चीन की बढ़ी मुश्किलें, भारत ने श्रीलंका के साथ बड़े पैमाने पर त्रिंकोमाली तेल टैंक परिसर का किया सौदा

हर मोर्चे पर चीन को झटका दे रहा है भारत!

त्रिंकोमाली तेल टैंक

भारत और श्रीलंका के बीच एक बार फिर से संबंध सुधरने लगे हैं, वह भी चीन को झटका देते हुए। जब से चीन ने श्रीलंका को दूषित जैविक खाद भेजा है तब से दोनों देशों के बीच रिश्तों में खटास आ चुकी है। अब खबर यह आ रही है कि श्रीलंका ने महत्वपूर्ण त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म में भारत के हिस्से को आधिकारिक मोहर लगा दिया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब भारत और श्रीलंका मिलकर दूसरे विश्वयुद्ध के समय में बनी त्रिंकोमाली तेल टैंक परिसर को पुनर्विकसित करेंगे। श्रीलंका की गोटबाया राजपक्षे सरकार की कैबिनेट ने त्रिंकोमाली तेल टैंक प्रॉजेक्‍ट को भारत के साथ मिलकर बनाने की मंजूरी दे दी है। रिपोर्ट के अनुसार, इस द्वीप देश की सरकार ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण त्रिंकोमाली तेल टैंक परिसर के संदर्भ में भारत सरकार के साथ तीन समझौतों की समीक्षा के बाद कहा कि दोनों पक्ष इस संयुक्त विकास परियोजना को क्रियान्वित करने पर सहमत हैं।

त्रिंकोमाली तेल टैंक परिसर का होगा संयुक्त विकास

सरकारी सूचना विभाग द्वारा जारी एक प्रेस बयान के अनुसार, सोमवार को हुई वर्ष की पहली कैबिनेट बैठक में लिए गए निर्णयों में यह बताया गया कि भारत और श्रीलंका राजनयिक वार्ता के माध्यम से “संयुक्त विकास परियोजना को लागू करने के लिए एक समझौते पर पहुंच गए हैं।” प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, कैबिनेट ने त्रिंकोमाली तेल टैंक परिसर के 24 तेल टैंकरों को सिलोन पेट्रोलियम कारपोरेशन (CPC) और 14 तेल टैंक इंडियन आयल कंपनी की स्थानीय सहायक कंपनी (LIOC) को आवंटित करने के प्रस्ताव की मंजूरी दी है।

रिपोर्ट के अनुसार, शेष 61 तेल टैंकरों को ट्रिंको पेट्रोलियम टर्मिनल प्रा. लि. द्वारा विकसित किया जाएगा। इस कंपनी में CPC की 51 और LIOC की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जल्द ही इस प्रोजेक्ट के समझौते पर दस्तखत होने की उम्मीद है। इस डील का जिक्र सबसे पहले 29 अक्‍टूबर 1987 को हुए भारत-श्रीलंका समझौते में किया गया था। इसमें कहा गया था कि इस टैंक को संयुक्‍त रूप से दोनों देश विकसित करेंगे लेकिन 35 साल बीत जाने के बाद भी यह समझौता लटका हुआ था। वहीं, मोदी सरकार ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का तेल टैंक परिसर में भारतीय हिस्सेदारी का सपना पूरा किया है, जिसे देश की सत्ता पर लंबे समय से आसीन रही काँग्रेस पार्टी ना कर सकी।

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आर्थिक साझेदारी की कड़ी रही है ये परियोजना

समझौते पर हस्ताक्षर श्रीलंका के पूर्वी त्रिंकोमाली जिले में एक लंबे समय से रुके हुए, विवादास्पद परियोजना में नई दिल्ली के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा, जिसमें एक प्राकृतिक बंदरगाह है। इस तेल टैंक परिसर का इस्तेमाल दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ईधन भरने वाले स्टेशन के तौर पर होता था। श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच यह समझौता रणनीतिक रुप से बेहद महत्वपूर्ण है। त्रिंकोमाली के लाभप्रद बंदरगाह जिले में स्थित लगभग 8 मिलियन बैरल तेल की क्षमता के साथ द्वितीय विश्व युद्ध के युग की तेल भंडारण सुविधा दशकों से एक प्रमुख द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी की कड़ी रही है।

चीन से दूर और भारत के समीप आ रहा है श्रीलंका 

एक ओर रणनीतिक राष्ट्रीय संपत्ति में भारतीय भागीदारी को चीन के ऊपर भारत की जीत के रूप में देखा जाना चाहिए। अगर इस तेल टैंक स्‍टोरेज की श्रीलंका में स्थिति देखी जाए तो इसके बगल में ही त्रिंकोमाली बंदरगाह है, जो चेन्नई से बेहद नजदीक है। वहीं, दूसरी ओर श्रीलंका को अपने कर्ज जाल में फँसाने वाला चीन कई वर्षों से इस इलाके पर अपनी नजरें गड़ाए हुए था। अब चीन और श्रीलंका देशों के तनावपूर्ण संबंधों के बीच भारत द्वारा समझौते पर हस्ताक्षर एक सकारात्मक संकेत को दर्शाएगा। China Bay में स्थित त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों द्वारा ईंधन भरने वाले स्टेशन के रूप में काम करने के लिए बनाया गया था।

बता दें कि पिछले वर्ष अक्टूबर में, जैविक उर्वरकों की एक दूषित खेप को लेकर चीन के साथ विवाद के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास आ गई थी। इसी के बाद श्रीलंकाई वित्त मंत्री तुलसी राजपक्षे ने अपने देश को दिवालिया होने से बचाने की उम्मीद में दिल्ली का दौरा किया था।

श्रीलंका ने मान ली भारत की बात

इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, उस दौरान उन्हें ‘चार-आयामी’ पैकेज की पेशकश की गई थी – पहला, भारत से ईंधन की खरीद के लिए Line Of Credit देना, भारत से खाद्य आयात के लिए एक अलग लाइन ऑफ क्रेडिट, त्रिंकोमाली में तेल भंडारण सुविधा का प्रारंभिक आधुनिकीकरण और भारतीय निवेश को सक्षम करना।

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अब इस फैसले को देखकर यह स्पष्ट होता है कि श्रीलंका ने भारत की बात मान ली है। यही नहीं, कैबिनेट ने भारतीय भागीदारी के साथ दो अन्य प्रस्तावों को भी मंजूरी दी है। आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि अशोक लेलैंड ने श्रीलंका को 500 नई बसें उपलब्ध कराने का टेंडर हासिल किया है जबकि श्रीलंका पुलिस बल महिंद्रा एंड महिंद्रा से 750 जीप खरीदेगा। ऐसा लगता है कि श्रीलंका को अब समझ आ चुका है कि थाली का बैंगन बनने से कोई फायदा नहीं है और अब एक पक्ष चुनाना ही होगा नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब वह एक देश के तौर पर दिवालिया हो जाएगा!

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