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PM मोदी द्वारा नेताजी का सम्मान करने से लिबरल और गोरी चमड़ी वाले हैं ‘अप्रसन्न’

इन्हें बोस की प्रतिष्ठा से ईर्ष्या है!

Shikhar Srivastava द्वारा Shikhar Srivastava
24 January 2022
in चर्चित
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति
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मुख्य बिंदु
  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति स्थापित करने के निर्णय से भारत में बैठे बहुत से लोग (उदारवादियों और श्वेत वर्चस्ववादियों) हैं अप्रसन्न
  • उदारवादियों और वामपंथियों का कहना है कि जवाहरलाल नेहरू की अनदेखी कर उनके कद को छोटा आंका गया
  • उदारवादियों और श्वेत वर्चस्ववादियों समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न है कि भारत हिटलर के किसी मित्र की मूर्ति को कैसे स्थापित कर सकता है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति स्थापित करने के निर्णय से भारत में बैठे बहुत से लोग (उदारवादियों और श्वेत  वर्चस्ववादियों) अप्रसन्न हैं। इनमें अधिकांश वे लोग हैं, जो आज भी पश्चिमी परंपरा के गुलाम हैं एवं उनका साथ दे रहे हैं। वामपंथी विचारधारा के लोगों को यह बात नहीं पच रही कि देश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का कद और ऊंचा हो। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके संरक्षक जवाहरलाल नेहरू की अनदेखी कर उनके कद को छोटा आंका गया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति स्थापना का विरोध करने के लिए कोई उन्हें हिटलर का समर्थक बता रहा है, तो कोई INA (Indian National Army) का बचाव करने हेतु नेहरू की गलती मान रहा है।

श्वेत वर्चस्ववादियों और उदारवादियों में है असंतोष 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति स्थापित करने का विरोध करने वाले में वे लोग सबसे आगे हैं, जिन्हें आज भी अपनी गोरी चमड़ी (श्वेत वर्चस्ववादी) का गुरूर है। उन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस का हिटलर के साथ हाथ मिलाना याद है और जापान के पक्ष में युद्ध करना याद है लेकिन भारतीयों पर ब्रिटिश शासन में हुए अत्याचार को वे भूल चुके हैं। ऐसे लोग इस बात का दुख मना रहे हैं कि भारत हिटलर के किसी मित्र की मूर्ति को कैसे स्थापित कर सकता है? ये लोग यह भूल रहे हैं कि विश्व युद्ध के दौरान बंगाल में पड़े अकाल में जो 42,00,000 बंगाली मारे गए थे, उनकी मृत्यु के जिम्मेदार हिटलर नहीं ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल थे।

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जब ब्रिटिश शासन में हुए थे अत्याचार 

द्वितीय विश्व युद्ध के समय बंगाल में अकाल था, जबकि भारत के अन्य क्षेत्रों में पर्याप्त अन्न उत्पादन हुआ था, जिससे बंगाल के लोगों को तत्काल मदद दी जा सकती थी। भारत के वायसराय ने चर्चिल को पत्र लिखकर बंगाल में अनाज बांटने की अनुमति मांगी और बताया कि अनाज के बिना लाखों लोग मर रहे हैं।

और पढ़ें: मोदी सरकार ने किया नेताजी सुभाष चंद्र बोस को याद, दिया वो सम्मान जिसके वो हकदार हैं

Such is the desperation over Netaji Bose statue at the Rajpath that British colonial elite is issuing veiled threats to India and even dumping their pointsman Nehru. Just imagine the scene if and when Mountbatten's diaries actually go public. pic.twitter.com/xXyxrGFZz9

— Divya Kumar Soti (@DivyaSoti) January 23, 2022

फिर चर्चिल ने अपने उत्तर में कहा था कि जब गांधी मर जाएगा मुझे बता देना। वायसराय को आदेश दिया गया कि अतिरिक्त अनाज को स्टॉक करके रखा जाए, जिससे युद्ध में उसका प्रयोग हो सके। उस समय भारत के पास युद्ध के लिए भी पर्याप्त मात्रा में स्टॉक अनाज उपलब्ध था किन्तु बंगाल में अनाज बांटने की अनुमति चर्चिल ने तब भी नहीं दी।

