मुख्य बिंदु
- वेदांता रिसोर्सेज (Vedanta Group) सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के अधिग्रहण के लिए 10 अरब डॉलर का कोष बना रही है
- भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के लिए मूल्य बोली के समय यह कोष शुरू किया जाएगा
- एक छोटे से धातु कबाड़ कारोबार को वेदांता रिसोर्सेज में बदलने का श्रेय जाता है
2014 के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था में कई ढांचागत बदलाव हुए हैं, जिनमें एक महत्वपूर्ण बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था का समाजवादी वातावरण से निकलकर पूंजीवादी वातावरण में प्रवेश करना है। मोदी सरकार एक के बाद एक सरकारी कंपनियों का विनिवेशीकरण कर रही है और निजी कंपनियों द्वारा इनका अधिग्रहण किया जा रहा है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर दूरगामी रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। इसी क्रम में वेदांता ग्रुप ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का अधिग्रहण करने के लिए व्यापक योजना बनाई है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वेदांता रिसोर्सेज (Vedanta Group) सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के अधिग्रहण के लिए 10 अरब डॉलर का कोष बना रही है।
वेदांता बना रही है 10 अरब डॉलर का फंड
दरअसल, वेदांता समूह के सर्वेसर्वा अनिल अग्रवाल ने कहा, “कंपनी के इस कोष में सॉवरेन संपदा कोषों ने काफी रुचि दिखाई है। कंपनी 10 अरब डॉलर का फंड बनाने की प्रक्रिया में है। कंपनी यह फंड अपने संसाधनों और बाहरी निवेश से बनाएगी। सभी लार्ज फंड हमसे जुड़ना चाहते हैं और पैसों की कोई समस्या नहीं होगी।” उन्होंने आगे कहा कि “यह फंड लगभग 10 साल को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है, जो सार्वजनिक कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी को खरीदेगा और उससे बाहर निकलने से पहले उनके लाभ में वृद्धि करेगा”‘
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कंपनी के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने कहा है कि सरकार जब भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) या शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI) के लिए मूल्य बोली लगाएगी, उस समय यह कोष शुरू किया जाएगा। धातु और खनन क्षेत्र के दिग्गज कारोबारी अनिल अग्रवाल ने BPCL और SCI में सरकार की 12 अरब डॉलर से अधिक मूल्य की हिस्सेदारी के अधिग्रहण में रुचि दिखाई है।
बता दें कि अनिल अग्रवाल को एक छोटे से धातु कबाड़ कारोबार को वेदांता रिसोर्सेज में बदलने का श्रेय जाता है। इससे पहले भी उन्होंने कई बार सरकारी कंपनियों में निवेश किया है और मुनाफा कमाया है। अनिल अग्रवाल ने 2001 में भारत एल्युमीनियम कंपनी (BALCO) का अधिग्रहण किया था। वहीं, उन्होंने 2002-03 में घाटे में चल रही हिंदुस्तान जिंक का अधिग्रहण किया था।
निजीकरण से दिखेंगे दूरगामी और सकारात्मक परिणाम
2014 के पूर्व जहां सरकारी कंपनियों में लेटलतीफी और भ्रष्टाचार की चर्चा होती थी वही अब निजी कंपनियों की कार्यकुशलता के कारण देश का तेजी से विकास हो रहा है। टेलीकॉम सेक्टर में हुआ व्यापक बदलाव इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। एक ओर 2014 के पहले इंटरनेट डाटा की कीमत आसमान छूती थी किंतु अब ना केवल इंटरनेट की गति तीव्र हुई है बल्कि इंटरनेट डाटा का दाम भी कम हुआ है।
वहीं, सरकारी कंपनियों का निजीकरण इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि भारत सरकार की योजना 2025 तक भारत में विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करने की है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गति शक्ति योजना शुरू की गई है, जिसके तहत ₹100 लाख करोड़ रुपये खर्च करके भारत सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर का सर्वांगीण विकास करेगी। इसके तहत बंदरगाहों, सड़कों, रेल मार्गों, एयरपोर्ट जैसे परंपरागत इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के साथ ही जियो सेटेलाइट, इंटरनेट कनेक्टिविटी आदि सभी आयामों पर कार्य होगा। इस मेगा प्रोजेक्ट में 16 मंत्रालय एक साथ कार्य कर रहे हैं।
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ऐसे में, भारत सरकार इतने बड़े प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए सरकारी कंपनियों और संपत्तियों की बिक्री करके फंड जुटा रही है। इस योजना से दोहरा लाभ है, एक ओर सरकार को फंड मिल रहा है, दूसरी ओर ढुलमुल रवैया से कार्य करने वाली सरकारी कंपनियों की कार्यक्षमता में वृद्धि हो रही है। लिहाजा, भारत एक आर्थिक महाशक्ति बनने हेतु अपने पथ पर अग्रसर है।