हिजाब को लेकर देश में भारी विवाद चल रहा है। हिजाब को लेकर मुस्लिम समाज में व्याप्त भ्रांति आग में घी का काम कर रही है। इसे लेकर स्वयं समाज में विरोधाभास की स्थिति है, खासकर मुस्लिम समाज काफी भ्रम में दिख रहा है। मुस्लिम समुदाय के नेता इस भ्रम को बढ़ाने की कोशिशों में लगे हुए हैं और इसे लेकर तरह-तरह के विचित्र तर्क दिए जा रहे हैं। इस आर्टिकल में हम विस्तार से समझेंगे कि कैसे मुस्लिम समुदाय के नेता अपने अजीबो गरीब और दिग्भ्रमित करने वाले वक्तव्यों से अपने समुदाय के लोगों को भ्रमित कर रहे हैं।
अभी हाल ही में कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुई, जिसमें एक दोस्त अपने दूसरे दोस्त को wrapper उतार कर ice-cream खाने को देता है, जिसपर उसका दोस्त यह कहते हुए ice-cream खाने से मना कर देता है कि वो wrapper उतरी हुई ice-cream कैसे खा सकता है? इस उदाहरण को संदर्भित करते हुए ice-cream देने वाला दोस्त समझाता है कि जब तू wrapper उतरी हुई ice-cream को शुद्ध नहीं मानता, तो बिना हिजाब के लड़की को शुद्ध कैसे मान सकता है।
यह वीडियो न सिर्फ आपके सिर को शर्म से झुका देगी, बल्कि यह समाज के दिन-प्रतिदिन गिरती हुई नैतिकता का भी प्रतीक है। वीडियो बनाने वालों और उसका समर्थन करने वालों को हम यह समझना चाहेंगे कि औरत कोई ice-cream जैसी खाने और उपभोग की वस्तु नहीं है। दूसरी बात, अगर ऐसे लोगों को लगता है कि हिजाब wrapper के समतुल्य चीज़ है, तो यह वैसे भी इस्लाम का अभिन्न अंग कैसे हुआ यह समझ से परे है?
और पढ़ें: एक हिजाबी महिला को भारत की प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख रहे हैं ओवैसी
कांग्रेस नेता का बेतुका बयान
अब दूसरा वक्तव्य देखिए, कर्नाटक में चामराजपेट निर्वाचन क्षेत्र के कांग्रेस विधायक ज़मीर अहमद खान भी हिजाब को लेकर फालतू के बयान दे रहे हैं। उन्होंने दावा किया है कि यह पर्दा महिलाओं की सुंदरता को संभावित बलात्कारियों से बचाने के लिए है। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनके घर में बहू- बेटियाँ नहीं हैं, अगर होती तो वे इसका विरोध नहीं करते। हिजाब का मकसद बड़े होने के बाद लड़कियों के पर्दे के नीचे रखना है, क्योंकि उनकी खूबसूरती दिखनी नहीं चाहिए। उसके बाद कांग्रेस विधायक ने भारत को कोसते हुए कहा, जैसा कि आपने देखा होगा, भारत में रेप की दर शायद दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसका कारण यह है कि महिलाओं को पर्दे के नीचे नहीं रखा जाता है।
ऐसे में हम आपको बता दें कि ज़मीर अहमद खान जैसे लोग अपने राजनीतिक फायदे के लिए बेतुका बयानबाजी तो कर देते हैं, पर यह नहीं सोचते कि अगर समाज में बलात्कारी घूम रहे हैं, तो उन्हें पर्दे में रखने या कैद करने की जरूरत है न कि महिलाओं को दोष देने या कैद में रखने की।
आरिफ मोहम्मद की टिप्पणी
जहां तक सवाल है हिजाब के इस्लाम का अभिन्न अंग बताने की, तो हम अपने दर्शकों को स्पष्ट कर दें कि अभी कुछ ही दिनों पहले इसपर आरिफ़ मोहम्मद खान नें अपनी बेबाक राय रखी थी। उन्होंने हिजाब को इस्लाम का अभिन्न अंग मानने से इंकार कर दिया था। खान ने कहा था कि यह पूरा विवाद सोची समझी साजिश है, ताकि मुस्लिम महिलाओं को चारदीवारी में कैद किया जा सके। वह लड़कों से बेहतर कर रही हैं। उन्होंने कहा कि हिजाब, इस्लाम का आवश्यक हिस्सा नहीं है।
