एक प्रख्यात पुरातत्वविद् और पुरालेखशास्त्री थे डॉ० आर नागास्वामी

हिंदू संस्कृति को रखा अक्षुण्ण!

डॉ० आर नागास्वामी
क्या आप जानते हैं?

भारत के प्रसिद्ध पुरातत्वविद् और विद्वान लेखक डॉ० आर नागास्वामी का विगत रविवार (23 जनवरी 2022) को देहांत हो गया। डॉ० आर नागास्वामी ने हिंदू संस्कृति के संरक्षण के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए थे। पुरातत्वविद् के रूप में उनका स्थान बीबी लाल के समान है। डॉ० आर नागास्वामी जी का जन्म 10 अगस्त 1930 को मद्रास में हुआ था। उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद संस्कृत में मास्टर की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद पुना विश्वविद्यालय से पुरातत्व के क्षेत्र में पीएचडी की डिग्री पूरी की। उन्होंने चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) के सरकारी म्यूजियम में कार्य शुरू किया और फिर वे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से जुड़ गए। पुरातत्व के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें 2018 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

मंदिर के शिलालेखों पर अपने काम के लिए थे प्रसिद्ध 

पुरातत्व को तमिलनाडु में एक विषय के रूप में प्रचारित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने पुरातत्व को एक विषय के रूप में लोकप्रिय बनाने के लिए पॉकेट बुक्स छपवाने शुरू किए और विद्यालयों के सहयोग से विद्यालय स्तर से ही विद्यार्थियों में इस विषय के प्रति रुचि पैदा करनी शुरू की। पुरातत्व के क्षेत्र में किए गए कार्यों में उनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य तमिलनाडु की संस्कृति पर था। चोल साम्राज्य पर उन्होंने विस्तृत कार्य किया। तमिलनाडु के स्थापत्य विशेष रुप से महाबलीपुरम मंदिर पर उनके द्वारा कार्य किया गया। उन्होंने तमिलनाडु के विद्यार्थियों में पुरातत्व और मंदिर स्थापत्य के प्रति इतनी गहरी रूचि पैदा की कि हजारों विद्यार्थी उनके साथ मिल गए और इन लोगों ने तमिलनाडु के छोटे-बड़े मंदिरों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने 1983 में एक किताब ‘मास्टरपीस ऑफ अर्ली साउथ इंडियन ब्रोंजेस’ लिखी और साथ ही विश्व शास्त्रीय तमिल सम्मेलन को पहचान दिलाने के लिए एक पुस्तक का संकलन भी किया। उनके द्वारा स्थापित एक वेबसाइट (Tamilartsacademy.com) के अनुसार, नागास्वामी ने कई ऐतिहासिक स्मारकों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसमें पुगलूर में चेरा शिलालेख, गंगईकोंडाचोलपुरम का महल स्थल, मदुरै में 17 वीं शताब्दी का प्रसिद्ध थिरुमलाई नायक पैलेस, ट्रांक्यूबार में डेनिश बंदरगाह और जन्म स्थान शामिल हैं। उन्होंने पांचालंकुरिची में और कोरकाई में वीरपांड्य कट्टाबोम्मन के महल स्थल पर खुदाई का भी निरीक्षण किया। दक्षिण भारतीय कांस्य और मंदिर अनुष्ठानों में एक अधिकारी ने बताया कि नागास्वामी ने COVID-19 महामारी के दौरान तमिलनाडु में मंदिरों को बंद करने के विचार का समर्थन किया। उन्होंने भक्तों से भगवान को एक निजी स्थान पर पूजने के लिए कहा।

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वामपंथियों के भ्रम जाल को तोड़ने में रहे सफल

डॉ० आर नागास्वामी तमिल अलगाववाद के धुर विरोधी थे। वह यह नहीं मानते थे कि तमिल साहित्य और संस्कृति भारत के उत्तरी क्षेत्र की संस्कृति से भिन्न है। उनका मानना था कि तमिल संस्कृति को वैदिक संस्कृति से पृथक करना पूरी तरह से मूर्खतापूर्ण है। उनका कहना था कि वैदिक संस्कृति का तमिल भाषा में प्रत्यक्ष रूप ही तमिल संस्कृति है। वर्षों तक वामपंथी विचारधारा के इतिहासकारों द्वारा यह स्थापित करने का प्रयास किया गया कि तमिल संस्कृति वास्तव में वैदिक आर्यन संस्कृति से अलग थी और उसका शाम में हड़प्पा सभ्यता के साथ बैठाया जाता रहा। इस विमर्श की जड़ में वही रटी रटाई बात थी कि आर्य विदेशी आक्रमणकारी थे, सिंधु सभ्यता के लोग आक्रमणकारियों से अलग थे और आक्रमणकारियों ने सिंधु सभ्यता के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वहीं, डॉ० आर नागास्वामी के देहांत पर पंकज सक्सेना नामक एक ट्विटर यूजर ने लिखा,  “डॉ. आर. नागास्वामी का निधन हो गया। ॐ शांति। महान पुरातत्वविद् और इतिहासकार ने राम जन्मभूमि मामले में महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान किए। उन्होंने साबित किया कि तमिल संस्कृति वेदों से कैसे निकलती है। उन्होंने सिद्ध किया कि कैसे मंदिर यज्ञवेदी की निरंतरता में हैं।”

https://twitter.com/PankajSaxena84/status/1485209289828765700?s=20

 

बताते चलें कि डॉ० आर नागास्वामी जी ने अपने लेखों के माध्यम से यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वैदिक आर्य बनाम द्रविड़ का विमर्श गढ़ा हुआ है। इस प्रकार तमिल अस्तित्व, द्रविड़ सभ्यता और कथित ब्राह्मणवादी विदेशी संस्कृति आदि सभी मुद्दों पर उन्होंने वामपंथियों और उपनिवेशवादी इतिहासकारों द्वारा स्थापित तथ्यों का खंडन किया। उन्होंने वामपंथियों के भ्रम जाल को तोड़ने के लिए ना केवल स्वयं प्रयास किए बल्कि विद्यार्थियों की एक पूरी खेप तैयार की जो आज भी वामपंथी एजेंडा के विरुद्ध खड़े हैं।

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