काँग्रेस पार्टी क्यों सत्ता से बाहर हुई और आज इस जगह पा आई है, इसके पीछे बस एक ही उत्तर है। वह उत्तर है तुष्टिकरण! तुष्टिकरण की राजनीति ने काँग्रेस को बर्बाद कर दिया। मुस्लिम समाज का वोट पाने के लिए काँग्रेस ने जो किया उसके प्रति उत्पन्न हुई कुंठा को भाजपा का सहारा मिला। जो लोग तुष्टिकरण की राजनीति नहीं समझ पा रहे हैं, उनको राजस्थान के मामलें से समझना चाहिए। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान मुस्लिम वक्फ बोर्ड (RBMW) ने राज्य में लगभग 18,000 संपत्तियों को सूचीबद्ध किया है, जिससे यह राज्य का सबसे अधिक भूमि संपन्न निकाय/बोर्ड बन गया है। अकेले जयपुर में इस बोर्ड के पास 2,500 इमारतें हैं, जिनमें 400 स्टोर है और सबसे धनी संगठन होने के बावजूद, इसके पास अपने 50 कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने के लिए धन की कमी है।
अब धन की कमी है, तो लोगों से चंदा मांगना चाहिए था लेकिन नहीं, धर्मनिरपेक्षता के अजीब मानकों पर चलते हुए राजस्थान की काँग्रेस पार्टी से पैसा मांगा जा रहा है। अब सवाल उतना तो बंता है कि ये कैसी धर्मनिरपेक्षता है? जहां एक धार्मिक संगठन को सरकारी खजाने से पैसा दिया जा रहा है? यह मूर्खता नहीं है तो क्या है? मतलब जो संस्थान स्वतंत्र हैं, उन्हें तनख्वाह के लिए सरकारी खजाने से पैसा दिया जा रहा है और दूसरी ओर मंदिर जो सरकारी नियंत्रण में हैं, उन्हें तो कभी कुछ नही दिया गया और ना हिन्दू पुजारियों ने कभी मांगा।
बोर्ड के एक अधिकारी ने कथित तौर पर कहा, “किराये की आय 7,000 से अधिक संपत्तियों से उत्पन्न होती है, इसका 95% स्थानीय समितियों, कानूनी मामलों और अन्य विकास कार्यों के हाथों में चला जाता है और वक्फ बोर्ड के पास कोई फंड नहीं बचता है।” असल में यह मामला धार्मिक तुष्टिकरण का जितना ज्यादा है, उससे ज्यादा भ्रष्टाचार का है। बोर्ड के पास भ्रष्टाचार की वजह से पैसा नहीं है।
जयपुर के प्रीमियम इलाके में एक या दो BHK फ्लैट का मासिक किराया लगभग 15,000 रुपये से 25,000 रुपये होगा। जयपुर में सरकारी छात्रावास के पास MI रोड पर 3,000 वर्ग गज जमीन और 22 कमरों के होटल के मासिक किराए पर विचार करिये? कमसेकम रुपए 50,000 रुपये लेकिन यहां का किराया किसी की उम्मीद से काफी कम है, जो क्रमशः 5,000 रुपये और 15,000 रुपये है।
राज्य भर में मुस्लिम वक्फ के राजस्थान बोर्ड के तहत सूचीबद्ध अधिकांश संपत्तियों का यही हाल है। नई किराया नीति को लागू न करने, अनियंत्रित अतिक्रमण और इसकी संपत्तियों को राजस्व बोर्ड में गैर-सूचीबद्ध करने से RBMW अपने 50 कर्मचारियों के वेतन जारी करने के लिए राज्य सरकार से सहायता पर निर्भर हो गया है।
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रिपोर्टों में कहा गया है कि RBMW ने राज्य भर में 18,000 से अधिक संपत्तियों को सूचीबद्ध किया है, जिससे यह भूमि के मामले में सबसे अमीर निकाय / बोर्ड बन गया है। राजस्थान बोर्ड ऑफ मुस्लिम वक्फ (RBMW) में तैनात एक अधिकारी ने कहा, “किराये की आय 7,000 से अधिक संपत्तियों से उत्पन्न होती है, इसका 95% स्थानीय समितियों, कानूनी मामलों और अन्य विकास कार्यों के हाथों में चला जाता है, जिससे वक्फ बोर्ड को कोई कोष नहीं मिलता है।” अकेले जयपुर में 400 दुकानों सहित 2,500 संपत्तियां हैं, लेकिन वे आकार के आधार पर 300 रुपये से 15,000 रुपये प्रति माह के रूप में कम किराया उत्पन्न कर सकते हैं।
2010 में शुरू की गई नई किराया नीति अभी लागू नहीं हुई है और इसके लागू होने से RBMW का चेहरा एक मामूली बोर्ड से राज्य के सबसे अमीर बोर्डों में से एक में बदल सकता है। RBMW के सदस्य और आदर्श नगर के विधायक रफीक खान ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उन्होंने 100 से अधिक संपत्तियों की पहचान की है जो सालाना 1 करोड़ रुपये का किराया पैदा कर सकती हैं।
खान ने कहा, “राज्य में सिर्फ 100 संपत्तियों से 100 करोड़ से अधिक की कमाई की जा सकती है। अतिरिक्त राशि का उपयोग छात्रावास, वाणिज्यिक संपत्तियों और सामुदायिक हॉल जैसी विकास परियोजनाओं के लिए किया जा सकता है।”
यह दोनों बातों में कितना विरोधाभास है। एक तरफ पैसा ही पैसा है, दूसरी ओर कर्मचारियों को देने के लिए पैसे नहीं है? यह कैसे हो सकता है? अब इसपर बोर्ड का कहना है कि कोर्ट कचहरी में पैसा लग जाता है।
बड़े पैमाने पर अतिक्रमण एक बड़ी समस्या है। RBMW के CEO, अकील खान ने कहा कि लगभग हर दिन उन्हें संपत्तियों-संरचनाओं और भूमि पर अतिक्रमण की एक शिकायत प्राप्त होती है। “RBMW के पास इसके लिए कार्रवाई करने की शक्ति नहीं है। लगभग हर दूसरे दिन मैं संबंधित जिलों के कलेक्टरों और SP को अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने, अदालती आदेशों को लागू करने, अतिक्रमणकारियों से मुक्त संपत्तियां और संपत्तियों का सर्वेक्षण करने के लिए लिखता हूं।”
काँग्रेस शासन में बेलगाम हुआ भ्रष्टाचार
Local Circles और Transparency International India द्वारा किए गए भारत भ्रष्टाचार सर्वेक्षण के अनुसार, राजस्थान भारत में भ्रष्टाचार के चार्ट में सबसे ऊपर है। सर्वेक्षण के अनुसार, राजस्थान में सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 78 प्रतिशत लोगों ने काम करवाने के लिए रिश्वत देना स्वीकार किया। इनमें से 22 प्रतिशत ने कई बार (प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से) रिश्वत दी, जबकि 56 प्रतिशत ने अधिकारियों को एक या दो बार (प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से) रिश्वत दी। हालांकि, उनमें से लगभग 22 प्रतिशत को रिश्वत देने की आवश्यकता नहीं थी।
काँग्रेस शासन में इस समय राजस्थान भ्रष्टाचारियों का गढ़ बन गया है। खुलेआम यहां ये सब हो रहा है। तुष्टीकरण को बढ़ावा देना तो अब राजस्थान में जैसे आम बात हो गई है।