भारत-रूस द्वारा सह-निर्मित ब्रह्मोस दुनिया का सबसे बेहतरीन सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसका नाम भारत के ब्रह्मपुत्र और रूस के मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है। ध्वनि से करीब 3 गुना तेज उड़नेवाला यह मिसाइल ना सिर्फ दुनिया का सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है बल्कि अपने तेज गति के कारण यह रडार के पकड़ में भी नहीं आ पाता है। यह अमेरिका के हारपून से बेहतर है और चीन के पास डॉगफ़ेंग (DF)-31AG अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है, जो ब्रह्मोस से बेहतर नहीं है। अतः चीन के विस्तारवादी नीति से परेशान बहुत सारे देश दुनिया के इस सबसे तेज और अधिक मारक क्षमता से परिपूर्ण सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को खरीदने के लिए बेताब हैं।
भारत दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों को निर्यात करेगा ब्रह्मोस मिसाइल
इसी क्रम में फिलीपिंस, वियतनाम, इंडोनेशिया जैसे दक्षिण-पूर्व के देशों द्वारा ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को खरीदने में लगातार रुचि दिखाई जा रही है। नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार, फिलीपिंस जल्द ही ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों का अधिग्रहण कर सकता है क्योंकि इस देश ने तट-आधारित एंटी-शिप हथियार प्रणाली के अधिग्रहण के लिए धन आवंटित किया है। फिलीपिंस में भारत के राजदूत जयदीप मजूमदार ने कहा, “भारत और फिलीपिंस के बीच कई हथियार प्रणालियों पर चर्चा चल रही है। एक बार यात्रा संभव हो जाने के बाद, रक्षा रसद को देखने वाली संयुक्त समिति इन बातों पर चर्चा करने के लिए बैठक करेगी।” भारत ने रक्षा खरीद के लिए फिलीपिंस को 100 मिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट की पेशकश की थी लेकिन फिलीपिंस अपने स्वयं के धन से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल खरीदने के विकल्प पर विचार कर रहा है।
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ब्रह्मोस खरीद के लिए फिलीपिंस का बजट आवंटन
फिलीपिंस रक्षा मंत्रालय के निर्देश पर बजट प्रबंधन विभाग (DBM) ने 27 दिसंबर को फिलीपिंस नेवी के तट-आधारित एंटी-शिप मिसाइल सिस्टम के लिए 1.3 बिलियन पेसोस ( फिलीपिंस करेंसी) और 1.535 बिलियन पेसोस की लागत वाले दो विशेष आवंटन से जुड़े रिलीज ऑर्डर (SARO) जारी किए हैं। SARO फिलीपिंस के राष्ट्रीय रक्षा विभाग को सैन्य हार्डवेयर अनुबंधों को निष्पादित करने में सक्षम बनाता है। जनवरी 2022 में, मनीला (फिलीपिंस की राजधानी) और नई दिल्ली ने ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और अन्य भारतीय रक्षा प्रौद्योगिकी की संभावित खरीद के लिए एक ‘कार्यान्वयन समझौता’ किया था।
इस मिसाइल प्रणाली को तटीय रक्षा और जमीनी हमले जैसे दोनों भूमिकाओं के लिए उपयोग किया जा सकता है। यह विवादित दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में मुख्य रूप से चीनी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए फिलीपिंस की सैन्य क्षमता को मजबूत करेगा। वहीं, यह निर्णय फिलीपिंस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते द्वारा लिया गया है, जिनके पास अब शासन के केवल छह महीने ही बचे हैं।
चीन से अकेले मुकाबला करने में सक्षम है ब्रह्मोस
भारत-रूस की संयुक्त परियोजना ब्रह्मोस को दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल माना जाता है। 290 किलोमीटर की रेंज वाली मिसाइल को जमीन, हवा, समुद्र और पानी के अन्दर से भी दागा जा सकता है। इस साल की शुरुआत में, चीन ने एक कानून पारित किया था, जिसमें उसके तट रक्षक को थोड़ी सी भी उत्तेजना पर विदेशी युद्धपोतों पर गोली चलाने की अनुमति दी गई थी। वहीं, मनीला ने तब इस फैसले के खिलाफ औपचारिक राजनयिक विरोध दर्ज किया था। ब्रह्मोस का अधिग्रहण ‘समुद्री मिलिशिया’ कहे जाने वाले चीन के खिलाफ एक अभेद्य शस्त्र के रूप में कार्य कर सकता है।
