केजरीवाल को अपनी तुलना भगत सिंह से करने से पहले पचास बार सोचना चाहिए!

अपने गंदे मुंह से भगत सिंह को मत बेचो अवसरवादी केजरीवाल!

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भारत में इस समय चुनावी माहौल है और चुनाव पास आते-आते नेता स्वयं को किसी न किसी का चेला और शिष्य बताना शुरू कर दिए हैं पर इस बार अरविंद केजरीवाल ने जिनके साथ स्वयं की तुलना की है और जिनका नाम उछाला है वह बेहद निंदनीय है क्योंकि स्वतंत्रता सेनानियों का स्थान लेना या स्वयं को उनकी प्रतिमूर्ति बताना बेहद शर्मनाक है। आम आदमी पार्टी (AAP) के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने स्वयं को वो भगत सिंह का शिष्य बता दिया और अपनी और शहीद भगत सिंह की तुलना एक तराज़ू पर रखकर करने लगे।

दरअसल, अलगाववादियों के साथ निकटता के कुमार विश्वास के दावों के बाद आलोचनाओं के घेरे में आए दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को कहा कि स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को भी आतंकवादी कहा जाता था। यह टिप्पणी किसी भी भारतीय को ठेस पहुँचाने वाली ही लगी क्योंकि भगत सिंह स्वतंत्रता के लिए फाँसी पर चढ़ गए थे जबकि अरविंद केजरीवाल जैसे नेता अवसरवादिता के अलावा कुछ नहीं कर सकते  हैं।

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पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी द्वारा केजरीवाल के खिलाफ जांच की मांग करने के लिए पीएम मोदी से अपील करने के बाद, दिल्ली के सीएम ने कहा कि उन्हें दुनिया का सबसे प्यारा आतंकवादी होना चाहिए जो लोगों के लिए स्कूल और अस्पताल बनाना चाहता है। एक ओर केजरीवाल स्वयं को भगत सिंह जैसा बताने का दुस्साहस करते हैं तो वहीं स्वयं को “स्वीट आतंकवादी” भी कहते नहीं थक रहे हैं। आतंकी के आगे स्वीट लगा लेने से आतंकी का अर्थ परिवर्तित नहीं हो जाता, ऐसे में केजरीवाल का बड़बोलापन उनपर लौटकर बम के गोले की भाँति प्रहार करता नज़र आ रहा है क्योंकि किसी को भी यह तुलना बेहूदी ही लग रही है।

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स्वयं को सभी राजनीतिज्ञों से अलग दिखाने के चक्कर में इस बार केजरीवाल ने अपनी भद्द पिटवा ली है, पहले तो उनके पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भगवंत मान ही राज्य में हंसी का पात्र बनते दिखाई पड़ते थे, इस बार यह तमगा उन्होंने अपने सिर लिया है।

राजनीतिक विरोधियों ने इस मामले को हलके में न आंकते हुए अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की विश्वसनीयता और परिपक्वता पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं जिससे बचाव करना फ़िलहाल केजरीवाल के हाथ में नहीं है क्योंकि चुनाव सर पर हैं। सच तो यह है कि अरविन्द केजरीवाल राजनीति बदलने के नारे के साथ आए थे पर सत्ता की चकाचौंध और आपक ने उन्हें सिरफिरा बना दिया है।

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