चीनी निवेशकों की नज़र भारतीय बाजारों पर किन्तु भारत इतना भी भोला नहीं

भारत में चीन की मनमानी नहीं चलेगी!

चीनी भारत

चीन की डगमगाती अर्थव्यवस्था से परिचित चीनी निवेशक एक बड़े बाजार की तलाश में हैं और ऐसी स्थिति में उनका रुख भारतीय बाजारों की ओर है। इसी कर्म में कई चीनी निवेशकों ने भारत में निवेश की शुरुआत्त भी कर दी है। वहीं, भारत ने हाल ही के दिनों में चीनी निवेशकों पर जिस प्रकार की कार्रवाई की है, उससे चीन बौखला गया है, जिसके बाद दो चीनी समूहों को चिट्ठी लिखकर आग्रह करना पड़ा है कि हमारे साथ ऐसा मत करो। जैसे दुनिया के अन्य राष्ट्रों के लिए कानून है, वैसे हमारे लिए भी भारत में कानून हो। चाइनीज चैंबर ऑफ कॉमर्स इन इंडिया और इंडिया चाइना मोबाइल फोन एंटरप्राइज एसोसिएशन ने कहा कि “भारतीय अधिकारियों द्वारा अचानक निरीक्षण और जुर्माने के परिणामस्वरूप भारत में चीनी मोबाइल फोन कंपनियों को अब अभूतपूर्व कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है और भारतीय अधिकारियों द्वारा अचानक निरीक्षण और जुर्माना के परिणामस्वरूप कंपनियां सामान्य उत्पादन और संचालन करने में असमर्थ हैं।”

भारत आए चीनी निवेशकों पर IT विभाग की जांच

दरअसल, भारत में स्थित दो चीनी वाणिज्य मंडलों ने अपने ‘अनियमित’ कर जांच अभ्यास को बदलने और विदेशी निवेशकों के साथ समान व्यवहार करने का आग्रह किया है। वहीं, यह बयान तब आया है जब भारतीय कर अधिकारियों ने हाल ही में भारत में चीनी कंपनियों द्वारा संचालित बड़े पैमाने पर जांच करनी शुरू कर दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत ने एल्युमीनियम के कुछ फ्लैट रोल्ड उत्पाद सहित पांच चीनी उत्पादों पर भी पांच साल के लिए डंपिंग रोधी शुल्क लगाया है। वहीं, ग्लोबल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, “3 अरब डॉलर का निवेश करने और 500,000 स्थानीय नौकरियों का सृजन करने वाले एक व्यापारिक समूह का विश्वास हिल गया है। ये प्रथाएं निवेश प्रोत्साहन और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और व्यापार सहयोग पर भारत की पहल के अनुकूल नहीं हैं।”

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बता दें कि भारत ने चंद दिनों पहले ही कुछ चीनी कम्पनियों पर रोक लगाने का कार्य किया है। भारत में मौजूद चीनी कम्पनियों के तमाम परिसरों पर छापे मारे गए हैं। भारतीय कर अधिकारियों ने बीते शुक्रवार को कहा कि “दो चीनी मोबाइल कंपनियों से जुड़े 5,500 करोड़ रुपये आयकर विभाग की जांच के दायरे में हैं।”

IT विभाग की छापेमारी

बता दें कि IT विभाग ने बीते 21 दिसंबर को विदेशों में मुख्यालय वाली कुछ मोबाइल संचार और मोबाइल हैंडसेट निर्माण कंपनियों और उनसे जुड़े व्यक्तियों के संबंध में एक अखिल भारतीय खोज और जब्ती अभियान शुरू किया था। तलाशी के दौरान कर्नाटक, तमिलनाडु, असम, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान, दिल्ली और NCR राज्यों में विभिन्न परिसरों पर छापे मारे गए।

IT विभाग ने एक बयान में कहा,“खोज कार्रवाई से पता चला है कि दो प्रमुख कंपनियों ने विदेशों में स्थित अपने समूह की कंपनियों को और उनकी ओर से रॉयल्टी की प्रकृति में प्रेषण किया है, जो कुल मिलाकर 5,500 करोड़ रुपये से अधिक है। तलाशी कार्रवाई के दौरान जुटाए गए तथ्यों और सबूतों के आलोक में इस तरह के खर्चों का दावा उचित प्रतीत नहीं होता है।” साथ ही अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि तलाशी के दौरान उन्हें मोबाइल हैंडसेट के निर्माण के लिए कलपुर्जे खरीदने के कथित तौर-तरीकों के बारे में पता चला है।

भारत में चीन की मनमानी नहीं चलेगी

कर अधिकारियों के अनुसार, दोनों चीनी कंपनियों ने संबंधित उद्यमों के साथ लेनदेन के प्रकटीकरण के लिए आयकर अधिनियम, 1961 के तहत निर्धारित नियामक आदेश का अनुपालन नहीं किया था। इस तरह की चूक उन्हें आयकर अधिनियम, 1961 के तहत दंडात्मक कार्रवाई के लिए उत्तरदायी बनाती है, जिसका जुमार्ना 1,000 करोड़ रुपये से अधिक हो सकता है। आयकर विभाग ने आगे दावा किया कि उसने संबद्ध उद्यमों की ओर से खर्च और भुगतान की मुद्रास्फीति के संबंध में सबूत बरामद किए गए हैं, जिसके कारण एक भारतीय मोबाइल हैंडसेट निर्माण कंपनी के कर योग्य लाभ में कमी आई है। वहीं, यह राशि 1,400 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है।

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गौरतलब है कि TFI ने पहले ही बताया है कि लालफीताशाही से परेशान होकर निवेशक भारत आ रहे हैं और लगभग 72 लाख करोड़ रुपए का व्यापार भी कर चुके हैं। ऐसे लोगों के लिए भारत एक ‘सेफ लैंड’ है क्योंकि यहां पर चीन के स्तर का लगाम नहीं लगाया जा सकता है। भारत सब के साथ ऐसा नहीं कर रहा है। यह खास खातिरदारी चीनी कम्पनियों की ही हो रही है, जो व्यापार के नाम पर जगह चुनने के बाद अपने पैर विभिन्न क्षेत्रों में फैलाने लगते हैं। अतः चीन को समझाना होगा कि भारतीय संप्रभुता में उसकी मनमानी अब नहीं चलने वाली है।

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