जब चीन और अमेरिका जैसे मित्र देशों ने चर्चिल से आग्रह किया कि वह उन्हें अनाज बांटने की अनुमति दें तब चर्चिल ने उनके आग्रह को यह कहते हुए नाकार दिया कि उनके द्वारा समुद्र के रास्ते भारत भेजा गया अनाज जापानियों के हाथों लग सकता है। चर्चिल की सनक के कारण बंगाल में बीस लाख लोग मारे गए। हिटलर ने 60 लाख यहूदियों की हत्या की, तो उसे आज तक कोसा जाता है, किन्तु ब्रिटिश शासन में केवल बंगाल के अकाल और बंटवारे के कारण इससे अधिक लोग मारे गए थे। वहीं, अगर जांच पड़ताल करें तो 1757 से 1947 का पूरा आंकड़ा इससे कई गुना अधिक होगा।

Hitler orchestrated a famine in Bengal that killed 4.2 million Indians.

Oh sorry, that was Churchill.

Excuse us if our sensibilities were/are a little bit different, South Asia expert. https://t.co/eoNhPyhUui

— Ajit Datta (@ajitdatta) January 23, 2022

The statue of a man who was pals with Hitler is going to sully India Gate in New Delhi.

— Tunku Varadarajan (@tunkuv) January 22, 2022

उदरवादी और श्वेत वर्चस्ववादी बोस की प्रतिष्ठा से हैं अप्रसन्न

बोस के लिए चर्चिल और हिटलर में कोई अंतर नहीं था। अंतर केवल इतना था कि हिटलर भारत के दुश्मनों के साथ लड़ रहा था और सुभाष चंद्र बोस दुश्मन के दुश्मन को साथ लेकर भारत की आजादी की लड़ाई लड़ना चाहते थे। आज यह स्थापित सत्य है कि उनके भय ने ही अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया अन्यथा आजाद भारत से जा चुके अंग्रेजों को बोस को युद्धबंदी घोषित करने और उनकी वतन वापसी पर उन्हें ब्रिटिश सरकार को सौंपने का समझौता नेहरू से क्यों करना पड़ता?

मानसिक परतंत्रता से नहीं मिली मुक्ति 

ब्रिटिश शासन जानता था कि बोस उनकी भारत से छुट्टी के साथ ही, भारत पर उनके मनोवैज्ञानिक प्रभाव को भी समाप्त कर देंगे। बोस और गांधी जैसे नेताओं की अनुपस्थिति के कारण भारत की स्वतंत्रता के बाद भी भारत ने अपनी मानसिक परतंत्रता से मुक्ति नहीं प्राप्त की। आजादी के पहले अंग्रेज शासक वर्ग थे और स्वतंत्रता के बाद उन्होंने अपने पिछलग्गुओं का एक शासक वर्ग तैयार किया, जिसे देश की बागडोर दे दी गई। इस शासक वर्ग में भारत का उदारवादी वर्ग सबसे आगे खड़ा रहा।

और पढ़ें: वो सम्मान, जिसके बोस हकदार हैं- सुभाष चंद्र बोस की जयंती के साथ अब शुरु होगा गणतंत्र दिवस समारोह

इसके अतिरिक्त नेहरू के शासन में भारत में एक वामपंथी ‛एलिट क्लास’ का उदय भी हुआ, जो इंदिरा गांधी के शासन आने तक भारत का भाग्य विधाता बन गया। वामपंथी विचारधारा की एक विशेषता जो लेनिन के कारण उसमें सम्मिलित हुई वह थी व्यक्ति पूजा। लेनिन की इस परिपाटी को पहले स्टालिन ने अपनाया और बाद में यह हर वामपंथी समाजवादी देश पर लागू हो गई।

भारत में समाजवाद और मार्क्सवाद के संरक्षक के रूप में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं को स्थापित किया और सर्वहारा की क्रांति का सपना पालने वाले भारतीय आज भी व्यक्ति पूजा की वामपंथी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। नेहरू ही उनके नेतृत्वकर्ता थे, ऐसे में बोस का सम्मान उन्हें कैसे पच सकता है। ऐसे में, आज अंग्रेजों के गुलाम और नेहरू गांधी परिवार के कारण उदरवादी और श्वेत वर्चस्ववादी बोस को मिल रही प्रतिष्ठा से अप्रसन्न हैं।

Tags: नरेन्द्र मोदी सरकारब्रिटिश इंडियालिबरल्सवामपंथीसुभाष चंद्र बोस
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