साम्राज्यवादी और वामपंथी इतिहासकारों ने जिस प्रकार भारत के इतिहास से छेड़छाड़ कर आज तक भारत को असल इतिहास जानने से वंचित रखा उसका प्रभाव आज भी हम भारतीय भोग रहे हैं। वहीं 21वीं सदी में सोचने-समझने की अलौकिक शक्ति ने इस बौद्धिक दंश के विरुद्ध हमारी चेतना को जगाने का काम किया है। आज सवाल होते है कि क्यों वामपंथियों ने अपनी कुदशित मानसिकता से भारत के इतिहास को बर्बाद करने की साजिश रची? और अभी भी यह यह क्यों किया जा रहा है? अब ताजा मामले को ले लीजिये, पंजाब शिक्षा पाठ्यक्रम के अंतर्गत बारहवीं कक्षा के विवादास्पद इतिहास की पाठ्यपुस्तकों को तत्काल वापस लेने और प्रतिबंध लगाने की मांग उठ रही है क्यूंकि इस पुस्तक में सिख इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप लग रहे हैं।
निश्चित रूप से अपने घर की रोटी चलाने और कुछ लोगों की जीहुजूरी के कारण इन सभी साम्राज्यवादी और वामपंथी तत्वों ने भारत के इतिहास को धूमिल करने का काम किया है। लेकिन अब धीरे धीरे ही सही, पर असल तथ्य सबके सामने आ रहा है। ज्ञात हो कि पंजाब के शिक्षण पाठ्यक्रमों में सिख इतिहास की पवित्रता को तार-तार करने का काम हुआ है। बारहवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तकों में “सिख इतिहास, सिख गुरुओं, गुरुबनी और पंजाब और उसके शहीदों के इतिहास के बारे में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने के लिए बड़े पैमाने पर और सोची-समझी साजिश रची गई है।”
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यह गलत सूचना और विकृत तथ्य नई पीढ़ी को परोसा जा रहा है लेकिन कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल की सरकारों को आजतक इसकी परवाह नहीं रही है क्योंकि वे निजी प्रकाशन गृहों के सहयोग से केवल ‘पुस्तक माफिया’ के माध्यम से पैसा बनाने की सोच रहे हैं; और इसीलिए इतनी गलतियों वाली एक किताब बारहवीं कक्षा के छात्रों को 400 रुपये में बेची जा रही है।
क्या मुग़ल फ़ौज में नौकरी किये थे हरगोबिंद जी?
इस पर सवाल उठना भी लाजमी है, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, शिक्षा मंत्री परगट सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व शिक्षा मंत्री विजय इंदर सिंगला, पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, ये वो नेता हैं जिनपर सवाल उठना चाहिए क्योंकि सत्ता का सुख भोगने और राजशाही जीवन तो जीना आसान है पर अपनी संस्कृति को बचाना बहुत मुश्किल। क्या गुरु हरगोबिंद जी ने ग्वालियर किले से 52 राजाओं को रिहा करने के बाद मुगल शासक जहांगीर की सेना में सेवा की थी? यह सवाल कांग्रेसियों और अकाली दल (बादल) के राजनेताओं से पुछा जाना चाहिए।
यह सवाल इसलिए पूछा जाना चाहिए क्यूंकि किताबों में यही लिखा जा रहा है। आपको बता दें, यह बात एसी अरोड़ा ने अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ पंजाब’ के पेज 81 पर कही है। क्या सत्ताधारी सरकार और विद्वान इस कथन से सहमत हैं? यदि नहीं, तो ऐसी किताबें अभी भी स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा क्यों हैं और वे (पिछली सरकारें) विवादास्पद टिप्पणियों पर चुप क्यों हैं?”।
डॉ मान की किताब में कहा गया है कि गुरु हरगोबिंद को पंजाब के जाटों द्वारा तलवार उठाने के लिए मजबूर किया गया था। क्या ऐसी टिप्पणियां मिरी-पीरी के संकल्प पर सीधा हमला नहीं हैं? कांग्रेस और अकाली (बादल) को भी इसपर स्पष्टिकरण देना चाहिए। इसी तरह, यह किताब कहती है कि गुरु गोबिंद सिंह ने जाटों को अपनी सेना में शामिल करने के लिए खालसा पंथ का गठन किया, जो न केवल गलत है, बल्कि असहनीय भी है।
यदि आज तक पाठ्यकर्मों में ऐसे चैप्टर इंगित हैं तो अब तक पूरे देश में न जाने कितने पाठ्यक्रम होंगे जो छात्रों ने सही समझकर पढ़ा होगा और शायद इतिहास से की गई छेड़छाड़ के कारण हमने जितने भी मुग़ल शासकों के बारे में पढ़ा वो एक सोची समझी रणनीति के तहत पढ़ाया गया हो। क्योंकि क्रूर मानसिकता वाले मुग़ल शासकों के अतिरिक्त भी भारत में वीर और बलवान शासक रहे हैं जिनका कोई भी उल्लेख स्कूली किताबों या पाठ्यक्रमों में लगभग न के बराबर ही है।
ज्ञात हो कि, इन पुस्तकों में उद्धृत गुरबानी वर्तनी की गलतियों से भरी है, जो इसका अर्थ बदल देती है और यह गुरबानी का अनादर है। इन किताबों में पंजाब के स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के बारे में गलत जानकारी है, ऐसी विवादास्पद किताबों को स्कूली शिक्षा का हिस्सा बनाना हमारे युवा दिमागों को आसानी से प्रभावित करके हमारे इतिहास को विकृत करने की एक बड़ी साजिश है। “यह एक अकादमिक धोखाधड़ी है और ऐसी किताबों पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।”
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आज़ादी के उपरांत कांग्रेस ने देश में 7 दशकों तक शासन किया पर उसे भारतीय इतिहास से क्या ही लेना-देना जिसका संस्थापक ही फिरंगी हो, ए.ओ.ह्यूम। ए.ओ.ह्यूम के बारे में तो कांग्रेसियों ने इतिहास की किताबों में बता दिया पर धार्मिक ग्रंथों से ढंग के 4 पाठ्यक्रम बनाने में इन विषैली मानसिकता वालों के दिमाग में ताले पड़ गए। निस्संदेह, इन सभी पाठ्यक्रमों पर प्रतिबंधों के साथ-साथ इनके लेखकों पर दंडात्मक कार्यवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए क्योंकि किसी के भी आराध्य को ऐतिहासिक वर्णन गलत ढंग से वर्णित करना पाप है।