तुर्की की मुद्रा लीरा का अवमूल्यन और तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसी बीच तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के एक बयान ने देश की अर्थव्यवस्था को नीचे तक हिला दिया है। तुर्की की आर्थिक हालात इन दिनों बेहद कमजोर है। राष्ट्रपति एर्दोगन ने अपने संबोधन में कहा है कि इस्लाम में कम ब्याज लेने या फिर ब्याज ना लेने की बात कही गई है, इसलिए वो ब्याज दरों को नहीं बढ़ाएंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि तुर्की की आर्थिक नीति इस्लामिक कानूनों के अनुरूप ही बनी रहेगी। एर्दोगन के इस बयान के बाद तुर्की की नेशनल करेंसी लीरा में डॉलर के मुकाबले लगभग 6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
Turkey: Lira registers another fall as Erdogan annoces his interest rate policy is based on Is|am and will continue.
— MeghUpdates🚨™ (@MeghBulletin) December 20, 2021
क्या है अवमूल्यन का अर्थशास्त्र?
अर्थव्यवस्था का बहुत सरल सिद्धांत है कि जब मुद्रा का अवमूल्यन होता है, तो ब्याज दरों को बढ़ाया जाता है। अन्य मुद्राओं के संबंध में अवमूल्यन एक मुद्रा के मूल्य में कमी है। अवमूल्यन मुद्रा के संदर्भ में कीमतों में वृद्धि से देश में आयात की घरेलू मांग को कम करने तथा विदेशी मुद्राओं के संदर्भ में उनकी कीमतों को कम करके देश के निर्यात के लिए विदेशी मांग को बढ़ाने का प्रयास करता है। इससे देश की मुद्रा के आंतरिक मूल्य (क्रय शक्ति) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, किंतु विदेशी मुद्रा की तुलना में वह सस्ती हो जाती है। मौजूदा समय में तुर्की के साथ भी यही हुआ है। तुर्की की मुद्रा लीरा 6 फीसदी से अधिक कमजोर होकर 17.624 प्रति डॉलर पर आ गई है।
जब बाजार में अवमूल्यन शुरू होता है, तो सरकार की जिम्मेदारी होती है कि बाजार से मुद्रा कम करे। इसका तरीका है, लोगों को प्रोत्साहित किया जाए कि पैसे बैंक में जमा करें। इसके लिए ब्याज देना पड़ेगा, जिससे लोगों में उत्साह बढ़ेगा और बैंकों में ज्यादा पैसे जमा हो पाएंगे। लेकिन इस्लामिक कानून के अनुसार ब्याज लेना और देना गुनाह है। राष्ट्रपति एर्दोगन अपनी जिद के कारण अर्थव्यवस्था के मूल नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। इस कारण तुर्की की मुद्रा लीरा की कीमत लगातार घटते जा रही है।
तुर्की में बढ़ रही है कॉस्ट ऑफ लिविंग
तुर्की में लीरा का मूल्य घटने से वस्तुओं की कीमत में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। तुर्की में सामान्य व्यक्ति का जीवन कठिन हो रहा है, क्योंकि बढ़ती महंगाई ने कॉस्ट ऑफ लिविंग बढ़ाई है। सऊदी अरब जैसे देशों ने लंबे समय से कम ब्याज का मॉडल अपनाया है, लेकिन उनके पास अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए लगातार मिलने वाली विदेशी मुद्रा है। तेल खरीदार देश उन्हें लगातार डॉलर की आपूर्ति करते रहे हैं। तेल के व्यापार के लाभ का प्रयोग लोगों को सब्सिडी देने में किया जाता है। सऊदी अरब अपने निवासियों को भत्ते देता है। वर्ष 2018 में सीधे तौर पर स्थानीय लोगों को 13 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद दी गई थी, जिससे वह खरीदारी कर सकें।
लेकिन सऊदी अरब की तरह ही तुर्की लोगों को आर्थिक मदद नहीं दे सकता, क्योंकि वह सऊदी अरब की तरह तेल निर्यातक देश नहीं है और न ही चीन या भारत की तरह मैन्युफैक्चरिंग हब है। तुर्की व्यक्तिगत पेंशन पर सब्सिडी 5 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी करने की योजना बना रहा है, लेकिन इसका लाभ थोड़े समय तक ही होगा। तुर्की को यदि अपनी अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाना है, तो उसे अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव करना होगा। लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन का खलीफा बनने का सपना, तुर्की के आम लोगों को दवाई, भोजन, बिजली आदि सब महंगे दामों पर खरीदने पर विवश कर रही है।
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