उत्तर प्रदेश का अमेठी वह जिला है जहाँ सत्तर बरस तक कांग्रेस की क्रीमी लेयर ने एकछत्र राज किया और जब काम करने में वह असफल रहे तो वहां से जनता द्वारा बाहर खदेड़ देने के बाद वहाँ कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता जनता के बीच नहीं दिखा। अब राज्य चुनावों में 4 चरण पूरे होने के बाद, पाँचवे चरण में अमेठी में चुनाव है, तब जाकर प्रिंस राहुल गाँधी को अमेठी और वहां की जनता की याद आई है। ऐसे में अमेठी की जनता भी राहुल को यही कह रही होगी, “तुझे याद न मेरी आई, स्मृति से अब क्या कहना।”
2019 में स्मृति ईरानी से चुनाव हारने के बाद राहुल गाँधी को अमेठी के लिए कभी समय नहीं मिला, शर्म से भी वह जाने में कतराते रहे और मिला भी तो वर्ष 2021 में पार्टी की एक सभा को करके वो लौट गए। अब जब अमेठी में स्थित सभी विधानसभाओं में चुनाव हैं, तब राहुल गाँधी मुंह उठाकर अमेठी आकर वोट मांगने वापस आ गए हैं।
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बहन और भाई के बीच सब ठीक नहीं चल रहा है क्या?
2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस पहले वाले गणित के साथ नहीं चल रही है। 2017 में अखिलेश यादव के साथ राहुल गाँधी ने यूपी के दो लड़को का कॉम्बो बनाया था जिसे यूपी की जनता ने सिरे से नकार दिया। इस बार सारा दारोमदार पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा के ज़िम्मे है। इस बार पार्टी के टिकट वितरण और नीति-निर्माण का सारा काम स्वयं प्रियंका देख रही हैं। इस बार का चुनाव प्रियंका के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है इसलिए जहाँ-जहाँ कांग्रेस जा रही है, वहां मात्र लड़की हूँ लड़ सकती हूँ का नारा ही जा रहा है।
ऐसे में शायद राहुल गाँधी को इस बात से थोड़ा अटपटा महसूस हो रहा था, इसी वजह से 4 चरण तक विलुप्त रही अपनी उपस्थिति को भुनाने के लिए राहुल ने अपने पुराने क्षेत्र की ओर रुख किया है। राहुल गाँधी की नींद तब टूटी जब पांचवे चरण के चुनाव प्रचार का अंतिम दिन आ गया। निश्चित रूप से यह राहुल गाँधी की हताशा का ही परिणाम है जो उन्हें पंजाब, गोवा, और अन्य चुनावी राज्य तो याद रहे पर सत्ता की सीढ़ी जिस राज्य से होकर जाती है और जहाँ से गाँधी Dynasty के सभी चश्मोचिराग चुआव लड़कर, जीतने के बाद संसद सदस्य बने, उस प्रदेश से राहुल गाँधी का यूँ परहेज करना, कांग्रेस के लिए शुभ संकेत देता तो नहीं दिख रहा है।
अमेठी कभी गढ़ था, आज गाँधी परिवार वहां चुनाव भी नहीं जीत रहा है-
ज्ञात हो कि अमेठी सीट पर करीब 40 साल तक गांधी और नेहरू परिवार का दबदबा रहा। यहां से संजय गांधी, राजीव गांधी और राहुल गांधी लोकसभा चुनाव जीते। लेकिन 2019 में बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हरा कर इस किले को ध्वस्त कर दिया। शायद यही ही कारण था जो लज्जा में राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश प्रचार करने से झिझकते रहे, अंततः जब 10 जनपथ से मातोश्री का आदेश हुआ होगा, राहुल को अपने बालहठ से समझौता कर माता की आज्ञा का पालन करना आवश्यक लगा। जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में पुनः कांग्रेस अपनी साख बचाने के लिए चुनाव लड़ रही है, उसके अस्तित्व पर गहरी चोट पड़ने के पूरे आसार हैं, क्योंकि इस बार वो पहले की तरह गठबंधन में नहीं अकेले चुनाव लड़ रही है, ऐसे में जब कांग्रेस ने सपा के साथ चुनाव लड़ा था, तब वह मात्र 7 सीट जीत पाई थी, जिनमें से 3 ने चुनाव पूर्व ही सपा और भाजपा का रुख कर लिया। ऐसे में इस बार कांग्रेस शुन्य पर सिमट जाए तो आश्चर्यजनक बात नहीं होगी।
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जिस तरह राहुल गाँधी ने अपने प्रचार के लिए अमेठी को चुन अपनी फजीहत कराई है, ऐसे में जब पांचवे चरण का चुनाव 27 फरवरी को होना है उससे एक दिन पूर्व प्रचार करने के लिए यूपी में कदम रखना बिलकुल टूरिस्ट की तरह आने जैसा लग रहा है। निस्संदेह, राहुल गाँधी के मन में अब उत्तर प्रदेश के प्रति कोई सकारत्मकता है ही नहीं, उन्हें मालूम है कि यूपी कांग्रेस के हाथ में आने से रहा इसलिए चुनाव प्रचार के बजाय उन्होंने उसे मज़ाक बना दिया और पांचवे चरण से पूर्व आकर औपचारिकता पूर्ण कर दी कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में प्रचार कर लिया। उम्मीद है कि वह यह भी समझते होंगे कि पैराशूट पॉलिटिक्स को जनता सिरे से नकारती है।
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