एक महिला का शोषण करते हुए पकड़ा गया तांत्रिक
लाखों की चोरी में ‘बाबा’ पाया गया दोषी!
एक व्यक्ति की हत्या में हिरासत में लिया गया ‘ढोंगी बाबा!’
सत्य बताइए, आपने ऐसी खबरें कितनी बार मीडिया में, चैनलों पर, टीवी पर, यहाँ तक कि ऑनलाइन भी देखी, सुनी या पढ़ी होगी? किसी न किसी ऐसी खबर का तो अनुभव होगा आपको। ऐसी खबरों से कुछ लोगों का एजेंडा भी तृप्त होता है, और कुछ लोगों का मानो दाना-पानी ही इसी से चलता है। परंतु क्या यही वास्तविक सत्य है?
एजेंडावाद सर्वोपरि रहता है मीडिया में, इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन अधिकतर समय हमने देखा है कि कैसे अनेकों रिपोर्ट में, ये जानते हुए भी कि अपराधी एक मौलवी है, तांत्रिक नहीं, मीडिया उन्हे जानते-बूझते हुए बाबा या तांत्रिक के नाम से ही संबोधित करती है। विश्वास नहीं होता तो इन मामलों को ध्यान से देखिए –
- मुहम्मद फिरोज़ एवं मोहम्मद हनीफ़ नामक बहरूपियों को बाराबंकी से हिरासत में लिया गया, क्योंकि एक व्यक्ति अपनी बेटी को मरवाना चाहता था। परंतु टाइम्स नाऊ से लेकर दैनिक जागरण, अमर उजाला इत्यादि ने दोनों को तांत्रिक के नाम से संबोधित किया
- पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के हुसैनाबाद में लखनऊ पुलिस ने मोहम्मद नासिर उर्फ बाबा को यौन शोषण के लिए हिरासत में लिया था। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया ने उसे बाबा के रूप में संबोधित किया।
- अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के बिजनौर से एक नेपाली मौलवी को लोगों को ठगने के पीछे हिरासत में लिया गया। नाम उसका था इस्लामउद्दीन। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया ने क्या बुलाया? सही जवाब – तांत्रिक!
अब बताइए, यहाँ दोषी कौन है, तांत्रिक, या उन्हे एक विशेष नीति के अंतर्गत घेरे में लाने वाला मीडिया? लेकिन प्रश्न तो अब भी उठता है, आखिर तांत्रिक और मौलवी के बीच का अंतर क्या है? अगर हम वर्तमान भारतीय मीडिया को पढ़ा-लिखा गंवार कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि मौलवी और तांत्रिक के बीच सबसे सरल अंतर तो यही है कि तांत्रिक के मुसलमान नाम कभी नहीं पाए जाते, और भौतिक सुख, दुख, पुण्य, पाप इत्यादि से उनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता।
तांत्रिक मौलवियों की भांति खुलेआम नहीं घूमते। वे तंत्र विद्या में विश्वास रखते हैं, और अक्सर ये भगवान विष्णु, भगवान शिव और माँ शक्ति की उपासना में लीन पाए जाते हैं। इसका उल्लेख प्राचीन कश्मीर के शैव सिद्धांत में भी पाए जाते हैं। तंत्र विद्या में विश्वास रखने वाले तांत्रिक न तो बिना मूंछ की दाढ़ी रखेंगे और न ही विशेष परिधान पहनेंगे। जिन्हे दीन दुनिया से वास्ता नहीं, वो उससे जुड़ी रीतियाँ क्यों अपनाएंगे?
लेकिन मौलवी ऐसे नहीं है। वे भौतिक लोक से भली-भांति जुड़े हैं, और वे अपने आप को अरब संस्कृति से जोड़ते हैं, भले उनके बाप-दादा कुछ पीढ़ी पहले तक सनातनी रहे हों। मौलवी तांत्रिक की भांति संसार से विमुख नहीं रहते, बल्कि अवसर मिलते ही इस्लाम के गुणगान करेंगे। तो आखिर ये तांत्रिक किस एंगल से हुए भैया?
ऐसे में तांत्रिक को अकारण अपराध की दुनिया से बिना किसी ठोस आधार के जोड़ना न केवल हास्यास्पद है, अपितु एक सोचे समझे षड्यन्त्र का भाग भी प्रतीत होता है, जिसका उद्देश्य स्पष्ट होता है – सनातन धर्म को हीन दिखाना, जिसका बीड़ा तो अकेले टाइम्स नेटवर्क ने ही उठा रखा है। यदि अब भी मीडिया नहीं सुधरी, तो धर्म और जातपात के नाम पर वो आग लगेगी, जिसे बुझाते बुझाते आने वाले पीढ़ियों की कमर टूट जाएगी, और उसके लिए सिर्फ कुछ कुटिल दिमाग और उनका कुत्सित दिमाग ही दोषी होगा।