शब्दालंकार किसे कहते हैं?
शब्दालंकार – शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है। शब्द + अलंकार
जिस अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उपस्थित हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी दूसरे शब्दों के रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो जाता है, वह शब्दालंकार माना जाता है।
अर्थात जिस अलंकार में शब्दों का प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर पर्यायवाची शब्द को रखने से वह चमत्कार खत्म हो जाता हैं वह शब्दालंकार कहलाता है।
शब्दालंकार के प्रकार
शब्दालंकार के मुख्यतः 6 प्रकार होते हैं।
अनुप्रास अलंकार
यमक अलंकार
पुनरुक्ति अलंकार
विप्सा अलंकार
वक्रोक्ति अलंकार
श्लेष अलंकार
1. अनुप्रास अलंकार
जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तो वह अनुप्रास शब्दालंकार कहलाता है।
जैसे :- रघुपति राघव राजा राम (‘र’ वर्ण की आवृत्ति)
2. यमक अलंकार
यमक शब्द का मतलब दो होता है। अर्थात – जब कविता में किसी एक शब्द का एक से अधिक बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग होता हो, तब वहाँ
यमक शब्दालंकार होता है; जैसे –
काली घटा का घमंड घटा।
3. पुनरुक्ति अलंकार
जब किसी काव्य यह पंक्ति में एक ही शब्दों की निरंतर आवृत्ति होती हो पर वहां अर्थ की भिन्नता नहीं होने के कारण वह पुनरुक्ति शब्दालंकार माना जाता है। जैसे- सुबह-सुबह बच्चे काम पर जा रहे हैं।
4. विप्सा अलंकार
आदर, घबराहट, आश्चर्य, घृणा, रोचकता आदि भावों को व्यक्त करने के लिए किसी शब्द को दुहराना ही वीप्सा अलंकार है।
जैसे :- मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।
5. वक्रोक्ति अलंकार
जब सुनने वाला अर्थात श्रोता कहने वाले अर्थात वक्ता की बातों का गलत सुन लेता है। अर्थात उसका गलत अर्थ निकाल लेता है, वहां वक्रोक्ति अलंकार होता है।
1. एक कह्यौ वर देत भव भाव चाहिए चित्त।
सुनि कह कोउ भोले भवहिं भाव चाहिए मित्त।।
अर्थ :- किसी ने कहा शिव वर देते हैं लेकिन उसके लिए चित्त में भाव होना चाहिये।
यह सुन कर दूसरे ने कहा – अरे मित्र, शिव इतने भोले हैं कि उनके रिझाने के लिए ‘भाव’ की भी आवश्यकता नहीं।
6. श्लेष अलंकार
जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये लेकिन उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।
जैसे :- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।
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अलंकार का अर्थ
अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आभूषण’।
अलंकार में ‘अलम्’ और ‘कार’ दो हैं। ‘अलम्’ का अर्थ है भूषण या सजावट।
अलंकार की परिभाषा
शब्द और अर्थ की शोभा बढ़ाने वाले धर्म को अंलकार कहते हैं।
अलंकार के मुख्यतः दो भेद होते हैं।
शब्दालंकार
अर्थालंकार
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अर्थालंकार के प्रकार
शब्दालंकार के बारें में हम पहले ही पढ़ चुके है आईये अब अर्थालंकार के बारे में पढ़ते है.
2. अर्थालंकार – काव्य में जहाँ अर्थ के कारण विशेष सौंदर्य या चमत्कार उत्पन्न होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है।
अर्थालंकार के चार भेद होते हैं।
उपमा अलंकार
रूपक अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार
मानवी अलंकार
(i)उपमा अलंकार – उपमा का सामान्य अर्थ है – समानता या मिलता-जुलता रूप दिखाना।
जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है। जैसे- हरि पद कोमल कमल।
(ii) रूपक अलंकार – जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है। जैसे: गोपी पद-पंकज पावन कि रज जामे सिर भीजे।
iii) उत्प्रेक्षा अलंकार – जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है।
सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात।।
मनहूनीलमनिसैल पर आतपपर्यो प्रभात।।
(iv) मानवीकरण अलंकार – जब प्राकृतिक वस्तुओं कैसे पेड़,पौधे बादल आदि में मानवीय भावनाओं का वर्णन हो यानी निर्जीव चीज़ों में सजीव होना दर्शाया जाए तब वहां मानवीकरण अलंकार आता है। जैसे फूल हँसे कलियाँ मुसकाई।
(v) अतिशयोक्ति अलंकार – काव्य में जहाँ किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता हैं, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है; जैसे-
हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
लंकासिगरी जल गई, गए निसाचर भाग ।।
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