खालिस्तानी सोच का नया बुलबुला अब वहां फूटा है जहाँ से इसका उदय हुआ था। कुंठित खालिस्तानी प्रवृत्ति के लोगों ने कनाडा में पिछले कई दिनों से चल रहे प्रदर्शन की आड़ में बेशर्मी की सारी हदें पार कर दीं। दरअसल, कनाडा में कुछ लोग कोरोना वैक्सीन को अनिवार्य करने और कोविड प्रोटोकॉल जैसे सरकारी प्रतिबंधों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी बीच बीते दस दिनों में ग्रेटर टोरंटो एरिया (जीटीए) के मंदिरों पर कुंठित सोच का घिनौना साया आ गया है। इन प्रदर्शनकारियों ने मंदिरों में तोड़फोड़, दान पेटी से दान चोरी से लेकर भगवान की मूर्तियों पर चढ़े आभूषणों तक को नहीं छोड़ा, उन्हें भी चुरा लिया। इस घटना से मंदिरों के पुजारी से लेकर हिन्दू धर्म के लोगों तक, सभी को वहां अपनी सुरक्षा में भी खतरा लगने लग गया है।
दरअसल, शहर को आंदोलनकारी ट्रक चालकों ने 28 जनवरी से ही घेर रखा है। आंदोलनकारियों ने फ्रीडम कॉनवॉय 2022 के नाम से प्रदर्शन शुरू किया था। इन आंदोलनकारियों का कहना था कि जब तक सरकार वैक्सीन की अनिवार्यता को खत्म नहीं करती है, तब तक वे आंदोलन जारी रखेंगे। यही नहीं कोरोना संकट से निपटने के लिए लॉकडाउन जैसी पाबंदियों का भी ये विरोध कर रहे थे। बीते दिनों कनाडा के PM जस्टिन ट्रूडो भी आंदोलनकारियों के चलते राजधानी छोड़कर सीक्रेट लोकेशन पर निकल गए थे। अब तक ट्रक वालों ने ओटावा को खाली करने के संकेत नहीं दिए हैं। अब ओटावा के मेयर ने केंद्र सरकार से इस मामले में दखल की मांग की है।
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इसके अलावा जबसे वहां के देवस्थानों पर ऐसी विभत्स घटनाओं की संख्या बढ़ी है, तबसे भारतीय मूल के अधिकांश हिन्दू धर्म के लोगों में भय व्याप्त हो गया है क्योंकि जब स्वयं प्रधानमंत्री की हालत ऐसी हो गई, कि उन्हें कहीं छुपकर शरण लेनी पड़ गई तो आम जनमानस की क्या ही बिसात है। इस पूरे प्रकरण में प्रमुख मुद्दा कब कोरोना गाइडलाइन और वैक्सीन से हिन्दू मंदिरों पर हमला और चोरी का केंद्र बन गया, किसी को ऐसा अनुमान ही नहीं था। पर जैसे ही यह सब होना शुरू हुआ, इस प्रदर्शन का मूल एजेंडा ‘खालिस्तानी प्रपंच’ प्रदर्शित होने लगा। जब मामला कनाडा की सरकार के द्वारा जारी किए गए नोटिफिकेशन पर था, तो ऐसा क्या हुआ जो सरकार के विरुद्ध चल रहे प्रदर्शन का केन्द्रबिंदु मंदिरों पर हमला बन गया।
यह सत्य है कि, जिस प्रकार कनाडा से खालिस्तानी एजेंडा बीते दिनों भारत में चल रहे किसान आंदोलन पर हावी हुआ और आंदोलन का रिमोट-कंट्रोल खालिस्तानियों के हाथों जाता दिखा, सरकार ने तत्काल प्रभाव से और देर न करते हुए तीनों कृषि कानून वापस ले लिए। भारत में पैर पसार रहा खालिस्तानी अजेंडा एक बढ़ा कारण था जिससे बचाव के लिए मोदी सरकार ने यह निर्णय लिया था। खालिस्तानियों को हमेशा से भारत और उसकी सभ्यता से चिढ़ रही है, ऐसे में कनाडा, जहाँ ये खुद को प्रभुत्व और बहुसंख्यक मानते हैं, वहां हिन्दू मंदिरों को वो कैसे बर्दास्त कर लेते? यही कारण है कि, ट्रक आंदोलन की शक्ल देकर खालिस्तानियों ने हिन्दुओं के मंदिरों में तोड़फोड़ से लेकर चोरी तक की।
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बता दें कि, ग्रेटर टोरंटो एरिया (जीटीए) के मंदिरों में पुजारी और भक्त डर की स्थिति में हैं क्योंकि पिछले दस दिनों में आधा दर्जन पूजा स्थलों में तोड़फोड़ की गई है और दान पेटियों से नकदी चोरी और यहां तक कि आभूषणों की चोरी की गई। मंदिरों को निशाना बनाने वाली ये घटनाएं 15 जनवरी को जीटीए शहर ब्रैम्पटन में श्री हनुमान मंदिर में असफल तोड़-फोड़ के साथ शुरू हुईं थी। तभी से बदमाशों ने जमकर उत्पात मचाया हुआ है। 25 जनवरी को, ब्रैम्पटन में एक और मंदिर, मां चिंतपूर्णी मंदिर को तोड़ दिया गया था, जिसके बाद घटनाओं में बढ़ोतरी होती गई। इलाके में स्थित गौरी शंकर मंदिर और जगन्नाथ मंदिर, दोनों ब्रैम्पटन में, साथ ही हिंदू विरासत केंद्र में भी इसी तरह की घटनाओं की बात सामने आई। मिसिसॉगा में हिंदू हेरिटेज सेंटर (HHC) में, यह घटना 30 जनवरी को हुई, जब दो व्यक्तियों ने दान पेटियों से तोड़-फोड़ की और मुख्य कार्यालय में तोड़फोड़ की।
मंदिर द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है, “इस घटना से श्रद्धालु और पुजारी आहत हैं। पुलिस ने मंदिर के चारों ओर गश्त बढ़ाने का भी वादा किया है। मंदिरों में बड़ी संख्या में तोड़फोड़ से समुदाय बहुत हैरान और स्तब्ध है।
ऐसे में कनाडा में रह रहे कुछ लोगों के खालिस्तानी प्रेम ने उनके इरादे एक बार फिर ज़हीर कर दिये हैं।