केशव महाराज द्वारा जय श्रीराम का उद्घोष – अपने राष्ट्र,धर्म, इतिहास और संस्कृति के प्रति गौरव की अनुभूति न होना ही वास्तविक मृत्यु का परिचायक है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यही चीजें आपके पहचान और अस्तित्व को परिलक्षित करती हैं। जैसे हम भारत के नागरिक हैं, यह हमारी प्रथम पहचान है। हम सभी गौरवशाली सनातन संस्कृति के संवाहक है, यह हमारी पहचान का दूसरा आयाम है। सांभाजी, शिवाजी राणा और महाराणा हमारे पुरखे और हम सभी उनकी संतान हैं, यही हमारे परिचय का दूसरा नाम है।
परंतु, हममें से अधिकतर लोगों ने स्वेच्छा से अपने इस वैभवशाली अस्तित्व का त्याग कर दिया है। पाश्चात्य आधुनिकता, तथाकथित धर्मनिरपेक्षता और विकृत विद्वता प्राप्त करने की अंधी दौड़ ने हमें हीनता के उस गर्त में ढकेल दिया है जहां जय श्रीराम का उद्घोष भी हमें लज्जा की अनुभूति कराता है। इसी हीन भावना से ग्रसित हो चुके हिंदू समाज के मध्य से अगर कोई व्यक्ति ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष कर दे तो वह हमारे लिए हीरो बन जाता है और हिंदू विरोधियों के लिए खलनायक।
ऐसे ही एक नायक के रूप में उभरे हैं साउथ अफ्रीकी क्रिकेट टीम के खिलाड़ी केशव महाराज। भारतीय टीम साउथ अफ्रीका के द्विपक्षीय दौरे पर है। दरअसल, टेस्ट के साथ-साथ एक दिवसीय श्रृंखला में भी भारत को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा। साउथ अफ्रीका को उसी के घर में हराने का स्वप्न अधूरा रह गया और अंततः साउथ अफ्रीका ने एकदिवसीय श्रृंखला भी 3-0 से अपने नाम की।
हाशिम अमला, एबी डी विलियर्स, फाफ डू प्लेसिस और डेल स्टेन जैसे दिग्गजों की अनुपस्थिति में भी भारत जैसी मजबूत टीम पर साउथ अफ्रीका की यह जीत किसी आश्चर्य से कम नहीं है और इस जीत के नायक रहे केशव महाराज। उन्होंने कई मैचों में ना सिर्फ तीन विकेट लिए बल्कि विराट कोहली को 2 बार आउट किया। भारत के पूर्व कप्तान कोहली को शून्य पर पवेलियन भेजने वाले पहले भी स्पिनर बने।
लेकिन, यह नायक चर्चा का केंद्र बिंदु तब बना जब केशव महाराज ने इंस्टाग्राम पर अपने विजय और गौरव को अभिव्यक्त करते हुए ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष किया।
केशव महाराज द्वारा किया गया ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष एक सुखद अनुभूति प्रदान करता है। सनातन संस्कृति के गौरव को बड़े शान से ओढ़े अफ्रीकी खिलाड़ी केशव महाराज के प्रति मन सम्मान से भर जाता है। एक ओर जहां विदेशी और दूसरे धर्म के खिलाड़ी अपने सांस्कृतिक प्रतीक चिन्हों को बड़े शान से ओढ़े नजर आते हैं तो वहीं दूसरी ओर विकृत बुद्धिजीवी बनने के चक्कर में हमारे भारतीय खिलाड़ी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता पर अपना अल्प ज्ञान देते नहीं थकते।
आपकी जानकारी के लिए बता दें की इसी अफ्रीकी टीम के दिग्गज खिलाड़ी हाशिम आमला अपने राष्ट्र के ऊपर अपने धर्म को प्रश्रय देते हुए अपनी जर्सी पर शराब कंपनी का लोगो लगाने से साफ मना कर देते हैं। भले ही फिर वो अफ्रीकी क्रिकेट बोर्ड को इसका हर्जाना भरते हैं, परंतु इन कठिनाइयों के बावजूद भी वह अपने मज़हब से टस से मस नहीं होते। हाल ही में संपन्न एशेज श्रृंखला के विजयोत्सव में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी उस्मान ख्वाजा तब तक सम्मिलित नहीं हुए जब तक शैंपेन की बारिश होती रही।
उनको भी इस विजयोत्सव का भागीदार बनाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई कप्तान पैट कमिंस ने अपने साथी खिलाड़ियों से शैंपेन की बारिश रोकने का विशेष आग्रह किया और ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के गौरवशाली क्षण के ऊपर पूरी टीम को उस्मान ख्वाजा की धार्मिक मान्यता को तवज्जो देनी ही पड़ी। दर्शकों को याद होगा 2021 विश्व कप के दौरान पाकिस्तान की भारत पर विजय से ज्यादा वहां के एक सम्मानित क्रिकेटर को ग्राउंड पर मैच के दौरान मोहम्मद रिजवान द्वारा नमाज पढ़ना ज्यादा गौरवशाली लगा।
एक ओर जहां विश्व के दूसरे खिलाड़ी अपने धर्म से लेश मात्र भी समझौता नहीं करते वही दूसरी ओर हमारे भारतीय खिलाड़ी सभ्यता, संस्कृति और सनातन के राजदूत बनने के बजाय धर्मनिरपेक्षता के मामले पर अपने ही देश को ज्ञान देते रहते हैं। भारत के परिदृश्य में आज ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष को दंगे और राजनीतिक नारों से जोड़ दिया गया है।
“जय श्रीराम” अर्थात् राम के आदर्शों की जीत हो!! यह मानवता के उत्कर्ष का उद्घोष है। फिर भी, पता नहीं क्यों इससे लोगों में रोष है, आक्रोश है। इससे ना तो औरों की “जय” अवरुद्ध है, ना ही कोई अवरोध है। बल्कि, यह उद्बोध तो, समावेशी है, शुद्ध है। लेकिन हमारे देश में ‘जय श्रीराम’ का उच्चारण आपको एक विशेष राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में परिचित कर सकता है। लोग यह भूल चुके हैं की मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र भारत के राष्ट्र पुरुष हैं। राम भारतीय व्यक्तित्व के एकमात्र संविधान और भारतीय संविधान के मूलभूत विधान है। वह धर्म की धुरी, सभ्यता के शिखर और संस्कृति के शुचिता के प्रतीक हैं। ना जाने कितने विदेशी खिलाड़ियों को भी इस राम उद्घोष के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा जिसमें दानिश कनेरिया महत्वपूर्ण है।
‘ब्लैक लिव्स मैटर’ पर घुटने टेकने वाले, पाक जनित शमी के ट्रोलिंग पर भारतीय धर्मनिरपेक्षता को कोसने वाले, दिवाली पर पर्यावरण संबंधी ज्ञान देने वाले अक्सर हिंदू अभिमान और सांस्कृतिक अपमान के मसले पर मौन साध लेते हैं। उन्हें हमेशा यह भय सताता रहता है कि इस मसले पर उनकी अभिव्यक्ति कहीं उन्हें सांप्रदायिक श्रेणी में न खड़ा कर दे। ऐसे में केशव महाराज द्वारा जय श्रीराम का उद्घोष ना सिर्फ भारतीय टीम बल्कि भारत के बुद्धिजीवियों के लिए भी एक सबक है और हीन भावना से ग्रसित हिंदुओं को झकझोरता है, यह मानने के लिए की राम आज भी उनके अस्तित्व और संस्कृति के आधार हैं।