“जब धरती लगती है फटने, तब खैरात लगती है बंटने”, ऐसा हाल तब होता है जब किसी मामले में आरोपी को धर लिया जाता है और वो अपने कर्मकांड में रहे साथियों के नाम उगलने लगता है। महाराष्ट्र के शासन और प्रशासन की मिलीभगत से चल रहे षड्यंत्रों पर अब तक पर्दा डालने वाले, अब एक -एककर सभी का नाम बता रहे हैं। मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने अनिल देशमुख मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को दिए अपने बयान में आरोप लगाया है कि उनपर महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख की ओर से पुलिस अधिकारी सचिन वाझे (अब बर्खास्त) को बहाल करने का सीधा दबाव था। सिंह ने यह भी दावा किया कि उन्हें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे से भी वाझे की बहाली के संबंध में सीधे निर्देश मिले थे। सिंह का बयान एजेंसी द्वारा देशमुख के खिलाफ दायर आरोपपत्र का हिस्सा है। इससे ये प्रमाणित हो रहा है कि वाझे को बहाल करने में उद्धव और आदित्य ठाकरे का हाथ था।
परमबीर सिंह से हुई पूछताछ में उसने ईडी को बताया कि मुंबई पुलिस ने वाझे को एक समीक्षा बैठक के बाद बहाल किया था। यह समीक्षा बैठक वहां होती है जहां निलंबन के सभी मामलों की समीक्षा पुलिस आयुक्त, मुंबई की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा की जाती है, कुछ संयुक्त आयुक्त और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी इसमें मौजूद होते हैं।
पूछताछ में परमबीर ने अपनी ओर से सारे पत्ते खोलने शुरू किए और 3 दिसंबर को ईडी से हुई पूछताछ के दौरान कहा कि, “मैं यह बताना चाहूंगा कि गृह मंत्री अनिल देशमुख की ओर से उनकी (वाझे की) बहाली के लिए सीधा दबाव था। मुझे आदित्य ठाकरे और सीएम उद्धव ठाकरे से भी सीधे निर्देश मिले। इसी तरह के निर्देश मुझे मुंबई पुलिस की अपराध शाखा में उनकी पोस्टिंग के लिए और उन्हें वहां कुछ महत्वपूर्ण इकाई का प्रभार देने के लिए भी मिले। कुछ महत्वपूर्ण मामले क्रिमिनल इंटेलिजेंस यूनिट को सौंपे गए थे, जिसकी अध्यक्षता सीएम और गृह मंत्री के निर्देश पर सचिन वाजे ने की थी।”
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उगाही और रिश्वत को लेकर परमबीर सिंह ने ईडी को बताया कि, वाझे ने उसे यह भी बताया था कि उसकी बहाली और पोस्टिंग के लिए अनिल देशमुख ने 2 करोड़ रुपये की मांग की थी। सिंह ने आगे कहा कि, “मैं रिकॉर्ड में रखना चाहता हूं कि मुझे सूत्रों से पता चला कि अनिल देशमुख ने 30 नवंबर, 2021 को चांदीवाल आयोग में सचिन वाजे से मुलाकात की और उनसे प्रवर्तन निदेशालय को दिए गए बयान को वापस लेने का अनुरोध किया। मुझे यह भी पता चला है कि सचिन वाजे पर जेल में दबाव डाला जा रहा है और इसके लिए रोजाना उनकी तलाशी और गाली-गलौज की जा रही है।”
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पिछले साल मार्च में, सिंह ने महाराष्ट्र के CM उद्धव ठाकरे को लिखे अपने पत्र में आरोप लगाया था कि देशमुख ने वाझे को मुंबई में बार और रेस्तरां मालिकों से एक महीने में 100 करोड़ रुपये की उगाही के लिए कहा था। CBI ने तब देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसके बाद ईडी ने देशमुख के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में मामला दर्ज किया था। उक्त मामले में ईडी ने पहले देशमुख के दो कर्मचारियों कुंदन शिंदे और संजीव पलांडे को गिरफ्तार किया था। देशमुख, जो वर्तमान में न्यायिक हिरासत में है, को ईडी ने 3 नवंबर को गिरफ्तार किया था।
सिंह को पहले भी ईडी ने कई मौकों पर तलब किया था, लेकिन वह कभी भी एजेंसी के सामने पेश नहीं हुए थे। सुप्रीम कोर्ट जाने और गिरफ्तारी से अस्थायी सुरक्षा दिए जाने के बाद, मई से अंडरग्राउंड रहने के बाद वह आखिरकार पिछले साल नवंबर में सार्वजनिक रूप से सामने आए।
होम गार्ड्स के महानिदेशक के रूप में पद से हटाए जाने और तैनात किए जाने के बाद, सिंह को उनके और कुछ अन्य पुलिस कर्मियों के खिलाफ जबरन वसूली के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करने के बाद महाराष्ट्र सरकार द्वारा निलंबित कर दिया गया था। वह महाराष्ट्र में कम से कम पांच जबरन वसूली के मामलों का सामना कर रहा है।
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सभी घटनाक्रमों में परमबीर सिंह के बयानों के आधार पर अनिल देशमुख के अलावा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे की संदिग्ध भूमिका परिभाषित हुई है। किस प्रकार वाझे को अंदरूनी तौर पर शह देने में ठाकरे का हाथ था, वो सब परमबीर ने ईडी को दिए अपने बयान में साफ़ तौर पर बता दिया है। ऐसे में इसमें कोई शंका नहीं है कि उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे ने ही सचिन वाझे को इतना बढ़ाया और अपना स्वार्थ सिद्ध किया। अब कानूनी तौर पर ठाकरे परिवार पर शिकंजा कसना ज़रूरी है क्योंकि इन सभी कर्मकांडों की सजा मिलनी आवश्यक ही नहीं अतिआवश्यक है।