कुछ लोगों का घर देश विरोध से चलता है। अगर वो कुछ दिन तक देश के बारे में उल्टा सीधा और बेतुका बयान न दें, तो ऐसा लगता है जैसे उनके मुंह से खून आ जाएगा। भारत में जैसे-जैसे प्रखर राष्ट्रवाद का उदय हो रहा है, लोगों में अपनी संस्कृति के प्रति जागरूकता और राष्ट्र के प्रति प्रेम बढ़ रहा है। आप जैसे राष्ट्रवादी लोग न सिर्फ राष्ट्रविरोधी नेताओं को चुनावी दंगल में हरा रहे हैं, बल्कि विद्वता की आड़ लेकर देश के खिलाफ बोलने पत्रकारों की दुकान भी बंद कर रहे हैं। इस स्थिति में ऐसे राष्ट्र विरोधी तत्वों का चूल्हा चौका चलना मुश्किल हो गया है।कांग्रेस के जमाने में लुटियन्स मीडिया का हिस्सा रहे और जम्मू कश्मीर के संदर्भ में आज़ादी की वकालत करने वाले करण थापर और कथित समाजसेवी अरुंधति राय भी इन्हीं में से एक हैं और हाल ही में इनदोनों ने थोड़ा फुटेज बटोरने के लिए ऐसा कांड किया है, जिसे लेकर इनकी जमकर थू-थू हो रही है!
जानें क्या है पूरा मामला?
करण थापर एक भारतीय पत्रकार, समाचार प्रस्तुतकर्ता हैं, जो काफी लंबे समय से ‘द वायर’ के साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने हाल ही में अरुंधति राय का साक्षात्कार किया। ध्यान देने वाली बात है कि ये वही अरुंधति राय हैं, जिन्होंने नागरिकता कानून पर मुसलमानों को भड़काते हुए कहा था कि “एनपीआर भी एनआरसी का ही हिस्सा है। एनपीआर के लिए जब सरकारी कर्मचारी जानकारी मांगने आपके घर आएं, तो उन्हें अपना नाम रंगा बिल्ला बताइए। अपने घर का पता देने के बजाए प्रधानमंत्री के घर का पता लिखवाएं।”
इतना ही नहीं उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया में छात्रों को उकसाते हुए कहा था कि “अगर हम सब एक हो जाएं तो कोई भी डिटेंशन सेंटर हमें कैद करने के लिए काफी नहीं होगा। वो इतना बड़ा डिटेंशन सेंटर नहीं बना सकते। शायद, हो सकता है कि एक दिन ऐसा भी आए, जब यह सरकार डिटेंशन सेंटर में होगी और हम सभी आजाद होंगे।” अब काफी दिनों से इनकी दुकान बंद चल रही थी। फुटेज पाने के लिए इन्होंने देश में आग लगाने की सोंची। द वायर की ओर से करण थापर ने इनका इंटरव्यू लिया, जिसमें अरुंधति राय ने देश के खिलाफ कई आपत्तिजनक बाते कही हैं।
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अरुंधति रॉय की कुत्सित मानसिकता!
करण थापर ने उनसे सवाल पूछा कि ‘भारतीय राजनीति की उलझन, अराजकता और कर्कशता के बीच हम किस तरह का देश बनते जा रहे हैं?’ इसपर अरुंधति रॉय ने झट से हिंदू राष्ट्रवाद को दोष दे दिया, जैसे यही बोलने के लिए उन्हें बुलाया गया था और यही सुनने के लिए करण थापर ने यह प्रश्न पूछा था। अरुंधति रॉय ने कहा, “हिंदू राष्ट्रवाद भारत को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ सकता है, जैसा कि पहले यूगोस्लाविया और रूस के साथ हुआ है। अंततः भारतीय लोगो को नरेंद्र मोदी और भाजपा के फासीवाद का विरोध करना होगा।” अरुंधति रॉय ने यह भी कहा कि देश में मौजूदा स्थिति “बेहद निराशाजनक” है।
वो कहती हैं, “हमने लोकतंत्र के लिए क्या किया है? हमने इसे किसमें बदल दिया है?” उनके अनुसार हमने इसे खोखला और अर्थहीन कर दिया। कोई भी संस्था भरोसे के लायक नहीं है। वो कहती हैं कि पिछले पांच वर्षों में, भारत ने खुद को एक लिंचिंग राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है। मुसलमानों और दलितों को दिन के उजाले में हिंदू भीड़ द्वारा सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाते हैं। उन्हें पीट-पीटकर मार डाला जाता है और फिर ‘लिंच वीडियो’ को YouTube पर उल्लासपूर्वक अपलोड कर दिया जाता है।
रॉय यह भी बताती हैं कि वह कश्मीर और शेष भारत के बीच संबंधों को किस तरह देखती हैं। वह कहती हैं कि “कश्मीर भारत को नहीं हरा सकता, लेकिन यह भारत को खा जाएगा।“ उनकी यह राय उनकी पुस्तक “द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस” के पात्र मूसा येस्वी के वक्तव्य समान प्रतिध्वनित होती है। अरुंधति कहती हैं, “एक दिन कश्मीर भारत का विनाश कर देगा। आप कश्मीरियों को नष्ट नहीं कर रहें, आप उन्हें बना रहे हैं। असल में नष्ट होने वाले तो आप हैं।”
देश की बेहतर स्थिति इनसे देखी नहीं जा रही!
अरुंधति राय और उनके साक्षात्कारकर्ता करण थापर पर तरस आता है। इनकी न तो पत्रकारिता और न ही सामाजिक परिवर्तनों में कोई प्रासंगिकता रह गयी है। ये बस भारत विरोधी बातें बोलकर लाइम लाइट प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। अब इन्हें कौन समझाये कि धारा-370 को हटाने के बाद कश्मीर शांत हो गया है। इतना शांत की लाल चौक पर अब तिरंगा बड़े शान से फहरा रहा है और पत्थर फेंकने वाले भी चुप हैं। जहां तक सवाल है फासीवाद और कट्टरता का, तो अरुंधति राय देश को राष्ट्रवादी पथ पर आगे बढ़ते हुए देख नहीं पा रही है। इसीलिए इसे फासीवाद का नाम दे रही है। किशन, रितेश पांडे और लावण्या की मौत उन्हें नहीं दिखती, उन्हें तो बस मुस्लिमों की सरेआम लिंचिंग दिखाई पड़ती है। भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, लेकिन उन्हें भारत सिर्फ एक लिंचिंग राष्ट्र के रूप में दिखाई देता है। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को, असल में देश में वैमनस्य अरुंधति राय जैसे लोग बढ़ते है।
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