ट्रॉफी में ही मिल गए थे, जब अवसर भी था और स्थिति भी अनुकूल थी, परन्तु इसके बाद भी भारत आश्चर्यजनक रूप से पाकिस्तान से पराजित हुआ, और सिर्फ पराजित नहीं हुआ, भारत मानो पूर्णतया लज्जित होकर स्टेडियम से निकला। लेकिन कोहली के चेहरे पर न कोई लज्जा थी, और न ही कोई पश्चाताप की भावना।
विराट कोहली की जब तुलना सौरव गांगुली से उनके चाटुकार करते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे हीरे की तुलना कोयले से की जा रही हो। सौरव के कारण आज भारतीय क्रिकेट टीम सर उठाकर दुनिया में घूम सकती है, ये वो व्यक्ति है जिसने भारत को दुनिया भर में जीतना सिखाया, और हर व्यक्ति के अंदर का विजेता बाहर निकाला। जिस व्यक्ति के कारण देश को ज़हीर ख़ान, आशीष नेहरा, महेंद्र सिंह धोनी, वीवीएस लक्ष्मण, राहुल द्रविड़, अजीत अगरकर, वीरेंद्र सहवाग, इरफान पठान इत्यादि जैसे दमदार खिलाड़ी मिले हों, उसे अब ट्रोल्लर्स बताएंगे कि क्रिकेट कैसे संभालना चाहिए?
रही बात रिकॉर्ड्स की, तो जिसे थाली में सजाकर वस्तुएं मिलेंगी, वो क्या जानेगा कि मेहनत क्या चीज होती है? वास्तविक रिकॉर्ड्स तो सौरव गांगुली ने बनाए हैं, जिसकी बराबरी शायद ही विराट कोहली अपने जीवन में कभी कर सकें। आज भी विराट कोहली कभी गर्व से नहीं कह सकते कि उन्होंने अपने प्रथम टेस्ट मैच में शतक ठोका था, जबकि सौरव गांगुली ने ये करिश्मा 1996 में ही किया था, और वो भी क्रिकेट के तीर्थ यानि लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउन्ड, लंडन में।
अरे ये तो कुछ भी नहीं है। सौरव गांगुली ने भारत को 2002 में ICC चैंपियंस ट्रॉफी दिलवाई थी, वो भी तब जब श्रीलंका अपने चरम पर हुआ करती थी। 2003 के विश्व कप फाइनल में हम भले ही ऑस्ट्रेलिया से पराजित हुए, परंतु हमारी टीम एक बेहतरीन टीम थी, जिसने कम से कम अपने देश का आत्मसम्मान तो दांव पर नहीं लगाया। क्या इस बात की गारंटी कोहली समर्थक दे सकते हैं? कभी नहीं! सौरव गांगुली विश्व के उन छह क्रिकेटरों में सम्मिलित हैं, जिनके पास 10,000 से अधिक रन हैं, 100 से अधिक विकेट हैं और 100 से अधिक कैच हैं। कोहली के पास इनसे रन थोड़े अधिक हो, पर इसके आधे भी विकेट हों, तो बहुत बड़ी बात होगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सौरव गांगुली के पूरे टेस्ट करियर में किसी भी वर्ष उनका बैटिंग औसत 40 के नीचे नहीं गया, परंतु विराट कोहली तो दो ही वर्ष में 30 से नीचे टेस्ट बैटिंग एवरेज गिरा दिए। क्या ये एक अच्छे कैप्टन के संकेत है?
और पढ़ें: विराट के चाटुकार करना चाहते हैं सौरव गांगुली को BCCI से बाहर
तुलना करने का इतना ही शौक है, तो एक तुलना ये भी होनी चाहिए – जब 2015 का विश्व कप सर पर था, तब कप्तान धोनी की पत्नी गर्भवती थी, लेकिन उन्होंने राष्ट्रधर्म को महत्व् देते हुए कहा कि देश सर्वोपरि होना चाहिए, बाकी काम बाद में, और वे टीम को सेमीफ़ाइनल तक भी लेके गए थे। लेकिन जब ऐसी ही एक विकट स्थिति कोहली के समक्ष आई, तो उन्होंने क्या किया, इसके लिए किसी विशेष शोध की आवश्यकता नहीं।
आज विराट कोहली चाहे जितनी सहानुभूति बटोरने का प्रयास कर रहे हों, परन्तु सत्य तो यह हैं कि वे अपना सम्मान खो चुके हैं, जो उन्होंने इतने वर्षों में कमाया था। अब विराट कोहली वैसे नहीं रहे जैसे वे पहले थे, और यदि वे दक्षिण अफ्रीका में असफल सिद्ध हुए, तो उनका समूल विनाश तय है, जिसे वे चाहकर भी नहीं रोक पाएंगे।