फिलीपिंस के रक्षा अधिकारियों के अनुसार देश के राष्ट्रपति अपने अंतिम 6 महीने के कार्यकाल में इस रक्षा सौदे को पूरा करना चाहते थे पर, कोविड के कारण ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि, भारत ने 100 मिलियन डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट का प्रस्ताव रखा था किन्तु फिलीपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति आनेवाली सरकार पर कर्ज का बोझ नहीं डालना चाहते थे। वहीं, अब फिलीपिंस के पास फंड की कोई कमी नहीं है, अतः वह जल्द से जल्द इस सौदे को पूरा करना चाहता है।
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वियतनाम भी दिखा रहा है ब्रह्मोस मिसाइल में दिलचस्पी
दक्षिणी चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीति से परेशान वियतनाम भी फिलीपिंस, मलेशिया, इंडोनेशिया और ब्रुनेई जैसे पांच संघर्षरत देशों में से एक हैं। खबर है कि फिलीपिंस, संयुक्त अरब अमीरात, अर्जेंटीना, ब्राजील, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका के साथ-साथ वियतनाम भी इसी मिसाइल को खरीदने की होड़ में सबसे अग्रणी है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह संभवत: जनवरी के दूसरे सप्ताह में नई दिल्ली और हो चि मिन्ह सिटी के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की स्वर्ण जयंती मनाने के लिए वियतनाम जानेवाले हैं।
ऐसे में, रक्षा निर्यात, रक्षा उपकरणों के प्रशिक्षण और रखरखाव सहित संयुक्त सहयोग भारत के रक्षा मंत्री के तीन दिवसीय यात्रा का प्रमुख एजेंडा हो सकता है। भारत और वियतनाम ने वर्ष 2016 में अपने संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी (CSP) के स्तर तक पहुंचाया था और वियतनाम की नेशनल असेंबली के अध्यक्ष ने व्यापक रणनीतिक साझेदारी के पांच साल का जश्न मनाने के लिए दिसंबर, 2021 में भारत का दौरा भी किया था। ऊपर से वियतनाम को भारत ने नौसैनिक उपकरणों के लिए 100 मिलियन डॉलर का रक्षा ऋण भी दिया है।
इसके साथ- साथ भारत वियतनामी सैन्य कर्मियों को प्रशिक्षण दे रहा है और कुछ रक्षा उत्पादों के रखरखाव में भी उनकी मदद कर रहा है। भारत और वियतनाम दोनों रूस द्वारा निर्मित रक्षा उपकरण का उपयोग करते हैं, शायद इसीलिए वियतनाम भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल खरीदने में अत्यंत दिलचस्पी दिखा रहा है।
भारत एशिया का बड़ा रक्षा निर्यातक देश बनने के लिए है तैयार
ऐसे में, यदि ब्रह्मोस सौदा हो जाता है तो भारत दक्षिण एशिया में एक प्रमुख हथियार निर्यातक के रूप में पैर जमा लेगा। पिछले साल, भारत में रूसी दूतावास के ‘डिप्टी-चीफ ऑफ मिशन’ रोमन बाबुश्किन ने खुलासा किया कि भारत-रूसी संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस एयरोस्पेस को फिलीपिंस और वियतनाम के अलावा अन्य देशों को भी निर्यात करने की कोशिश कर रहा है। भारत ने 2025 तक पांच अरब डॉलर के रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है और ब्रह्मोस मिशन इसकी आधारशिला है। इस महीने की शुरुआत में, भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ में एक ब्रह्मोस मिसाइल उत्पादन इकाई का उद्घाटन किया। यह इकाई प्रति वर्ष 80 से 100 ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्माण करेगी, जिससे सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियानों को एक बढ़ावा मिलेगा।
हाइपरसोनिक हथियार बनाने की दौड़ में भारत है सबसे आगे
बता दें कि ब्रह्मोस एयरोस्पेस ने 2008 में ब्रह्मोस के हाइपरसोनिक संस्करण के विकास की घोषणा की थी, जो ध्वनि की गति से छह गुना तेज है। इसकी रेंज 600 किलोमीटर होने का अनुमान है पर, विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रह्मोस II रूस की जिरकॉन हाइपरसोनिक मिसाइल के समान है और यह ध्वनि गति से 9 गुना तेज है और इसकी रेंज 1000 किलोमीटर है। भारत में लगभग 12 परिचालन हाइपरसोनिक पवन सुरंगें हैं, जो ध्वनि गति से 13 गुना तेज उड़ सकती हैं।
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भारत बाकी महाशक्तियों के साथ-साथ हाइपरसोनिक हथियार बनाने की दौड़ में ना सिर्फ शामिल हो चुका है बल्कि उनसे कोसो आगे है। वर्ष 2020 में हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जिसे भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने विकसित किया है। ऐसे में, यह कहा जा सकता है कि इस कदम से भारत न केवल सैन्य शक्ति को मजबूत करेगा अपितु वह एशिया का बड़ा रक्षा निर्यातक देश भी बनेगा, जिसका शुभारंभ फिलीपिंस और वियतनाम से हो चुका है।