सर मुंडवाते ही ओले पड़ना एक बहुत प्रचलित कहावत है, जिसका तात्पर्य है कि काम शूरू करते ही बाधाएं आना। मौजूदा समय में यह कहावत शत प्रतिशत कांग्रेस पार्टी के नेताओं और आलाकमान पर सटीक बैठ रही है। उत्तर प्रदेश चुनाव का तीसरा चरण हाल ही में पूर्ण हुआ, इस बार कांग्रेस अकेले ही चुनाव लड़ रही है। उसका पूरा नेतृत्व “लड़की हूँ लड़ सकती हूँ” के बैनर के तले पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा कर रही हैं। तीन चरणों के चुनाव के बाद अब ऐसा प्रतीत होने लगा है कि वर्ष 2017 में 7 सीटें जीतने वाली देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी इस चुनाव में 0 पर सिमट जाएगी।
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कांग्रेस का शिखर से शून्य का अंतिम सफर
यूं तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में दो दशकों से अधिक समय से हावी रही समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को झटका देते हुए भाजपा 2017 में चुनाव जीत गई थी और इन सभी राजनीतिक दलों को मुंह की खानी पड़ी थी। कांग्रेस का बंटाधार तो “यूपी के दो लौंडों” वाली थ्योरी ने स्वयं कर दिया था और उसे स्वतंत्रता के बाद पहली बार इतनी कम 7 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। ऐसे में 2017 में 105 सीटों में 10 सीटें भी नहीं जीत पाने वाली कांग्रेस पार्टी अबकी बार राज्य की सभी 403 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और चुनाव लड़ रही है, इस बार उसका शून्य से शिखर नहीं, शिखर से शून्य का अंतिम सफर पार्टी आलाकमान ने स्वयं ही सुनिश्चित कर दिया है। बता दें कि इस बार कांग्रेस ने महिला वोटरों को अपने पाले में करने हेतु 40 प्रतिशत सीटों पर महिला प्रत्यशियों का चयन करते हुए 160 महिला उम्मीदवारों के साथ लड़की हूँ लड़ सकती हूँ का नारा बुलंद किया हुआ है।
ध्यान देने वाली बात है कि यूपी चुनाव में कांग्रेस ने रणनीतिगत तौर पर राहुल गांधी को पीछे रख प्रियंका गाँधी वाड्रा को चुनाव का नेतृत्व देने का मन बनाया है, पर यह कितना फायदेमंद और कितना नुकसानदेह सिद्ध होता है, वो 10 मार्च को आने वाले निर्णय से पता चल जायेगा। कांग्रेस ने वादा किया है कि वह लड़कियों को स्मार्टफोन और स्कूटी प्रदान करेगी, महिलाओं के लिए 40 प्रतिशत नए सरकारी पद आरक्षित करेगी, 50 प्रतिशत महिलाओं को रोजगार देने वाले व्यवसायों के लिए कर छूट, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए 10,000 रुपये मानदेय, महिला योद्धाओं के नाम पर 75 कौशल स्कूल, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, अन्य कल्याणकारी उपायों के बीच तीन मुफ्त एलपीजी सिलेंडर भी प्रदान करेगी।
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अमेठी के बाद अब कांग्रेस के हाथ से रायबरेली भी जाएगी
वर्तमान परिदृश्य की बात की जाए तो वर्ष 2017 में जिन 7 सीटों पर कांग्रेस ने खाता खोल अपनी बची खुची इज़्ज़त खोई थी, आज उनमें से आधे विधायक अन्य दलों में जा चुके है। पहले ही कांग्रेस का आंकड़ा दयनीय था और उनके 3 जीते हुए विधायकों ने दूसरी पार्टियों का दामन थाम कांग्रेस को कहीं नहीं छोड़ा। बता दें कि सहारनपुर के विधायक मसूद अख्तर ने सपा, रायबरेली ज़िले के हरचंदपुर के विधायक राकेश सिंह और रायबरेली से ही एक विधायक कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे औऱ राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले अखिलेश कुमार सिंह की पुत्री अदिति सिंह ने भाजपा ज्वाइन कर ली थी। जहां कांग्रेस को अपनी साख बचाने की चिंता थी, वहां इस कदर विधायकों का टूटकर जाना उसके लिए विस्फोटक स्थिति से कम नहीं था। अमेठी तो पहले ही कांग्रेस के हाथ से जा चुकी है और रायबरेली के कद्दावर कांग्रेसी नेताओं का भाजपा में जाना एवं साथ ही रायबरेली में जम रहा भाजपा का वर्चस्व यह साबित करता है कि आगामी लोकसभा में कांग्रेस के हाथ से रायबरेली भी जाएगी।
कांग्रेस को कोई वोट भी देना नहीं चाहता!
आपको बता दें कि यूपी विधानसभा चुनावों में जातिगत समीकरणों का एक बड़ा किरदार होता है, जो जीत-हार को प्रभावित करता है। एक बार फिर, जातिगत समीकरण काफी स्पष्ट होते नज़र आ रहे हैं। ओबीसी, दलित या स्वर्ण समुदाय हो, कोई भी कांग्रेस को वोट नहीं दे रहा है। एक समय था, जब सवर्ण समुदाय कांग्रेस को वोट देते थे, लेकिन अब ये वोट बीजेपी को जा रहे हैं। दूसरी ओर ओबीसी वोटों का भी स्पष्ट बंटवारा है। यादव वोटर्स सपा के साथ, तो गैर-यादव ओबीसी वोट भाजपा के पक्ष में ही जाने वाले हैं। ध्यान देने वाली बात है कि हाल फ़िलहाल में OBC वर्ग के लिए राज्य और केन्द्र सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए थे, जिसका सीधा फायदा भाजपा को होता दिख रहा है।
ध्यान देने वाली बात है कि जाटव दलितों के बीच बसपा का अच्छा जनाधार है, जबकि गैर-जाटव दलितों के बीच भाजपा लोकप्रिय है। तो अंत में आप एक ऐसे मोड़ पर रह जाते हैं, जहां लगता है कि कांग्रेस को यूपी के मतदाताओं के किसी भी हिस्से से ज्यादा समर्थन नहीं मिल रहा है। और यही कांग्रेस के राजनीतिक पतन की नींव रखेगा, जिसका रास्ता अब यूपी से होकर जाने वाला है। यह बड़ी हतप्रभ करने वाली बात है कि जिस राज्य से कांग्रेस के सर्वाधिक मुख्यमंत्री निकले हो, केंद्र के सबसे बड़े मंत्रालय जिस कांग्रेस नेता के हाथ में रहे हो, जिस राज्य ने सर्वाधिक प्रधानमंत्री कांग्रेस को दिए हों, जो राज्य कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, आज वहां राज्य की जनता कांग्रेस को शून्य देने का मन बना चुकी है। निस्संदेह इसके बाद अब कांग्रेस पार्टी राज्य में अपनी मौजूदगी स्थापित करने के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है!
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