गोवा में भाजपा की संभावित जीत से विपक्षी पार्टियों में भगदड़ मची है। उन्हे ड़र है की अगर भाजपा जीती तो उनके थोड़े बहुत विधायक भी भाजपा के साथ होंगे। इस समस्या से निपटने के लिए ‘आप’ और कांग्रेस ने एक अनोखा तरीका निकाला है। वो अपने उम्मीदवारों को वफादारी की कसम खिला रहें है। आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवारों ने विधानसभा चुनाव से पहले एक कानूनी हलफनामे पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत पार्टी के विधायको ने पार्टी के प्रति वफादार रहने की ‘प्रतिज्ञा’ ली अर्थात परिणाम के बाद वे टूट कर किसी अन्य पार्टी में नहीं जाएंगे।
यह शपथ आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उपस्थिति में ली गई।
केजरीवाल ने पिछले साल दिसंबर में पणजी में अपने सार्वजनिक संबोधन के दौरान स्पष्ट कर दिया था कि ‘आप’ के सभी उम्मीदवार एक हलफनामे पर हस्ताक्षर करेंगे ताकि पार्टी उन्हें अदालत में घसीट सकें यदि वे पार्टी बदलते हैं या चुनाव के बाद दल-बदल आचरण में लिप्त होते हैं।
आप के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार अमित पालेकर ने पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उपस्थिति में सभी उम्मीदवारों को शपथ दिलाई, जो गोवा के चार दिवसीय दौरे पर हैं। खबर है की पार्टी ये शपथ पत्र मतदाताओं में भी बांटेगी।
इसी तरह गोवा में भी कांग्रेस के सभी उम्मीदवार बुधवार को पार्टी के शीर्ष नेता राहुल गांधी के साथ वफादारी का संकल्प लेंगे और चुनाव के बाद दलबदल नहीं करने का वादा करेंगे। 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, जिसे खंडित जनादेश मिला लेकिन दलबदल के कारण सरकार बनाने में विफल रही। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुने गए 17 में से सिर्फ दो विधायक अब पार्टी के साथ हैं। पार्टी गोवा के लोगों को आश्वस्त करना चाहती है कि कांग्रेस को वोट देना एक व्यर्थ वोट नहीं होगा और निर्वाचित प्रतिनिधि चुने जाने के बाद दलबदल नहीं करेंगे।
2019 में, विधायकों के एक बड़े हिस्से ने गोवा विधानसभा में अपनी ताकत कम करते हुए पार्टी छोड़ दी थी। कांग्रेस पहले भी इसी तरह का आयोजन कर चुकी है और सभी उम्मीदवारों ने संकल्प लिया है कि वे विधानसभा चुनाव के बाद जनता और पार्टी के प्रति वफादार रहेंगे। उम्मीदवारों ने इस महीने की शुरुआत में एक मंदिर, एक चर्च और एक दरगाह में वफादारी की शपथ ली थी, और मतदाताओं को यह समझाने के लिए राहुल गांधी के साथ इसे दोहराएंगे कि वे चुनाव के बाद दलबदल नहीं करेंगे।
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पार्टी विचार, जनाधार, काडर और करिश्माई नेता के आधार पर चलती है पर काँग्रेस और आप के पास इन चारों में से कोई नहीं है। अगर एक आध उम्मीदवार अपने बल पर जीत भी जाता है तो भी इस बात की प्रबल संभावना है की वो टूट जाये और भाजपा से जा मिले। इसी दहशत से होने वाली भगदड़ को रोकने के लिए ये लज्जाजनक उपाय दोनों पार्टियां कर रहीं हैं।