आदि है तो अंत है, अंत है तो अनंत है! ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 2021 का अंत होने जा रहा है। पिछले 12 महीनों में वैश्विक स्तर पर कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं जो भविष्य के रुख को तय करने महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहीं है। विगत 2 वर्षों में एक ही घटना केंद्र में रही है और वह है कोरोना। चीन द्वारा दी गई महामारी के कारण विश्व त्रस्त है जिसके कारण चीन पर 2021 में इतनी नकेल कसी गई कि इस कम्युनिस्ट देश की रीढ़ अब टूटने वाली है। ऑस्ट्रेलिया का प्रतिकार हो या Evergrande का दिवालिया होना हो, इस वर्ष चीन को इतने झटके लगे हैं जिसके दर्द को मापना आसान नहीं है। इन प्रमुख घटनाओं के बारे में जिन्होंने चीन की कमर तोड़ दी।
2021 का आरंभ अमेरिकी प्रशासन में बदलाव के साथ हुआ था जब जो बाइडन ने डोनाल्ड ट्रम्प को हरा कर राष्ट्रपति का चुनाव जीता था। जैसे अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हुआ पिछले एक वर्षों से ट्रम्प नीतियों के कारण संकुचित चीन एक बार फिर फन उठाने के मौके तलाशने लगा। हालांकि, चीन की यह खुराफात अधिक दिनों तक नहीं चली क्योंकि एक तरफ जापान तैयार हो रहा था तो वहीं दूसरी ओर भारत ने गलवान घाटी के दौरान बनाए गए दबाव को और बढ़ा दिया था। वहीं ऑस्ट्रेलिया भी व्यापार प्रतिबंधों के बावजूद प्रतिकार करने को लालायित था।
दरअसल, बाइडन के सत्ता में बैठते ही चीन ने अपने तट रक्षक बलों को अपने “अधिकार क्षेत्र” के तहत विदेशी जहाजों पर फायरिंग करने की अनुमति दी थी जिससे पूरे दक्षिण चीन सागर में चीनी आधिपत्य हो जाए। हालांकि, इसका परिणाम उल्टा हुआ और जापान ने तुरंत ही एक्शन लिया अपने सैन्य बजट को बढ़ाने की कवायद आरंभ कर दी। अब तो जापान ने इसे बढ़ा कर 264 बिलियन डॉलर तक करने का फैसला किया है। यह चीन के लिए किसी सदमें से कम नहीं था कि जापान एक बार फिर से चीनी विरोध में मजबूत हो रहा है।
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इस वर्ष चीन को कई मोर्चों पर बेइज्जती का सामना भी करना पड़ा। इस समय सबसे ज्वलंत मुद्दा बीजिंग ओलंपिक का है। चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड, अंतरराष्ट्रीय नियमों की घोर अवहेलना और इंडो-पैसिफिक में उसकी बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए, एक के बाद एक देश फरवरी में होने वाले बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के राजनयिक बहिष्कार की घोषणा कर रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने इस बहिष्कार की घोषणा की है। हाल ही में, जर्मनी भी इसी लिस्ट में शामिल हुआ है।
अनिवार्य रूप से, चीन कूटनीतिक मोर्चे पर सबसे पीछे चल रहा है। चाहे वह शिनजियांग में उइगर मुसलमानों के साथ व्यवहार के लिए हो, ताइवान के खिलाफ उसकी आक्रामकता या फिर पूरे Indo-Pacific क्षेत्र में उसकी स्थिति हो सभी जगह पर चीन की कूटनीति विफल रही है।
2021 में कई ऐसी घटनाएँ हुई जिनका कारण ऐसे मुद्दे थे जिन्हें चीन ने नजरंदाज कर दिया था। 1962 के बाद से ही उसे लगता था कि वह जब मन तब भारत के खिलाफ आक्रामकता दिखा कर उसे धमका सकताl हालांकि, ऐसा अब नहीं हुआ है और जब भी चीन ने ऐसा सोचा, मात उसे ही खानी पड़ी। चीन ने सोचा था कि वह मध्य एशिया और अफ्रीका को खरीद सकता है। यह मामला तो पूरी तरह से विफल रहा और अब तो अफ्रीकी देश उसके खिलाफ खड़े हो रहे। चीन ने सोचा कि यह पश्चिमी एशिया में अमेरिका की जगह ले सकता है। यहाँ तो चीन को मुंह की खानी पड़ी।
अब बात करते हैं कोरोना के टीकों की। चीन ने सोचा था कि कोरोना फैलाने के बाद चीनी टीके से दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर लेगा लेकिन यह पूरी तरह से विफल हो गया और इसके उलट भारतीय वैक्सीन की पूरी दुनिया कायल है। जिन देशों ने चीनी सिनोवैक का इस्तेमाल किया उन्हें पता चल गया कि नए वेरिएंट के सामने उस वैक्सीन की प्रभाकरिता शून्य है।
