तुर्की की अर्थव्यवस्था की हालत दिन प्रतिदिन डांवाडोल होती जा रही है। इस कारण तुर्की की सरकार को अपने देश की नागरिकता से संबंधित नियमों में बदलाव करना पड़ा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तुर्की के सरकारी गजट में यह घोषित किया गया है कि जो भी व्यक्ति देश में एक निश्चित मात्रा में निवेश करता है, संपत्ति खरीदता है, रियल स्टेट में निवेश करता है अथवा फिक्स्ड कैपिटल इन्वेस्टमेंट करता है, उसे तुर्की की नागरिकता दी जा सकती है। नए नियम के अनुसार यदि कोई विदेशी व्यक्ति तुर्की में ढाई लाख डॉलर के मूल्य की अचल संपत्ति खरीदता है और 3 वर्ष तक संपत्ति का स्वामित्व उसी व्यक्ति के पास रहता है, तो वह व्यक्ति तुर्की की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है।
और पढ़ें: तुर्की के राष्ट्रपति ने COP26 का किया बहिष्कार, क्योंकि भारत की ‘विशेष खातिरदारी’ कर रहा था ब्रिटेन
नागरिकता बेच कर मुद्रा संचय करना चाहता है तुर्की
ऐसे में ये कहा जा सकता है कि तुर्की अपनी नागरिकता को बेचकर अधिक से अधिक मात्रा में विदेशी मुद्रा का संचय करना चाहता है, जिसका प्रयोग ऐसी विभिन्न वस्तुओं के आयात के लिए किया जाएगा जो तुर्की की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है। पूरे प्रकरण को विस्तार से आगे समझा जा सकता है। तुर्की के राष्ट्रपति R.T Erdogen स्वयं को खलीफा घोषित कर चुके हैं और लगातार तुर्की में इस्लामीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। इस्लाम ब्याज को हराम मानता है, यही कारण है कि तुर्की के स्वघोषित खलीफा Erdogen अपने देश में ब्याज दरों को लगातार कम किए हुए है। कोरोना काल के दौरान दुनिया भर में मुद्रास्फीति बढ़ी है। हमने अपने पिछले कई लेखों में मुद्रास्फीति पर विस्तार से चर्चा की है।
दुनिया भर में कोरोना के फैलाव के बाद आर्थिक गतिविधियां बन्द रही और विनिर्माण एवं सप्लाई चेन ठप पड़े रहे। इस कारण आपूर्ति कम हो गई, किंतु मांग का स्तर लगातार बना रहा। जब आर्थिक गतिविधियां पुनः शुरू हुई तो लोगों के पास पैसा आना शुरू हुआ और मांग में ज्यादा वृद्धि हुई। जबकि इसके अनुपात में आपूर्ति उतनी तेजी से नहीं बढ़ पा रही है, ऐसे में पूरी दुनिया मुद्रास्फीति की ओर बढ़ रही है।
और पढ़ें: ‘इस्लाम मुझे इजाजत नहीं…’ एर्दोगन ने तुर्की की चरमराती अर्थव्यवस्था को बचाने से इनकार कर दिया
डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर पड़ती जा रही है लीरा
अर्थशास्त्र का नियम यह कहता है कि जब मुद्रास्फीति बढ़े तो ब्याज दर बढ़ा दी जाती है, जिससे बाजार में मुद्रा की तरलता कम की जा सके। किंतु R.T Erdogen ऐसा करने को तैयार नहीं हैं। इस कारण तुर्की में मुद्रास्फीति दिनोंदिन बढ़ रही है, जिससे डॉलर के मुकाबले तुर्की की मुद्रा का मूल्य घट रहा है। एक वर्ष पहले $1 के बदले 7.3 लीरा मिलता था, तो अब 13.86 लीरा का अनुपात है। पहले विदेशों से आयातित वस्तुओं पर जितनी लीरा देनी पड़ती थी, अब उसकी दोगुनी देनी पड़ रही। ऐसे में तुर्की में भी वस्तुओं के दाम लगातार बढ़ रहे हैं।
उदाहरण के लिए तुर्की विदेश से जितनी कीमत पर एक वर्ष पूर्व एलपीजी गैस मंगाता था, अब उससे दोगुनी कीमत पर मंगा रहा है। स्पष्ट है कि गैस से संचालित सभी उद्योगों में लागत मूल्य भी लगभग दोगुना बढ़ जाएगा। इसी तरह एक चेन रिएक्शन के कारण सभी वस्तुओं के दाम बढ़ते जाएंगे। मौजूदा समय में तुर्की अपनी नागरिकता को बेचकर डॉलर कमाना चाहता है, जिससे वह विदेशों से आयात लगातार जारी रख सके और कीमत को भी स्थिर कर सके। लेकिन यह सभी उपाय स्थाई समाधान नहीं करने वाले। एर्दोगन को अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव करना होगा, अन्यथा तुर्की की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकता।
और पढ़ें: कट्टरपंथ इस्लाम एक अर्थव्यवस्था को क्या से क्या बना देता है, तुर्की इस बात का उदाहरण है