मुख्य बिंदु
- पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाट-मुस्लिम गठजोड़ पर सियासत एक बार फिर से गरमा गई है
- कुछ मीडिया स्टूडियो का दावा है कि जाट-मुस्लिम एकता भाजपा को क्षेत्र में हाशिये पर धकेल देगी
- समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम एकता को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है
- पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा द्वारा हुए विकास और पार्टी के बड़े नेताओं की उपस्थिति विपक्षी पार्टियों को धूल चटाने में सक्षम है
उत्तर प्रदेश में चुनाव का माहौल है और इसी बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाट-मुस्लिम गठजोड़ पर सियासत एक बार फिर से गरमा गई है। कई दशकों से जाट हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है पर किसान आंदोलन के समय कुछ नेताओं ने इस मनगढंत झूठ (जाट-मुस्लिम गठजोड़) को वास्तविकता में बदलने का प्रयास किया है। वहीं, नोएडा में मीडिया स्टूडियो का दावा है कि जाट-मुस्लिम एकता भाजपा को क्षेत्र में हाशिये पर धकेल देगी। Opinion Poll लगातार उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं किंतु जब पश्चिमी यूपी की बात आती है, तो मीडिया के कुछ वर्ग बीजेपी को जाट-मुस्लिम एकता के आधार पर हाशिये पर रख रहे हैं।
दरअसल, जब देश में किसान आंदोलन चल रहा था तब राकेश टिकैत जैसे बहरूपिये किसान नेताओं ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों को भड़काने की कोशिश की थी और साथ ही जाट और मुस्लिम भाईचारा का झूठा राग भी अलापा था। वहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश इस किसान आंदोलन का केंद्र रहा था। बता दें कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा सूबा है। उत्तर प्रदेश ही वह राज्य है, जिसे जीत कर केंद्र की सत्ता तक पहुंचने का मार्ग खुलता है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए तमाम राजनैतिक पार्टियां अपना पूरा दम-ख़म दिखा रही है।
जाट-मुस्लिम गठजोड़ को पुनर्जीवित करने का प्रयास
उत्तर प्रदेश के चुनाव को जीतने की चाबी भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथ में है। असल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि प्रधान भूमि हैं, जहां पर चुनावी परिदृश्य से सबसे महत्वपूर्ण समुदाय भी विराजते हैं चाहे वह जाट हिन्दू हों, मुस्लिम हों या अन्य पिछड़े हिन्दू हों। कथित किसान आंदोलन के बल पर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम एकता को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है।
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गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में वामपंथी मीडिया का सदैव एक फॉर्मूला रहा है कि भाजपा के विरुद्ध माहौल बनाने के लिए झूठे राजनैतिक समीकरण खड़े किए जाएं। इसी क्रम में 2014 से लेकर अब तक प्रत्येक स्तर के चुनाव में कभी दलित-मुस्लिम, तो कभी यादव-मुस्लिम वोट बैंक की कल्पना गढ़ी गईं। वहीं, कथित किसान आंदोलन के नाम पर मुजफ्फनगर में जो पिछले साल किसान पंचायच हुई थी, उसके जरिए जाट-मुस्लिम एकता के वोट बैंक की कल्पना की जाने लगी है।
इसके विपरीत अगर जमीनी स्तर पर देखें, तो ये कहा जा सकता है कि राज्य में जाट-मुस्लिम एकता नाम का कोई समीकरण ही नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का समर्थन भाजपा के साथ ही दिखता है, इसलिए ये कहना हास्यासपद होगा कि भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम वोट बैंक के फॉर्मूले से मात दी जा सकती है। दरअसल, किसान आंदोलन के जरिए विपक्ष जाट-मुस्लिम एकता गढ़ने की तैयारी कर रहा था। राकेश टिकैत द्वारा महापंचायत के मंच से अल्लाह-हु-अकबर का नारा लगाना इसका स्पष्ट उदाहरण है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एजेंडा
आपको बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय के लोग अभी 2013 के मुजफ्फरनगर के दंगों को नहीं भूले हैं। इसके विपरीत दंगो में जिन जाटों के खिलाफ मुकदमें हुए उन्हें योगी सरकार ने आते ही वापस ले लिया था, जिसके चलते जाट समुदाय में योगी के प्रति एक सकारात्मक रुख है। वहीं, सपा मुखिया अखिलेश यादव को योगी सरकार के इस फैसले से आपत्ति है। ध्यान देने वाली बात ये है कि उनकी ये आपत्ति मुस्लिम तुष्टीकरण के आधार पर है, जिसके कारण उनके प्रति जाट समुदाय में आज भी आक्रोश है। इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि सैफई महोत्सव है। मालूम हो कि जब मुजफ्फरनगर में दंगे हो रहे थे, तब अखिलेश अपने पिता के साथ सैफई महोत्सव के रंगारंग कार्यक्रमों का आनंद ले रहे थे।
वहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के कामकाजों की बात करें तो जेवर एयरपोर्ट से लेकर नोएडा फिल्म सिटी बनाने का ऐलान, गन्ना किसानों को सुविधाएं देने की बात से योगी सरकार की छवि यहां सकारात्मक है। इसके विपरीत बिजली एवं सुरक्षा व्यवस्था की सुविधाओं के चलते जाट समुदाय का समर्थन योगी सरकार के लिए महत्वपूर्ण है। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि भाजपा के खिलाफ विधानसभा चुनाव को लेकर जाट-मुस्लिम एकता की परिकल्पना के आधार पर जो एजेंडा चलाया जा रहा है, वो खोखलेपन के अलावा कुछ भी नहीं है।
जाट-मुस्लिम गठजोड़ से भाजपा को नुकसान नहीं
वर्ष 2014 में जाटों का एक मुश्त वोट बैंक भाजपा के हिस्से आया था और कुछ ऐसी ही स्थिति वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में थी, जिसके दम पर भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी बढ़त बनाई थी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 71 फीसदी जाटों ने भाजपा को वोट दिया था जबकि 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 91 फीसदी हो गया था। वहीं, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों की बात करें तो 2012 में भाजपा ने पश्चिमी यूपी की 110 में से केवल 38 सीटें हासिल की थीं और 2017 में उसकी सीटों की संख्या बढ़कर 88 जा पहुंची। भाजपा का ये उदय दर्शाता है कि जाट-मुस्लिम गठजोड़ बस एक ढकोसला ही है।
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बताते चलें कि चुनावी समीकरण के लिहाज से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास बहुत सारे फायर ब्रांड नेता मौजूद हैं, जिनमें संगीत सोम, सुरेश राणा, संजीव बालियान सहित कई तमाम ऐसे नेता हैं, जो विपक्षी पार्टियों को धूल चटाने में सक्षम हैं। आज के परिदृश्य में जब RLD और सपा में अपवित्र गठबंधन हुआ है, उससे जाट समुदाय असहज महसूस कर रहा है। जाट समुदाय हमेशा से राष्ट्रभक्त और धर्मयोगी रहा है और वो कदापि ऐसे पार्टी के साथ नहीं देंगे, जिसने राम मंदिर आंदोलन में कारसेवकों पर गोली चलवाई हो। ऐसे में, चुनावी गणित कोई भी बैठाए पर जाट समुदाय हमेशा से भाजपा का समर्थन बहुत ही मुखर तौर पर करता आया है और आने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जाट समुदाय फिर से एकमुश्त होकर भाजपा का कमल खिलाएंगे और वामपंथी बस देखते रह जाएंगे!