न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में राज्यपाल ने कहा था कि सिख धर्म में पगड़ी को धर्म के लिए जरूरी माना गया है। दूसरी ओर महिलाओं की पोशाक को लेकर, कुरान में हिजाब का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। आरिफ मोहम्मद खान ( Arif Mohammad Khan ) ने कहा, ‘कुरान में हिजाब का सात बार जिक्र है, लेकिन इसका महिलाओं के ड्रेस कोड से कोई कनेक्शन नहीं है। केरल के गवर्नर ने छात्रों से अपील की है कि वे क्लासरूम में लौट जाएं और पढ़ाई शुरू करें।
और पढ़ें: कर्नाटक में BJP और हिजाब बैन का समर्थन करने पर हिंदू व्यापारी को चाकू से गोदा
कुरान का अभिन्न अंग नहीं है हिजाब
गौरतलब है कि हिजाब इस्लाम और कुरान का अभिन्न अंग नहीं है। हिजाब को धार्मिक स्वतन्त्रता से जोड़ने वालों को बता दें कि किसी को भी अपनी इच्छानुसार किसी भी प्रकार के परिधान को धारण करने की स्वायत्तता होनी चाहिए, परंतु स्थान, समय और परिस्थिति के अनुसार। अब यह वाक्य पूर्ण हुआ, क्योंकि अब इसमें अधिकार के साथ सीमा सन्निहित हो गयी। अब अधिकार निरंकुश और अराजक नहीं हैं। हम आपसे पूछते हैं कि क्या मस्जिद में अंगवस्त्र पहन के जा सकते हैं? क्या किसी के मृत्यु शोक सभा में अंगवस्त्र पहन के जाना उचित है? कदापि नहीं है! द्वितीय बात विद्यालय धर्म के प्रचार, प्रसार का स्थान नहीं हैं। रही बात जनेऊ और शिखा की, तो वो विद्यालयी परिधान के अंतर्गत नहीं आता। शब्दों के भेद को समझना सीखिये। जैसा देश वैसा भेष।
विद्यालय एक लोक संस्था है और वहां क्या पहन कर आना है, यह संस्था निर्धारित करेगा न कि आपका धर्म। ऊपर से जिस प्रकार केश, कृपाण, कडा आदि सिखों के धार्मिक आधार हैं, उसी तरह ज़कात, हज आदि मुसलमानों के। इसमें हिजाब कहीं भी इसका अभिन्न अंग नहीं है। फिर भी इस प्रकार अपने धर्म के अभिन्न अंग के रूप में प्रतिपादित कर संस्था के नियमों की अवहेलना और अवज्ञा करना आपके अहंकार और धर्मांधता का सूचक है। जो लड़कियां इस पहनावे का सतत अभ्यास करती हैं, उनके लिए यह अनिवार्य है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नारा लगाने वाली लड़की स्वयं घर पर या बाहर जानेपर बुर्का, हिजाब या फिर किसी प्रकार का पर्दा नहीं करती। सोशल मीडिया पर उनकी कई ऐसी तस्वीरें वायरल हुई है। इससे यह सिद्ध होता है कि वो सिर्फ इससे अपना धार्मिक अहंकार और वर्चस्व सिद्ध करना चाहती है और घूँघट प्रथा के विरोध में ऐसे लोगों का मुखर होना और हिजाब को स्वतन्त्रता का प्रतिबिंब मानना उनके मसकित दोगलेपन का प्रतीक नहीं तो और क्या है? क्या देश के अन्य संस्थान घूँघट वाली लड़कियों को घूँघट में कक्षा उपस्थिति की अनुमति देंगे और अगर देंगे तो क्या यह उचित है? आज हिजाब, कल नामाज और फिर ढकोसले अधिकार की आवाज़ हर वर्ग से उठेगी!
और पढ़ें: हिजाब विवाद: क्यों आपको अपने आदर्शों को बुद्धिमानी से चुनने की आवश्यकता है