उत्तराखंड कांग्रेस में मची उथल-पुथल से राजनीतिक गलियारों में एक सवाल उत्पन्न हो रहा है कि क्या हरीश रावत भाजपा में शामिल हो सकते हैं? इसको लेकर संभावनाएं जताई जा रही हैं। दरअसल, इस सवाल के जवाब को दो तरीकों से समझा जा सकता है। पहला यह कि हरीश रावत की महत्वकांक्षा एक ओर है और दूसरी ओर कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व है। उत्तराखंड में कांग्रेस का एक रिकॉर्ड रहा है। कांग्रेस के नेताओं ने कई बार पार्टी छोड़ी है। चाहे वो विजय बहुगुणा, एनडी तिवारी, रीता बहुगुणा जोशी हो या फिर हरक सिंह रावत सब ने कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ दिया है।
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कांग्रेस ने किया हरीश रावत को नजरअंदाज
कांग्रेस के भीतर उत्तराखंड में दो गुट हैं। एक गुट वह है, जो देवेंद्र यादव का समर्थन करता है और गुट दूसरा हरीश रावत का समर्थन है। उत्तराखंड में समस्या यह है कि दोनों गुट अपना अपना मुख्यमंत्री चाहते हैं और शायद इसीलिए उत्तराखंड में अभी तक मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार साफ नहीं किया गया है। इस गुटबाजी को हरक सिंह रावत के उदाहरण से समझते हैं। हाल ही में आपने एक खबर सुनी होगी कि उत्तराखंड में भाजपा से निष्कासित नेताओं को कांग्रेस में शामिल किया गया है।
पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की वापसी को लेकर पार्टी के उत्तराखंड नेतृत्व में स्पष्ट विभाजन है। हरक सिंह रावत ने माफी मांगी और इसीलिए मांगी क्योंकि जब हरीश रावत की सरकार थी तब सरकार गिराने का काम हरक सिंह ने किया था। जहां हरक सिंह रावत ने अपने 2016 के दलबदल के लिए माफी मांगी है, वहीं कांग्रेस के चुनाव अभियान प्रमुख और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और उनके समर्थकों ने पार्टी में उनके फिर से प्रवेश का कड़ा विरोध किया है। इस फैसले से हरीश रावत एकदम साफ खफा थे। हरीश रावत ने दिप्रिंट को बताया कि, “मेरा उनसे (हरक सिंह) कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है, लेकिन 2016 में उन्होंने अन्य दलबदलुओं के साथ जो किया वह कांग्रेस विरोधी, लोकतंत्र विरोधी और देश और राज्य की संसदीय परंपराओं के खिलाफ था।”
वर्ष 2016 में कई नेताओं का कांग्रेस पर फूटा था गुस्सा
उन्होंने आगे कहा, “हरक सिंह और पार्टी के अन्य विधायकों ने दलबदल किया और भाजपा की मदद से कांग्रेस सरकार को गिराने की कोशिश की। यह उत्तराखंड की जनता के साथ विश्वासघात था। उन्होंने कांग्रेस को धोखा दिया। पार्टी आलाकमान को उन पर कोई भी फैसला लेने से पहले इस बात को ध्यान में रखना होगा।” बता दें कि मार्च 2016 में, उत्तराखंड के पूर्व सीएम विजय बहुगुणा ने हरक सिंह सहित आठ अन्य विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया था और तत्कालीन हरीश रावत सरकार को अल्पमत में छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। इसके बाद केंद्र द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। वहीं, इस फैसले के पीछे देवेंद्र यादव की लॉबी का हाथ बताया गया।
दिप्रिंट से बात करते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के राज्य प्रभारी देवेंद्र यादव ने कहा, “हरक सिंह रावत ने हमसे संपर्क किया है और पार्टी में उनके शामिल होने पर AICC नेतृत्व के साथ बातचीत जारी है। हालांकि, हरीश रावत इस विचार के खिलाफ हैं, लेकिन हम अगले 24 घंटों में इस मुद्दे को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। वह पहले भी पार्टी के साथ रहे हैं। उन्होंने आगे भी कहा, “अंतिम निर्णय कांग्रेस अध्यक्ष पर निर्भर करता है, चाहे हम कुछ भी कहें।”
