कल्याण सिंह को पद्म विभूषण मिलते ही लिबरलों के खेमे में खलबली मच गई है!

इन्होंने 'राम मंदिर' के लिए सत्ता को ठोकर मार दिया था!

कल्याण सिंह पद्म विभूषण

Source- TFIPOST

“मुझे आज भी ढांचे के गिरने का कोई अफ़सोस नहीं है। वो मेरी इच्छा नहीं थी, परन्तु आज भी मुझे अपने किये पर कोई पश्चात्ताप नहीं। नो रिग्रेट, नो रिपेंटेन्स, नो सॉरी, नो ग्रीफ, और ढाचें का विध्वंस राष्ट्रीय शर्म का नहीं, राष्ट्रीय गर्व का विषय है!” ये शब्द थे उस व्यक्ति के, जो आयुपर्यन्त अपने वचन से कटिबद्ध रहें। अन्य लोग राजनीति के प्रलोभन में चाहे जो बोलें, परन्तु यह राजनीतिज्ञ अपने बयान से टस से मस नहीं हुआ। जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज नेता कल्याण सिंह की, जो आधुनिक शब्दावली में पहले भौकाल या Sigma Male थे, जिनका आदर्श स्पष्ट था कि ‘संस्कृति से कोई समझौता नहीं।’अब मोदी सरकार ने 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया, जिसके बाद से ही लिबरलों के खेमे में त्राहिमाम मच गया है।

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कल्याण सिंह को किया गया सम्मानित

दरअसल, गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। अगर आपको और हमें अयोध्या में भव्य राम मंदिर के पूर्ण वैभव के साथ बनते देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, तो इसके लिए आप स्वर्गीय कल्याण सिंह को धन्यवाद कर सकते हैं।

आखिरकार, बहुत कम लोगों के पास अपने कार्यों के माध्यम से एक पूरी पीढ़ी को आकार देने की शक्ति होती है और कल्याण सिंह ने निश्चित रूप से उस शक्ति का प्रयोग किया है। और अब मोदी सरकार ने पूर्व सीएम के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हुए और उनके द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों को लेकर उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।

इस मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कल्याण सिंह को पद्म विभूषण मिलने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया है। उन्होंने ट्वीट किया, “कल्याण सिंह जी ने अपना पूरा जीवन देशहित में समर्पित किया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जनता को एक भय मुक्त और जन-कल्याणकारी शासन दिया। आज नरेंद्र मोदी जी द्वारा उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित करना, बाबूजी के राष्ट्र समर्पित विराट जीवन को सच्ची श्रद्धांजलि है।”

लिबरलों ने उगला जहर!

लेकिन जैसे ही कल्याण सिंह को पद्म विभूषण मिलने की घोषणा हुई, उसके बाद से देश के लिबरल्स खून के आंसू रोने लगे। लिबरल्स को यह नहीं पच रहा कि देश के इतने सम्मानित नेता रहे कल्याण सिंह को यह पुरस्कार कैसे प्राप्त हो गया। कल्याण सिंह को पद्म सम्मान मिलने के बाद लिबरल्स गैंग सोशल मीडिया पर जहर उगलने लगा।

तथाकथित पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘चूंकि हम छोटी यादों वाले देश हैं, यह मत भूलिए कि 1992 में जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया था, तब कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे। आज उन्हें देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिला है।’ देश के इस कद्दावर नेता को पद्म विभूषण से सम्मानित किए जाने के बाद राजदीप सरदेसाई द्वारा किया गया यह ट्वीट उनके मानसिक दिवालियापन का प्रतीक है! ये पहली बार नहीं है कि उन्होंने ऐसे मामलों पर अपने जहरीले बाण चलाए हों, सरदेसाई ऐसा हमेशा से करते आ रहे हैं!

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वहीं, भाविका कपूर नामक एक महिला ने ट्वीट करते हुए लिखा ‘कानून की नजर में कल्याण सिंह अपराधी थे। SC ने कहा कि बाबरी विध्वंस एक अवैध कार्रवाई थी, और वह तत्कालीन मुख्यमंत्री थे, इसलिए वह एक अपराधी थे। लेकिन,अपराधियों का महिमामंडन करना संघियों की पुरानी आदत है।’

ट्विटर यूजर सैमुल्लाह खान ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘मेरा नाम शरजील इमाम है, मैं एक IITIAN हूं, मैं 2 साल से भारतीय जेल में हूँ, क्योंकि मैं एक मुसलमान हूँ। लेकिन नफरत की राजनीति के प्रतीक “कल्याण सिंह” बाबरी मस्जिद के अपराधी को #PadmaVibhushan से नवाजा गया। आप सभी को “बनाना रिपब्लिक ऑफ हिंदुत्व” की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।’

https://twitter.com/SamiullahKhan__/status/1486214370766258177?s=20

हिंदुओं के लिए सत्ता को मार दिया था ठोकर

लिबरलों को छोड़िए, हम आपको कल्याण सिंह के जीवन चरित्र से अवगत कराते हैं, जिनके लिए अपनी संस्कृति के आगे सत्ता मायने नहीं रखती थी। कल्याण सिंह देश के वो नेता थे, जिन्होंने हिन्दू समाज के लिए अपनी राजनीती दांव पर लगा दी थी। आपको बता दें कि वर्ष 1992 बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय, कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। एक बार जब उनसे पूछा गया कि क्या मस्जिद को तोड़ने के लिए मार्च कर रहे कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया जाए, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखित अनुमति देने से इनकार कर दिया था। उन्होंने तर्क दिया था कि फायरिंग से देश भर में कई लोगों की जान चली जाएगी, अराजकता और कानून व्यवस्था भी बिगड़ सकता था।

लेकिन 6 दिसंबर 1992 को गजब ही हुआ। कारसेवकों और सनातनियों की विशाल भीड़ ने विवादित क्षेत्र को चारों ओर से घेर लिया था। तत्कालीन भारतीय गृह मंत्री शंकरराव चव्हाण ने कल्याण सिंह को सूचित किया कि कारसेवक गुंबद के पास पहुंच चुके हैं, तो कल्याण सिंह ने कहा, “मेरे पास तो एक कदम आगे की सूचना है कि उन्होंने गुंबद तोड़ना शुरू कर दिया है। मैं इस्तीफा देने को तैयार हूं, परंतु उन पर [कारसेवकों] पर गोली नहीं चलाऊंगा।” उन्होंने अनेक साक्षात्कारों में अपने इस बात को दोहराया भी था।

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बाबरी विध्वंस के बाद कल्याण सिंह ने अपने शब्दों का मान रखते हुए त्यागपत्र सौंप दिया। उन्हें सत्ता त्यागना स्वीकार था, परंतु अपने धर्म का अपमान बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं था। जब 1997 में भाजपा की सरकार पुनः सत्ता में आई तो इसमें कल्याण सिंह के व्यक्तित्व का भी काफी हद तक योगदान था। लेकिन यही व्यक्तित्व कभी-कभी व्यक्तिगत रूप से उनके राजनीतिक जीवन में आड़े भी आता था। आज जब देश कल्याण सिंह जैसे सच्चे नायक को उनके योगदान के लिए याद करता है, तो देश के कुछ लिबरल्स अपनी ओछी मानसिकता से समाज को दूषित करने में लगे रहते हैं!

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