तिरुपति बालाजी मंदिर कहां है?
भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक तिरुपति बालाजी मंदिर भी है. यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित समुद्र तल से 3200 फीट की ऊंचाई पर तिरुमाला पहाड़ियों पर स्थित है. यह मंदिर विश्व के सबसे संपन्न व प्रसिद्ध मंदिरों में गिना जाना है. भक्तों की इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था जुड़ी हुई है. प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं. इस मंदिर को श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. आज के लेख में हम बात करने जा रहे है तिरुपति बालाजी मंदिर कहां है और इस पवित्र मंदिर के इतिहास के बारें में.
तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रतिदिन भक्तों द्वारा बेहिसाब चढ़ावा चढ़ता है. कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं. इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद जरुर पूरी होती है. इसलिए यहां सुबह से ही दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आ जाते हैं.
तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में कई मतभेद हैं. लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था. कहते है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं ने इस मंदिर के निर्माण में योगदान दिया था.
तिरुपति बालाजी मंदिर कहां है?
तिरुपति बालाजी मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित समुद्र तल से 3200 फीट की ऊंचाई पर तिरुमाला पहाड़ियों पर स्थित है.
श्री वैंकटेश्वर मंदिर
तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित एक मंदिर है. श्री वैंकटेश्वर का यह प्राचीन मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी पर स्थित है. माना जाता है कि वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें वैंकटेश्वर कहा जाने लगा. भगवान विष्णु के रुप में बालाजी का मंदिर यहां की सातवी चोटी वेंकटाद्री पर है, इस वजह से बालाजी को वेंकटेश्वर के नाम से पुकारा जाता है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री वैंकटेश्चर विष्णु साक्षात विराजमान है.मंदिर परिसर को बहुत सुंदर बनाया गया है.
मान्यता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई थी. यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता था.इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की यहां मौजूद भगवान की मूर्ति के अंदर से समुद्री लहरों की आवाज सुनाई देती है.वहीं इससे भी हेरान करने वाली बात यह है की इस मंदिर में रोजाना 3 लाख लड्डुओं को बनाया जाता है.इन लड्डुओं को यहां की पुरानी पारंपरिक विधि जो की तीन सौ साल पुरानी है का प्रयोग करके बनाया जाता हैं.वहीं इन लड्डुओं को बालाजी मंदिर की गुप्त रसोई में बनाया जाता है. जिसका नाम पोटू है.
बाजाजी की मूर्ति पर चोट के निशान भी है. जिसमें एक पौराणिक किवदंती जुड़ी है, कहा जाता है कि भगवान बालाजी का एक भक्त रोजाना पहाडियों को पार करके भगवान को दूध चढाने आया करता था. उसकी भक्ति को देख भगवान बाला जी ने निर्णय लिया कि वह उस भक्त की गौशाला में जाकर ही दूध का सेवन करेंगे.
अपने निर्णय के अनुसार भगवान ने भक्त के जाना शुरू किया. जिसके लिए उन्हें मनुष्य का रूप धारण करना पड़ता था. किवदंती के अनुसार एक बार बाला जी भक्त के यहां मनुष्य रूप में दूध पी रहे थे.तभी उन मनुष्य रुपी भगवान को भक्त ने दूध पीता देख लिया,जिससे उसे गुस्सा आया और उसने बाला जी पर प्रहार कर दिया. माना जाता है कि उस प्रहार का निशान आज भी भगवान के शरीर पर मौजूद है, इसलिए औषधि के रूप में यहां भगवान को चंदन का लेप लगाया जाता है.
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जानें उनके आश्चर्यजनक तथ्य
1.भगवान बालाजी के सिर पर रेशमी केश हैं, जिसमें गुत्थिया नहीं आती और वह हमेशा ताजा रहते है.
2.मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव है. जहां बाहरी व्यक्ति का प्रवेश मना है. वहां पर लोग नियम कायदे से रहते हैं. वहीं से लाए गए फूल, दूध, घी, माखन भगवान को चढ़ाए जाते हैं.
3.गर्भगृह के मध्य भाग में बाला जी खड़े दिखते हैं लेकिन, वे दाई और कोने में खड़े हैं. बाहर से देखने पर ऎसा लगता है.
4. गृभगृह में चढ़ाई गई किसी वस्तु को बाहर ना लाकर पीछे एक जलकुंड है. वहीं पीछे देखे बिना उनका विसर्जन किया जाता है.
5. बालाजी की पीठ को जितनी बार भी साफ करो, वहां गीलापन रहता ही है, वहां पर कान लगाने पर समुद्र घोष सुनाई देता है.
6. बालाजी के वक्षस्थल पर लक्ष्मीजी निवास करती हैं. प्रत्येक गुरुवार को भगवान बालाजी की चंदन से सजावट की जाती है और जब चंदन को निकाला जाता है तो वहां पर लक्ष्मीजी की छबि उतर आती है.
7. गर्भगृह मे जलने वाले दिपक कभी बुझते नही हैं, वे कितने ही हजार सालों से जल रहे हैं किसी को पता भी नही है.
आशा करते है कि तिरुपति बालाजी मंदिर कहां है और मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य पर हमारा यह लेख आपको पसंद आया होगा ऐसे ही लेख और न्यूज पढ़ने के लिए कृपया हमारा ट्विटर फॉलो करें.