हमेशा से हम प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को देश के शीर्ष चिकित्सा निकाय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) के निर्माण का श्रेय देते है लेकिन हम नहीं जानते कि एम्स की नींव के पीछे का असली कारण राजकुमारी अमृत कौर थी, जो भारत की प्रथम महिला कैबिनेट मंत्री थी।
एम्स के निर्माण की कहानी
एम्स के निर्माण का प्रस्ताव भले ही नेहरू द्वारा प्रस्तावित किया गया हो परंतु, एम्स को बनाया अमृता कौर ने। हालांकि, नेहरू के आभामंडल में कभी इस प्रतिभाशाली महिला नेत्री को श्रेय नहीं मिला। नेहरू शुरू में इसे कलकत्ता में स्थापित करना चाहते थे, लेकिन राजकुमारी अमृत कौर के संघर्ष ने पुरुष प्रधानता और नेहरू के महिमामंडन से त्रस्त भारत की पितृसत्तात्मक राजनीति को चीरते हुए इसे ना सिर्फ देश की राजधानी में स्थापित कराया बल्कि इसे देश का सर्वोच्च चिकित्सा संस्थान भी बनाया।
18 फरवरी 1956 को तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने लोकसभा में एक नया विधेयक पेश किया। उन्होने कोई भाषण तैयार नहीं किया था। पर वो दिल से बोली। उनके शब्द थे- “यह (एम्स की स्थापना) मेरे देखे गए सपनों में से एक रहा है कि हमारे देश में स्नातकोत्तर अध्ययन और चिकित्सा शिक्षा के उच्च मानकों को बनाए रखने के लिए, हमारे पास इस प्रकृति का एक संस्थान होना चाहिए जो हमारे युवा पुरुषों और महिलाओं को अपने ही देश में उनकी स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाए।”
हालांकि, आपने सोशल मीडिया पर अक्सर एक तस्वीर देखी होगी जिसमें भारत के पहले प्रधान मंत्री नेहरू को अपने मंत्रियों और वास्तुकारों की टीम के साथ खड़े देखा जा सकता है, जो एम्स के निर्माण से पहले एक मॉडल को देख रहे थे और जिसका कैप्शन था- एम्स कैसे नेहरू की गाथा है?
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I am seeing tweets going around how Nehru was responsible for AIIMS. No he wasn't. Amrit Kaur, a woman made it happen.
And there is another fancy video of historical Indians – with only one woman!
Let's not whitewash history to exclude women. https://t.co/hY16j7oI0p— Dr. Sonali Vaid (@SonaliVaid) August 3, 2020
डॉ. श्रीनिवास, जो उस समय एम्स में महासचिव थे, उनके द्वारा ट्वीट की गई इसी तस्वीर का एक डॉक्टर और एक सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सोनाली वैद ने जवाब दिया। डॉ. वैद ने बताया कि तस्वीर और पोस्ट में नेहरू को शीर्ष पर दर्शाया गया है पर, वास्तव में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अमृत कौर एम्स के पीछे की असल दूरदर्शी थीं।
डॉ. वैद, राजकुमारी अमृत कौर को एक ऐसी महिला के रूप में याद करती है जिसका योगदान इतिहास में अंकित नहीं है। राजकुमारी अमृत कौर ने न केवल स्वास्थ्य सेवा के लिए भारत के प्रमुख सार्वजनिक संस्थान की स्थापना में मदद की बल्कि 30 से अधिक वर्षों तक WHO की शासी निकाय की अध्यक्षता करने वाली वो पहली एशियाई महिला भी थी।
उन्हें TIME की पत्रिका की “100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं” की सूची में एक सम्मानित स्थान दिया गया है।
राजकुमारी अमृत कौर की छोटी-सी कहानी
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म कपूरथला के राजा, के छोटे बेटे ‘सर’ हरनाम सिंह अहलूवालिया के वहाँ, 2 फरवरी, 1889 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत) में हुआ था। उनका पालन-पोषण एक एंग्लिकन ईसाई वातावरण में हुआ था क्योंकि उनके पिता ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे और उनकी माँ भी एक बंगाली ईसाई थीं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इंग्लैंड के डोरसेट में शेरबोर्नगर्ल्स स्कूल में प्राप्त की और कॉलेज की शिक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राप्त की। इंग्लैंड में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, वह भारत लौट आई।
1919 में, उनका परिचय उनके पिता के करीबी दोस्त और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के एक प्रभावशाली सदस्य गोपाल कृष्ण गोखले से हुआ। अपने देश और उसके लोगों की भलाई के लिए गोखले के समर्पण से वह बहुत प्रभावित हुईं। वह उनके संगठन‘ सर्वेंट्स ऑफ इंडियन सोसाइटी’ से भी प्रभावित थीं, जिसके तहत उन्होंने समाज के वंचितों की सेवा करने का काम किया। गोखले अमृत कौर के लिए एक प्रकाशस्तंभ बन गएऔर उनके प्रभाव मेंवह बाद में राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल हो गईं। तत्पश्चात, वह एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी बन गईं। गोखले की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहाथा- “भारत को विदेशी आधिपत्य से मुक्त देखने की मेरी तीव्र इच्छा उन्होंने ही प्रज्ज्वलित की थी।”
उसके बादवह भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनने तक गांधीजी की निजी सचिव रहीं बनींरहीं। गांधीजी उनके काम और समर्पण से बहुत प्रभावित हुए।
समाज के उत्थान के लिए उनका संघर्ष
उन्होंने निरक्षरता को कम करने और बाल विवाह, देवदासी और महिलाओं के लिए पर्दा प्रथा को खत्म करने के लिए काम किया। उन्होंने महिलाओं के वोट और तलाक के अधिकारों के लिए भी काम किया। यह उनका दृढ़ और अथक अभियान था जिसने सरकार को लड़कियों की शादी की उम्र 14 और फिर 18 साल करने के लिए मजबूर किया। उन्हें अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का भी श्रेय दिया गया, जो अपनी तरह का पहला संगठन था जिसने महिलाओं के अधिकारों के लिए काम किया था।