जीवाश्म ईंधन
कई वर्षों पहले बना प्राकृतिक ईंधन जीवाश्म ईंधन कहलाता है. इसमें मृत जीव जंतुओं तथा वृक्षों की संरचनाएं शामिल होती हैं. यह ईंधन पेट्रोल, डीजल आदि के रूप में होता है. वैज्ञानिकों के अनुसार ये सभी जीवाश्म ईंधन है क्योंकि ये सभी पदार्थ जीवों (वनस्पति एवं जंतु) के अवशेषों से बने हैं.
उत्पत्ति
पेट्रोलियम से प्राप्त विभिन्न इंधन जैसे एल.पी.जी., पेट्रोल तथा केरोसिन (मिट्टी का तेल) भी जीवाश्म ईंधन की श्रेणी में आते हैं.पेट्रोल और प्राकृतिक गैस करोड़ों वर्ष पूर्व बने थे.प्राकृतिक आपदाओं के कारण बहुत से जीव एवं वनस्पति पऋत्वी की गहराई में दब गए थे.धीरे धीरे इसमें रेत की परते जमती गई. यह मुख्यतः नदी या झील के बहुत नीचे होते हैं. जहाँ यह बहुत उच्च ताप और दाब के कारण ईंधन बन जाते हैं.
पृथ्वी के भीतर ऑक्सीजन की अनुपस्थिति होने क कारण तथा उच्च ताप एवं दाब के कारण कालांतर में इन जीवों के अवशेष कोयले में परिवर्तित हो गए. जिसमें यह अलग अलग परत के रूप में होते हैं. जिसमें पेट्रोल, प्राकृतिक गैस आदि के अलग अलग परत होते हैं. अलग अलग गहराई में अलग अलग ताप और दाब मिलने के कारण यह असमानता आती है.
जीवाश्म ईंधन के प्रकार
जीवाश्म ईंधन निम्न प्रकार के होते हैं.
1.कोयला
यह एक कठोर, काले रंग का पदार्थ होते हैं.जो घने जंगल लाखों साल पहले धरती में दब गए थे. उनके ऊपर धीरे धीरे मिट्टी जमती गई. इन्हें उच्च तापमान और दबाव का सामना करना पड़ा है. जिससे यह धीरे-धीरे कोयले में परिवर्तित हो गए. इसका उपयोग कारखानों में, खाना बनाने में, थर्मल प्लांटों में बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है.
2.पेट्रोलियम
यह एक तैलीय तरल है, जो आमतौर पर हरे या काले रंग का पाया जाता हैं.समुद्री जानवरों और पौधे के मरने के कारण उनका शरीर समुद्र में दब जाता है.जिससे पेट्रोलियम का निर्माण होता हैं.इसका उपयोग पेट्रोल के रूप में इंजनों को शक्ति प्रदान करने के लिए किया जाता है.
3.प्राकृतिक गैस
यह एक स्वच्छ जीवाश्म ईंधन है. जिसका कोई रंग नहीं होता साथ ही यह बिना किसी महक के होती है. इसे आसानी से पाइपलाइनों के माध्यम से ट्रांसफर किया जा सकता हैं.
90-160 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर केरोजेन प्राकृतिक गैस में बदल जाते हैं.इसका उपयोग बिजली पैदा करने,ऑटोमोबाइल में ईंधन के रूप में और घरों में खाना पकाने के लिए किया जा सकता हैं.
जीवाश्म ईंधन का प्रभाव
करोड़ों वर्षों में बने कोयले एवं पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधन ऊर्जा के अमूल्य भंडार हैं. जिनका उपयोग मानव निरंतर कर रहा है. बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण हमारी जीवनशैली में कई बदलाव हुए हैं.जिसके कारण इन ऊर्जा स्रोतों का अत्यधिक दोहन हो रहा है. कोयले के खनन से जल एवं वायु प्रदूषण को बढ़ावा मिल रहा है. इन ईंधनों के उपयोग से निकलने वाला धुंआ भी वायुमंडल को प्रदूषित कर रहा है. जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं.
जीवाश्म ईंधन के लाभ
इससे एक ही स्थान पर अधिक मात्रा में बिजली पैदा कर सकते हैं.
इनकी लागत बहुत कम होती हैं.
पाइपलाइनों के माध्यम से तेल और गैस का ट्रांसफर किया जा सकता हैं.
यह समय के साथ सुरक्षित हो गए हैं.
यह सीमित संसाधन हैं जो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं.
जीवाश्म ईंधन के नुकसान
कोयले और पेट्रोलियम के जलने से वायु प्रदूषण होता हैं. जीवाश्म ईंधन कार्बन, नाइट्रोजन, सल्फर आदि के ऑक्साइड छोड़ते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता और पीने योग्य पानी को प्रभावित करते हैं. जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं जो ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण बनती हैं.
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पर्यावरणीय प्रभाव
निजी वाहनों और अन्य यातायात के साधन में इसी ईंधन का उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता है. लेकिन हमें यह बात समझने की जरुरत है कि यह एक सीमित मात्रा में ही पृथ्वी में उपस्थित है. इसके उपयोग से वायु प्रदूषण बढ्ने लगता है और तापमान में भी बढ़ोतरी होती है.जिसके कारण कई स्थानों की बर्फ पिघलने लगती हैं. जिससे होता यह है कि पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है.
आज का मानव अधिक उर्जा का उपयोग कर रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि यदि ऐसे ही उर्जा खपत की दर में बढ़ोतरी होती रही तो जीवाश्म ईंधनों के ये भंडार लगभग 21 वी शताब्दी के मध्य तक समाप्त हो जाएंगे.यदि ऐसा होता है तो ऐसी स्थिति में सभी उद्योग एवं कारखाने बंद हो जाएंगे. सभी कार्य बिना मशीनों के करने होंगे. यह एक गंभीर समस्या है.जिसे समय रहते सही करना होगा.
भारत में जीवाश्म ईंधन
जैसे-जैसे भारत का आधुनिकीकरण होता है और जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवास करती जाती है. देश बायोमास और कचरे के उपयोग से जीवाश्म ईंधन के साथ-साथ अन्य ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर हो गया हैं. आशा करते है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा ऐसे ही लेख और न्यूज पढ़ने के लिए कृपया हमारा ट्विटर फॉलो करें.