मूल सार
- इतिहास की पाठ्यपुस्तक में मुग़लकालीन इतिहास का वर्णन अधिक किया गया है
- विदेशी आक्रमण, राजनीति और पाश्चात्य शिक्षा की आड़ में भारतीय इतिहास के राजवंशो की अनदेखी की गई है
- इस लेख में चालुक्य, पल्लव और राष्ट्रकूट राजवंश के विस्तृत और वृहद इतिहास को मुग़लों के सापेक्ष में वर्णित किया गया है
वर्तमान की हमारी पाठ्यपुस्तकें भारत के समृद्ध इतिहास के बारे में असंख्य घटिया कहानियों से भरी हुई हैं। हमारे पास लोधी और मामलुक (रजिया सुल्तान) जैसे दिल्ली के छोटे और महत्वहीन राजवंशों को समर्पित पूर्ण अध्याय हैं, लेकिन अहोम, उड़िया-कलिंगन, नागा, चालुक्य, चोल, राष्ट्रकूट, गुप्त, नन्द और पाण्ड्या आदि के बारे में कुछ पंक्तियों से अधिक नहीं पढ़ाया जाता है। चेरस, वंगा, खासी, पांड्य, पल्लव, मराठा, विजयनगर साम्राज्य, सिख साम्राज्य, कश्मीर के करकोट, कनिष्क, सुहलदेव और कई अन्य राजवंशों के बारे में भी काफी कम लिखा गया है जबकि क्रूर और खून के भूखे मोपला दंगाई, टीपू सुल्तान और औरंगजेब जैसे शासकों को देशभक्ति पुरोधा के रूप में महिमामंडित किया जाता है।
भारतीय इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को सिर्फ दिल्ली के इतिहास के रूप में व्याख्यायित किया है और मुख्य रूप से इस बात पर ध्यान केंद्रित किया है कि कैसे आक्रमणकारी अंदर आए और हमारे गौरवशाली सभ्यता को ध्वस्त कर नयी सभ्यता की नींव रखी? 200-300 विषम वर्षों तक शासन करने वाले मुगलों के विपरीत कई भारतीय राजाओं का शासन मुगलों से कहीं अधिक था। सिर्फ चोलों का शासन 900 वर्षों का था। हम अपने दर्शकों के लिए चालुक्य, पल्लव और राष्ट्रकूट के विस्तृत और वृहद इतिहास को मुग़लों के सापेक्ष में वर्णित करेंगे। हालांकि, इन गौरवशाली भारतीय इतिहास के तुलना में मुग़ल कहीं नहीं टिकते परंतु, इसी चीज़ का एहसास कराना ही तो हमारा उद्देश्य है।
पल्लव राजवंश का इतिहास
पल्लव दक्कन के वाकाटकों के ब्राह्मण शाही वंश की एक शाखा थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार पल्लव चोल राजकुमार और एक नागा राजकुमारी के वंशज थे, जिनका मूल निवास मणिपल्लवम द्वीप था। कुछ के अनुसार पल्लव टोंडिमंडलम के मूल निवासी थे और इनकी राजधानी कांचिपुरम थी। जब टोंडिमंडलम को सातवाहनों ने जीत लिया तो पल्लव उनके सामंत बन गए। तीसरी शताब्दी ई. में सातवाहनों के पतन के बाद, वे स्वतंत्र हो गए। पल्लवों ने प्राकृत और संस्कृत में अपने पहले के राजलेख जारी किए। प्रारंभिक पल्लव शासकों ने 250 ईस्वी से 350 ईस्वी तक शासन किया और प्राकृत में अपने राजलेख जारी किए। उनमें से महत्वपूर्ण शासक थे शिवस्कन्दवर्मन और विजयस्कन्दवर्मन। पल्लव शासकों की दूसरी पंक्ति ने 350 ईस्वी और 550 ईस्वी के बीच शासन किया और संस्कृत में अपने राजलेख जारी किए।
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इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक विष्णुगोपा था। तीसरी पंक्ति के पल्लव शासकों ने 575 ईस्वी से नौवीं शताब्दी तक शासन किया। उन्होंने संस्कृत और तमिल दोनों में अपने राजलेख जारी किए। सिंहविष्णु इस वंश के प्रथम शासक थे। उन्होंने कलाभ्रों को नष्ट कर टोंडिमंडलम में पल्लव शासन को मजबूती से स्थापित किया। उन्होंने चोलों को भी हराया और पल्लव साम्राज्य को कावेरी नदी तक बढ़ा दिया। इस वंश के अन्य महान पल्लव शासक महेंद्रवर्मन प्रथम, नरसिंहवर्मन प्रथम और नरसिंहवर्मन द्वितीय थे। पल्लवों के पास एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक व्यवस्था थी। राजा प्रशासन के केंद्र में था। उसे सक्षम मंत्रियों द्वारा सहायता प्रदान की जाती थी। वह न्याय का फव्वारा था। उन्होंने अच्छी और एक प्रशिक्षित सेना बनाए रखी।
चालुक्य वंश का इतिहास
