अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के बीच की कुछ समानताएं साबित करती हैं कि क्रिकेट अब ‘जेंटलमैन गेम‘ होने के बजाय समय के साथ एक Woke Game में परिवर्तित हो गया है। कभी जेंटलमेन का खेल कहा जाने वाला क्रिकेट अब गुंडागर्दी के खेल में बदल गया है, जिसमें राजनीतिक बेपरवाह प्रशासक और उपद्रवी क्रिकेटरों ने कब्जा कर लिया हैं! इससे साबित होता है कि अगर कोई खेल अपने दिग्गजों का सम्मान नहीं कर सकता है, तो निश्चित रूप से उसे खुद को ‘जेंटलमैन गेम’ कहने का कोई अधिकार नहीं है। ध्यान देने वाली बात है कि यह खेल एका-एक वोक गेम के रुप में परिवर्तित नहीं हुआ, इसके पीछे कई बड़े कारण है, जिस पर ध्यान देना अति आवश्यक है!
टेस्ट क्रिकेट ने दिलाया ‘जेंटलमैन’ का दर्जा
एक साधारण उदाहरण जेंटलमैन गेम को चित्रित करने में मदद कर सकता है। जब टेस्ट क्रिकेट, क्रिकेट का एकमात्र सच्चा प्रारूप हुआ करता था, तब खिलाड़ियों, बल्लेबाजों और गेंदबाजों को समय की पाबंदी और धैर्य की आदत डालनी पड़ती थी। एक दूसरे के साथ अधिक से अधिक वक्त बिताना पड़ता था। इसे ऐसे समझिए कि 6 एकदिवसीय मैच की एक सीरीज से किसी खिलाड़ी को बाहर किया जाता है, तो वो सिर्फ एक सीरीज से बाहर होगा, लेकिन 6 टेस्ट मैच का प्रतिबंध उसे 5-6 महीने क्रिकेट से दूर रख सकता है।
इस प्रकार टेस्ट क्रिकेट में साधन संपन्नता की आदत विकसित हो गई। इसने सच्चे सज्जन खिलाड़ियों का निर्माण किया, जो अंपायर की गलती का फायदा उठाते हुए पिच पर रुके रहने के बजाए पवेलियन की ओर जाना पसंद करते थे, जैसे- एडम गिलक्रिस्ट और सचिन तेंदुलकर, लेकिन कालांतर में हमें इसी सज्जनता के कमी के कारण DRS जैसा नियम लाना पड़ा।
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खेल के छोटे प्रारूप का आगमन
इसके बाद धीरे-धीर क्रिकेट में वनडे आया और जेंटलमैन गेम का संतुलन थोड़ा टेढ़ा हुआ। हालांकि, यह अभी भी खिलाड़ियों के लिए खेल का सम्मान करने के लिए एक अच्छा प्रारूप बना हुआ है। लेकिन टी20 और खेल के अन्य छोटे प्रारूपों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है।मौजूदा समय में गेंदबाज लाइन में गेंदबाजी करने के बजाय विकेट की तलाश में नेगेटिव लाइन गेंदबाजी करना पसंद करते हैं। रन बनाए रखना सबसे बेशकीमती है और इसमें अधीरता की परीक्षा होती है। लेकिन फ्रेंचाइज़ी क्रिकेट में कैमियो प्रदर्शन वाले खिलाड़ियों को पुरस्कृत किया जाता है। इस कारण एक बार जब कोई क्रिकेटर खेल को हल्के में लेता है, खुद को खेल से बड़ा समझता है, सीनियर्स की इज्जत नहीं करता है, उसे नियम कायदे की परवाह नहीं होती, तो उनकी सज्जनता वही पर खत्म हो जाती है।
हार्दिक पांड्या, विजय शंकर जैसे खिलाड़ी इस द्विभाजन का आदर्श उदाहरण हैं! पांड्या भले ही गुणवत्ता के कारण आए थे, लेकिन पैसा और प्रसिद्धि उन्हें जल्दी ही मिल गई। पांड्या को क्रिकेटिंग फैक्ट्री की भट्टी में नहीं ढाला गया था। ‘Coffee with karan’ में जाकर उन्होंने जो कांड किया, उसे तो सज्जनता का उदाहरण कदापि नहीं कहा जा सकता। खेल से इतर लगभग सभी मामलों पर इन क्रिकेटरों के ध्यान का परिणाम ही है कि भारत पिछले 7-8 वर्षों में आईसीसी ट्रॉफी नहीं जीत पाया है। ध्यान देने वाली बात है कि क्रिकेट अब कुछ लोगों के हाथों में सिमट गया है और अपना आकर्षण खो चुका है। कुछ क्रिकेट बोर्ड की संपूर्ण शक्ति शीर्ष पर बैठे कुछ चुनिंदा लोगो के हाथों में निहित है।
ड्रेसिंग रुम की राजनीति
वहीं, दूसरी ओर देश की राजनीतिक पार्टियों द्वारा बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों का सैद्धांतिक और नैतिक अपहरण कर लिया जाता है, जो केवल कॉरपोरेट्स के पैसे की आवाज़ सुनते हैं। खिलाड़ी भी नरम हो जाते हैं और पैसों के लिए ड्रेसिंग रूम राजनीति करते हैं। आपने देखा होगा कि खिलाड़ी पहले से कहीं ज्यादा अमीर हैं और परिणामस्वरूप, उनके नखरे भी बढ़ गए हैं। एक छोटी सी असुविधा पर वे बैकरूम स्टाफ के लिए दुविधा पैदा कर देते है।
टीम के कोच को कठोर माना जाता है। कोई भी खिलाड़ी नरम रहकर और कोच द्वारा मौलीकोडेड होने से कभी महान नहीं बना। हालांकि, वर्तमान पीढ़ी इसे अन्यथा मानती है। भारत के पूर्व कप्तान विराट कोहली भी 7-8 महीने पहले ऐसा ही सोचते थे, लेकिन तब से उनकी दुनिया चरमरा गई है! इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेटर, केविन पीटरसन ने अपने ट्वीट में इसे संक्षेप में कहा है। उन्होंने लिखा, “लैंगर का ऑस्ट्रेलियाई कोच के पद से जाना शर्मनाक है। क्रिकेट अब धीरे-धीरे फ़ुटबॉल में बदल रहा है, क्योंकि खिलाड़ी बहुत धनी हो जाते हैं और पैसे की शक्ति के आगे पूरी तरह से झुक जाते है!”
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गौरतलब है कि क्रिकेट एक अत्यधिक व्यवसायिक खेल है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन अब इसे जेंटलमैन गेम कहना बंद कर देना चाहिए। क्रिकेट मनोरंजन का एक रूप है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। देशभक्ति को एक आयाम के रूप में जोड़ा जा सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि मैदान पर ये 11 खिलाड़ी अपने खेल का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें पैसा चलाता है, ख्याति नहीं!