धर्म खाने को नहीं देता, देश देता है। धर्म पहनने को नहीं देता, देश देता है। धर्म आपके सर पर छत नहीं देता, देश देता है। धर्म आपकी रक्षा करेगा इसमें संदेह है पर देश का कानून निस्संदेह आपकी रक्षा करेगा। अतः, धर्म भी कहता है राष्ट्र ही सबसे बड़ा धर्म है। परंतु, देश का दुर्भाग्य देखिये अपनी नासमझी के कारण हम धर्म के निर्देशों को राष्ट्र के कानून से भी बड़ा कर देते हैं। ऐसे मजहबी क़ानूनों के लिए राष्ट्र से भिड़ जाते है। हालिया, हिजाब विवाद इसी बिडम्बना को परिलक्षित करता है। इसीलिए अब समय आ गया है जब मजहबी किताबों में व्याप्त ऐसे राष्ट्रविरोधी कानून को चुन-चुनकर निकाला जाए और उसे समाप्त कर दिया जाये।
देश का संवैधानिक कानून सभी को अपने धर्म के प्रचार, प्रसार और अनुपालन का अधिकार देता है। यह संविधान के अनुच्छेद 26 में निर्दिष्ट है। पर, मानवीय प्रवृति है की हम अधिकारों को लेकर ज्यादा सजग होते है और इस चक्कर में अधिकार को निरंकुश बनने से रोकनेवाले कानूनों को भूल जाते है। इसी कारण शुरू होता है धार्मिक निर्देश और देश के कानून से टकराव का दौर। आज हिजाब है, कल नमाज़ होगी और परसों कुछ और। मुसलमानों के निजी कानून में एक ऐसी ही चीज़ है जिसका नाम है- हक शुफ़ा (अग्रक्रयाधिकार)।
अग्रक्रयाधिकार अर्थात हक शुफ़ा (Pre-emption right) कुछ स्थितियों में क्रेताओं के स्थान पर किसी अचल संपत्ति के अनिवार्य क्रय करने का अधिकार है। हक शुफ़ा एक प्रकार का ऐसा अधिकार है जो किसी अचल संपत्ति से निकट का संबंध रखने वाले को उसके क्रय करने के संबंध में प्राप्त होता है।
साधारण भाषा में समझते है। मुस्लिम विधि में अग्रक्रय भी एक अधिकार बताया गया है। यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को विक्रय करता है तो ऐसी स्थिति में उस संपत्ति को क्रय करने का प्रथम अधिकार किसके पास होगा।
आधुनिक विधियां यह कहती हैं कि कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति किसी को भी विक्रय (बेचना) कर सकता है और कोई भी उसे क्रय कर सकता है। संविधान के मूल अधिकारों में 44 वें संशोधन के पहले तक यह एक मूल अधिकार था परंतु संशोधन के उपरांत इसको मूल अधिकार से समाप्त कर दिया गया। कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को विक्रय तो कर सकता है परंतु उस संपत्ति को खरीदने का प्रथम हक़ कुछ व्यक्तियों को दिया गया है तथा वह व्यक्ति यदि उस संपत्ति में कोई हित रखते हैं तो ऐसी परिस्थिति में प्रथम रूप से उनके अधिकार रखने वाले व्यक्तियों को संपत्ति खरीदने का आदेश दिया गया है।
पैगंबर साहब ने अपनी हदीस में अपनी संपत्ति को प्रथम अपने पड़ोसी या उस संपत्ति के हिस्सेदार को बेचने का आदेश दिया है। पैगंबर साहब ने अपनी हदीस में मुसलमानों को यह एक प्रकार का नियम बताया है।
इस धार्मिक कानून के कारण आनेवाले समय में राष्ट्र पर संकट की प्रबल संभावना उत्पन्न होने की आशंका है। हम बताते है कैसे?
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आधुनिक परिक्षेप में हम इसको इस तरह समझ सकते हैं जैसे किसी कॉलोनी में कुछ व्यक्ति रहते हैं। उस कॉलोनी में कोई रहवासी संघ बना हुआ है तथा कॉलोनी संघ के लोग चाहते हैं कॉलोनी के भीतर कोई बाहर का अनजान व्यक्ति आकर नहीं बस जाए तो ऐसी परिस्थिति में वह लोग भी आपस में समझौते कर लेते हैं कि यदि हम में से कोई संपत्ति बेचता है तो आपस में ही संपत्ति का क्रय-विक्रय कर लें। इस कारण अन्य धर्म के लोग मुसलमानों के बगल की ज़मीन नहीं खरीद सकते। इससे ना सिर्फ उनके संपति का कानूनी अधिकार प्रभावित होता है बल्कि इससे सामाजिक दुराव भी बढ़ता है। अन्य धर्मों के लोगों से वो घुल मिल नहीं पाते और आपके शहर की एक विशेष जगह और कॉलोनी मुस्लिम कॉलोनी के रूप में जाने जानी लगती है। इससे धार्मिक आधार पर उनका एकीकरण होता है और इस इलाके में पुलिस प्रशासन भी जाने और अपराध की गतिविधियों को काबू में करने से डरने लगती है।
हालांकि, कई मामलों में देश के न्यायालय ने इस अधिकार को खारिज किया है पर इस विषय पर शीघ्रताशीघ्र कानून बना इस निरस्त किए जाने की आवश्यकता है अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब देश में दुराव बढ़ेगा और मुस्लिम समाज के लिए हर शहर में विशेष स्थान आरक्षित हो जाएगा।