वर्ष 2017 में कई नेताओं ने कांग्रेस छोड़ थामा भाजपा का दामन
पार्टी सूत्रों ने उस समय बताया था कि अगर हरक सिंह को कांग्रेस में वापस लाया गया, तो भी उन्हें 14 फरवरी को होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में लड़ने का मौका नहीं मिलेगा। यह एक प्रकार का दोनों गुटों में समझौता होगा। अब हरीश रावत का गुस्सा भी जायज है। पार्टी छोड़ने वाले कांग्रेस के 12 नेता राज्य में भाजपा उम्मीदवारों के रूप में पिछला विधानसभा चुनाव लड़कर भारतीय जनता पार्टी को भारी जीत दिलाने में मदद की है।
2017 विधानसभा चुनाव में विजय बहुगुणा के पुत्र सौरव बहुगुणा को भाजपा ने उनके पिता के सितारगंज निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा था, जहां से उन्होंने 28,450 मतों से जीत हासिल की थी। कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन, सुबोध उनियाल, हरक सिंह रावत, प्रदीप बत्रा, उमेश शर्मा और रेखा आर्य सभी ने अपनी-अपनी सीटों से जीत हासिल की और राज्य में भाजपा की सीटों को बढ़ाने में अहम योगदान दिया। वहीं, कांग्रेस के दिग्गज और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा 2017 के चुनावी पहाड़ी राज्य में भगवा संगठन को अपना समर्थन दिया था। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ अपनी नापसंदगी के लिए जाने जाने वाले 91 वर्षीय तिवारी ने अपने बेटे रोहित शेखर तिवारी के साथ राष्ट्रीय राजधानी में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से उनके आवास पर मुलाकात कर कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ दिया था।
भाजपा का दामन थाम सकते हैं हरीश रावत
वहीं, रीता बहुगुणा जोशी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा इलाहाबाद में उनके पिता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को श्रद्धांजलि देने के एक महीने से भी कम समय के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी। जिससे एक प्रमुख यूपी ब्राह्मण परिवार के साथ सदियों पुराने जुड़ाव का भी अंत हो गया था। रीता बहुगुणा जोशी राज्य में कांग्रेस की प्रसिद्ध नेताओं में से एक थीं। जोशी 2007-12 के बीच यूपी कांग्रेस प्रमुख, 2007 में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस प्रमुख, पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता और कांग्रेस के शासन काल में लखनऊ छावनी से विधायक थी और फिर भी उन्होंने पार्टी को छोड़ दिया था। वहीं, अब एनडी तिवारी भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं किंतु हरीश रावत अभी भी नाराज हैं।
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ऐसे में, अब हरीश रावत की पार्टी से नाराज़गी स्पष्ट करती है कि उनके पार्टी छोड़ने की सम्भावनाएं भी अधिक हैं क्योंकि एक लंबे समय से कांग्रेस पार्टी ने इन्हें झूठा दिलासा दिया है। अगर देखा जाये तो उन्होंने एनडी तिवारी के सामने आपने महत्वकांक्षा को किनारे रख दिया। विजय बहुगुणा के सामने भी उन्होंने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वकांक्षा को किनारे रख दिया है। वहीं, यह उनका आखिरी चुनाव है। अभी जो वर्तमान स्थिति है, उसके आधार पर भाजपा कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी समेत मामला त्रिशंकु सरकार बनने का है। ऐसे में, हरीश रावत भाजपा के साथ आ सकते हैं और अपना मुख्यमंत्री पद भी सुनिश्चित कर सकते हैं।