कोरोना से याद आया कि जब कोरोना शुरू हुआ था तो विदेशी कंपनियों ने चीन से अपना बोरिया बिस्तर बांधना आरंभ कर दिया था। 2021 में तो यह नए स्तर पर पहुँच गया। बार-बार लॉकडाउन, व्यापार-विरोधी नीतियां, दमनकारी राजनीतिक शासन और एक ढहती अर्थव्यवस्था से तंग आ कर सभी कंपनिययां अपने उत्पाद के विनिर्माण के लिए अन्य विकल्प को तलाशने लगे थे। ऐप्पल, सैमसंग, टेस्ला, एलजी, नाइके, एडिडास और कई अन्य सभी ने चीन को डंप कर दिया। इस बीच, शीआन जैसे चीनी शहरों में कोविड -19 का प्रकोप दुनिया भर में माइक्रोचिप सप्लाई चेन की स्थिरता के लिए खतरा है। इससे रही सही कंपनियाँ भी बाहर निकाल जाएंगी। इससे चीनी अर्थव्यवस्था पर से निवेशकों का विश्वास उठ गया जिसके कारण चीनी अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट देखी गयी।
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अब बात करते हैं 2021 में चीन को लगे सबसे बड़े झटके की। 2021 में चीन का रियल एस्टेट ऐसे गर्त में गया कि कई कंपनियाँ एक के बाद एक दिवालियाँ होती गईं। चीन में रियल एस्टेट डेवलपर कर्ज में डूबे हैं। वे अपने कर्ज का भुगतान नहीं कर सकते हैं, जो बदले में चीनी बैंकों को बड़े पैमाने पर NPA बन चुका है। इसलिए, चीनी बैंक भी दिवालिया होने लगे हैं, जिससे उनका पतन हो रहा है।
चीन का रियल एस्टेट क्षेत्र चीनी बैंकों से जुड़ा है, जबकि चीनी बैंक बदले में स्थानीय सरकारों से जुड़े हुए हैं। इसलिए, चीन में स्थानीय प्रशासन भी दिवालिया होने लगा है और भारी वित्तीय कमी का सामना कर रहा है। अब, वे लोगों से रंगदारी वसूलने, नई नियुक्तियों पर रोक लगाने और सरकारी कर्मचारियों को वेतन में कटौती का सहारा ले रहे हैं।
इसके बाद, हम चीन की ऋण-जाल कूटनीति के बारे में बात करते हैं। शी जिनपिंग की प्रमुख बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, यानी BRI दुनिया भर के गरीब और विकासशील देशों को कर्ज में फंसाने के एक नव-औपनिवेशिक उपकरण से ज्यादा कुछ नहीं है। मध्य एशियाई, अफ्रीकी, मध्य पूर्वी और मेकांग बेसिन देश चीन का मुख्य फोकस रहे हैं। लेकिन शी जिनपिंग 2021 में सभी मोर्चों पर विफल रहे हैं।
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जबकि मध्य एशियाई देशों ने रूस और भारत की ओर रुख किया है तो वहीं अफ्रीका में, सीसीपी और उसकी उपनिवेशवादी ताकतों को हिंसा का उपयोग करके खदेड़ा जा रहा है। अफ्रीकी देश चीन से तंग आ चुके हैं। वे अपने कर्ज का भुगतान करने से इनकार कर रहे हैं, जबकि बीजिंग को अपनी रणनीतिक संपत्ति पर कब्जा करने की अनुमति भी नहीं दे रहे हैं।
2021 में चीन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। रियल एस्टेट संकट, शी जिनपिंग की बाजार विरोधी नीतियां, टेक और एडुटेक सेक्टर जैसे बड़े व्यवसायों पर उनकी कार्रवाई ने अर्थव्यवस्था को गर्त में धकेल दिया। चीन का तकनीकी क्षेत्र CCP की कार्रवाईयों से बचने के लिए लगभग 800 बिलियन डॉलर खो चुका है। Market Capital के संदर्भ में देखा जाए तो चीन की सबसे बड़ी कंपनियों ने पिछले एक साल में करीब 1.5 ट्रिलियन डॉलर खोए हैं।
व्यक्तिगत रूप से शी जिनपिंग खाईं के मुहाने पर खड़े हैं। एक और कदम से वे चीन को ऐसी खाईं में ले जाएंगे जहां से निकलना असंभव होगा। 2021 में शी जिनपिंग ने अपनी ही पार्टी के सदस्यों, चीन के लोगों और दुनिया भर के देशों को भड़का दिया है। चीन और शी जिनपिंग इतने सारे दुश्मन लेकर नए वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, ऐसे में यह देखना दिलचस्प रहेगा कि CCP बचती है या जिनपिंग।