इस बीच, चालुक्यों ने 6वीं शताब्दी और 12वीं शताब्दी के बीच दक्षिणी और मध्य भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया। उनकी राजधानी वातापी में स्थित थी, जो कर्नाटक राज्य की आधुनिक बादामी है। बादामी चालुक्य, पूर्वी चालुक्य और पश्चिमी चालुक्य सभी चालुक्य वंश के हिस्से थे और इस वंश के राजा अलग-अलग समय अवधि के दौरान शासन करते थे। हालांकि, अधिकांश भारतीय इस तथ्य से बेखबर होंगे।
पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल के दौरान राजवंश अपनी शक्तियों के शिखर पर पहुंच गया। उसने लगभग पूरे दक्षिण-मध्य भारत को जीत लिया। पुलकेशिन द्वितीय उत्तर भारत के राजा हर्ष के विजय अभियान को रोकने के लिए प्रसिद्ध थे, जब वह देश के दक्षिणी हिस्सों को जीतने की कोशिश कर रहे थे। चालुक्य महान प्रशासक थे और उनके पास एक प्रभावशाली समुद्री शक्ति थी। उनके शासन में स्थानीय भाषाओं के साथ-साथ संस्कृत का भी विकास हुआ। 7वीं शताब्दी के एक राजलेख में संस्कृत को अभिजात वर्ग की भाषा के रूप में वर्णित किया गया है जबकि कन्नड़ जनता की भाषा थी।
राष्ट्रकूट वंश का इतिहास
दंतीवर्मन या दंतिदुर्ग ने बाटापी के अंतिम चालुक्य शासक कीर्तिवर्मन द्वितीय को हरा राष्ट्रकूट राजवंश की स्थापना की। कहा जाता है कि उसने कलिंग, कोसल, कांची, श्रीश्रील, मालवा, लता आदि पर विजय प्राप्त की और महाराष्ट्र पर कब्जा कर लिया। बाद में, अमोघवर्ष प्रथम जिसे सबसे महान राष्ट्रकूट राजा माना जाता है, ने मान्यखेत में एक नई राजधानी की स्थापना की, जिसमें ब्रोच उनके शासनकाल के प्रमुख बंदरगाहों में से एक बन गया। इस अवधि के दौरान अरबों के साथ वाणिज्य फला-फूला। अमोघवर्ष का कद ऐसा था कि एक अरब व्यापारी सुलेमान ने अपने खाते में उन्हें दुनिया के चार महानतम राजाओं में से एक कहा।
ऐसे में, इतिहासकार सिर्फ मुगल वास्तुकला के बारे में प्रशंसा के गाथागीत गाते हैं। वे आसानी से भूल जाते हैं और हमें भी भूलने पर बाध्य कर देते हैं कि महाबलीपुरम, कांचीपुरम सब पल्लवों द्वारा बनाया गया था, जबकि बादामी और ऐहोल-पट्टदकल्लू के गुफा मंदिर चालुक्य वास्तुकला को चित्रित करते हैं। अपने अधपके दावों को सही साबित करने के लिए कुछ मौसमी इतिहासकार मुग़ल काल के समय भारतीय GDP को विश्व GDP का लगभग 25 प्रतिशत बताते हैं, जो की पूर्णतः गलत तथ्य है। आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन द्वारा एक डेटा संकलित किया गया है, जिसमे 2000 वर्षों के प्राचीन अर्थव्यवस्था की समीक्षा की गयी है।
भारतीय गौरव को छुपाते वामपंथी इतिहासकार
हालांकि, पिछले 2000 वर्षों के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों में गहराई से जांच करने पर एक अलग तथ्य से सामना होता है। मुगल काल से पहले और बाद में भारतीय सकल घरेलू उत्पाद की तुलना करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुगलों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को ना सिर्फ स्थिर कर दिया बल्कि निरंतर पतन की ओर भी ले गए। मुग़लों की शानोशौकत अर्थव्यवस्था के बढ़ोतरी के कारण नहीं बल्कि गरीबों के दमन के कारण थी। चार्ट स्पष्ट रूप से दिखाता है कि विश्व सकल घरेलू उत्पाद में भारत का हिस्सा 1AD से 1150 AD तक दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद के 40-45 प्रतिशत के बीच था, उस समय भारत पर मुख्य रूप से चालुक्य और राष्ट्रकूट जैसे देशी राजवंशों का शासन था।
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लेख की परिधि की देखते हुए संदर्भित राजवंशों को बहुत संक्षेप में वर्णित किया गया है। इसका उद्देश्य मात्र इतना है कि ये भारतीय पाठक की अंतरात्मा को झकझोरे ताकि आप अपना इतिहास जानने को उद्दत हों। पहले विदेशी आक्रमण ने आपके गौरव को ध्वस्त किया, फिर राजनीति ने आपके वैभव को नष्ट किया और अंत में पाश्चात्य शिक्षा ने आपको हिन भाव से ग्रसित किया। पर, अब आप अकर्मण्य मत होइए। उठिए, जागिए और स्वयं को पहचानते हुए अपने गौरव को प्राप्त करिए!